हाइलाइट्स:
- Water Crisis के कारण महिलाएं जान जोखिम में डालकर 70 फीट गहरे कुएं में उतर रही हैं
- बोरीचिवारी गांव में नहीं है पीने के साफ पानी की कोई सुविधा
- वायरल वीडियो ने प्रशासन की नींद उड़ाई, लेकिन अब तक नहीं हुई ठोस कार्रवाई
- ग्रामीणों की मांग: “हमें विकास नहीं, जीने लायक बुनियादी सुविधा चाहिए”
- चुनावी वादों के बाद भी बदहाल व्यवस्था, सिस्टम पर उठ रहे सवाल
ग्रामीण भारत की असली तस्वीर: बोरीचिवारी की चीख पुकार
महाराष्ट्र के नासिक जिले के पेठ तालुका में स्थित बोरीचिवारी गांव, 21वीं सदी में भी बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर है। हाल ही में सामने आए एक वीडियो ने इस गांव की दयनीय स्थिति को उजागर किया है। Water Crisis की मार झेल रही महिलाएं 70 फीट गहरे सूखे कुएं में उतरकर गंदा, कीचड़ भरा पानी निकाल रही हैं। यह दृश्य किसी आपदा क्षेत्र का नहीं, बल्कि भारत के उसी राज्य का है, जहां ‘स्मार्ट सिटी’ बनने के वादे किए जाते हैं।
महाराष्ट्र के नासिक जिले के पेठ तालुका स्थित बोरीचिवारी गांव में हालात बद से बदतर हो चुके हैं। 21वीं सदी के भारत में महिलाएं जान हथेली पर रखकर 70 फीट गहरे सूखे कुएं में उतर रही हैं—केवल इसलिए कि उन्हें पीने का पानी चाहिए। और वो भी साफ नहीं, गंदा, कीचड़ भरा, जानलेवा पानी!
एक… pic.twitter.com/gksNG4vEjT
— Lallanpost (@Lallanpost) April 21, 2025
वीडियो जिसने हिला दी देश की आत्मा
वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि गांव की महिलाएं एक रस्सी के सहारे सूखे कुएं में उतर रही हैं। वहां जमा पानी ना केवल गंदा है, बल्कि स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक भी है। लेकिन जब विकल्प ही नहीं हो, तो मजबूरी में यही पानी ही जीवन रेखा बन जाता है। यह घटना Water Crisis की भयावहता को दर्शाती है और इस बात की गवाही देती है कि भारत के गांवों की वास्तविकता अब भी कितनी भयावह है।
बोरीचिवारी अकेला नहीं, सैकड़ों गांव इसी त्रासदी के शिकार
देश में Water Crisis की समस्या सिर्फ बोरीचिवारी तक सीमित नहीं है। मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के सैकड़ों गांव इसी तरह की जल समस्या से पीड़ित हैं। कुछ गांवों में तो पीने के पानी के लिए 5-6 किलोमीटर तक पैदल चलना आम बात है।
जिम्मेदार कौन? सरकार, प्रशासन या सिस्टम?
हर बार की तरह इस बार भी सरकार और प्रशासन ने घटना के बाद “जांच के आदेश” जारी कर दिए हैं। लेकिन क्या यही काफी है? जब तक ऐसी घटनाएं सामने नहीं आतीं, तब तक कोई सुनवाई नहीं होती। Water Crisis की जड़ में सिर्फ पानी की कमी नहीं, बल्कि सिस्टम की निष्क्रियता भी है।
चुनावों में वादे, और बाद में सन्नाटा
प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक ने बोरीचिवारी के लोगों से एक बेहतर भविष्य का वादा किया था। लेकिन आज भी वहां न तो पाइपलाइन बिछी है, न ही कोई टैंकर व्यवस्था है। यही नहीं, गांव की महिलाओं को कई बार अपनी जान जोखिम में डालकर कुएं से पानी निकालना पड़ता है। यह सवाल पूछना जरूरी है कि क्या यही विकास का मापदंड है?
स्वास्थ्य पर असर: बीमारियों का खतरा बढ़ा
Water Crisis के कारण बोरीचिवारी जैसे गांवों में जलजनित बीमारियों का खतरा बेहद बढ़ गया है। दूषित पानी के कारण बच्चों और बुजुर्गों में पेट की बीमारियां, त्वचा संक्रमण और डायरिया जैसे रोग आम हो गए हैं। लेकिन इसके बावजूद, अब तक वहां कोई स्वास्थ्य शिविर तक नहीं लगाया गया है।
महिलाओं की हिम्मत, लेकिन कब तक?
इन कठिन हालातों में महिलाएं ही सबसे आगे हैं। चाहे कुएं में उतरना हो या बच्चों को पीने का पानी देना, हर जिम्मेदारी उन्होंने अपने कंधों पर उठाई है। लेकिन यह साहस कब तक चलेगा? Water Crisis को हल करने के लिए नीतिगत बदलाव, संरचनात्मक सुधार और प्रशासनिक जिम्मेदारी की सख्त आवश्यकता है।
क्या समाधान संभव है?
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सरकार वास्तव में इच्छाशक्ति दिखाए तो Water Crisis को समाप्त किया जा सकता है। वर्षा जल संचयन, जल संरक्षण तकनीकों का इस्तेमाल, पाइपलाइन प्रोजेक्ट्स की त्वरित शुरुआत और पंचायत स्तर पर जल योजनाएं लागू कर इस संकट से निपटा जा सकता है।
अब भी समय है, जाग जाइए
बोरीचिवारी की घटना एक चेतावनी है। यह सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि पूरे भारत की सच्चाई है। जब तक हम Water Crisis को प्राथमिकता नहीं देंगे, तब तक ऐसे दृश्य बार-बार सामने आते रहेंगे। अब वक्त आ गया है कि हम वोट की राजनीति से ऊपर उठकर मानवता की राजनीति करें।