निजलिंगा स्वामी नहीं, निकले मोहम्मद निसार! मठ का राज खुलते ही मचा बवाल

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हाइलाइट्स

  • निजलिंगा स्वामी विवाद ने कर्नाटक की धार्मिक राजनीति में हलचल मचा दी है।
  • मठ का प्रमुख बनने के कुछ ही दिनों बाद सामने आया कि स्वामी का मूल नाम मोहम्मद निसार था।
  • मुस्लिम पृष्ठभूमि उजागर होने के बाद भक्तों ने गहरी आपत्ति जताई और पद छोड़ने की मांग की।
  • विरोध के चलते निजलिंगा स्वामी विवाद ने धार्मिक पहचान और आस्था पर गहन बहस छेड़ दी है।
  • स्वामी ने मठ छोड़ने का औपचारिक निर्णय लेते हुए त्यागपत्र सौंप दिया है।

निजलिंगा स्वामी विवाद: कैसे शुरू हुआ मामला?

कर्नाटक के चामराजनगर जिले के गुंदलुपेट में स्थित चौदाहल्ली के गुरुमल्लेश्वर दासोहा मठ में एक नया मठाधीश नियुक्त किया गया था। उनका नाम रखा गया — निजलिंगा स्वामी। लेकिन कुछ ही हफ्तों बाद यह शांत नियुक्ति एक बड़े धार्मिक विवाद में तब्दील हो गई।

जांच-पड़ताल और स्थानीय चर्चाओं के बाद खुलासा हुआ कि निजलिंगा स्वामी वास्तव में मुस्लिम पृष्ठभूमि से आते हैं और उनका असली नाम मोहम्मद निसार है। उन्होंने लिंगायत धर्म स्वीकार किया था, परंतु उनकी नियुक्ति के समय यह जानकारी मठ प्रशासन और अनुयायियों से छिपाई गई।

कौन हैं निजलिंगा स्वामी?

मूल परिचय

निजलिंगा स्वामी का जन्म कर्नाटक के यादगीर जिले के शाहपुर में हुआ था। वे मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखते थे और उनका नाम मोहम्मद निसार था।

लिंगायत धर्म में दीक्षा

कई वर्षों पहले उन्होंने अपना धर्म परिवर्तन कर लिंगायत पंथ को अपनाया और लिंग दीक्षा ली। दीक्षा के बाद उन्होंने संत जीवन अपनाया और गुरुमल्लेश्वर मठ से जुड़ गए।

भक्तों की प्रतिक्रिया और विवाद की शुरुआत

जैसे ही यह जानकारी आम हुई कि मठ का नया प्रमुख पहले मुस्लिम था, मठ में श्रद्धालुओं का विरोध फूट पड़ा। कई भक्तों ने खुलकर अपनी आपत्ति जताई कि एक अन्य धर्म से आए व्यक्ति को धार्मिक नेतृत्व देना अनुचित है।

छिपाई गई पहचान का आरोप

आलोचकों का कहना है कि नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं बरती गई और स्वामी की धार्मिक पृष्ठभूमि को जानबूझकर छुपाया गया। यही कारण है कि यह निजलिंगा स्वामी विवाद और ज्यादा गहरा गया।

स्वामी का बयान और मठ से विदाई

बढ़ते विरोध को देखते हुए निजलिंगा स्वामी ने मठ छोड़ने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा:

“मैंने ईमानदारी से सेवा करने का प्रयास किया लेकिन अगर मेरी उपस्थिति से भक्तों की भावनाएं आहत हो रही हैं तो मैं पद त्यागता हूं।”

उन्होंने बिना किसी विवाद को आगे बढ़ाए शांतिपूर्वक मठ परिसर छोड़ा और अपने निजी सामान के साथ प्रस्थान कर गए। उन्होंने आधिकारिक रूप से इस्तीफा भी दे दिया है।

निजलिंगा स्वामी विवाद: उठते गंभीर प्रश्न

यह घटना केवल एक मठ में हुए विवाद तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसने भारतीय समाज के कुछ गहरे सवालों को उजागर कर दिया है:

 1. क्या धर्म परिवर्तन के बाद भी किसी व्यक्ति को धार्मिक नेतृत्व मिल सकता है?

 2. क्या किसी व्यक्ति का अतीत उसकी आध्यात्मिकता की स्वीकृति पर असर डालता है?

 3. धार्मिक संस्थानों में पारदर्शिता कितनी आवश्यक है?

 4. क्या जाति-धर्म की दीवारें अब भी आध्यात्मिकता के रास्ते में बाधा हैं?

इन सभी सवालों को लेकर अब सोशल मीडिया से लेकर आध्यात्मिक संगठनों तक में बहस छिड़ चुकी है।

समर्थन और विरोध: दो पक्षों की प्रतिक्रियाएं

समर्थकों का कहना है:

  • निजलिंगा स्वामी ने ईमानदारी से सेवा की।
  • धर्म परिवर्तन व्यक्तिगत निर्णय है।
  • लिंगायत परंपरा में सभी को समान अवसर मिलना चाहिए।

विरोध करने वालों का तर्क:

  • नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं थी।
  • मठ प्रमुख का अतीत सार्वजनिक होना चाहिए था।
  • धार्मिक भावनाएं आहत हुईं।

निजलिंगा स्वामी विवाद का व्यापक प्रभाव

निजलिंगा स्वामी विवाद ने न केवल धार्मिक संगठनों को झकझोर कर रख दिया है, बल्कि यह देशभर में धर्मांतरण, धार्मिक नेतृत्व, पहचान और समावेशिता पर व्यापक चर्चा को जन्म दे चुका है।

यह घटना बताती है कि भारत जैसे विविध धार्मिक संरचना वाले देश में पारदर्शिता, संवाद और सहिष्णुता कितनी ज़रूरी है।

आगे की राह क्या हो?

निजलिंगा स्वामी विवाद से यह स्पष्ट होता है कि धार्मिक नेतृत्व केवल ज्ञान और सेवा से नहीं, बल्कि विश्वास, पारदर्शिता और सामाजिक स्वीकृति से भी जुड़ा होता है।

भविष्य में ऐसे विवादों से बचने के लिए धार्मिक संस्थानों को नियुक्तियों में स्पष्टता रखनी होगी और समुदायों को समावेशिता की ओर बढ़ना होगा। आध्यात्मिकता का मार्ग अतीत से नहीं, बल्कि कर्म, समर्पण और सेवा से तय होना चाहिए।

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