Kashmir Terror Attacks

Kashmir Terror Attacks: कश्मीर में आतंकियों का कहर, 22 अप्रैल को सबसे बड़ा हमला – सरकार की चुप्पी पर उठे सवाल

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हाइलाइट्स:

  • Kashmir Terror Attacks के नाम पर अब तक 61 से ज़्यादा लोगों की जान जा चुकी है
  • 9 जून को नरेंद्र मोदी की शपथ के साथ ही शुरू हुआ खूनी खेल
  • लगातार जवानों और नागरिकों पर हमले, पर सरकार की ओर से ठोस जवाब नहीं
  • एक के बाद एक हमले, फिर भी इंटेलिजेंस एजेंसियाँ नाकाम क्यों?
  • विपक्ष ने सरकार से मांगा जवाब: क्या कश्मीर फिर से जलने वाला है?

सरकारी चुप्पी बनाम आतंकियों की बर्बरता: Kashmir Terror Attacks पर देश को जवाब चाहिए

Kashmir Terror Attacks के लगातार बढ़ते मामलों ने एक बार फिर देश को झकझोर कर रख दिया है। बीते कुछ महीनों में जिस तरह से आतंकियों ने एक के बाद एक हमले किए हैं, उसने सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

जब नरेंद्र मोदी 9 जून को अपने तीसरे कार्यकाल की शपथ ले रहे थे, ठीक उसी दिन जम्मू-कश्मीर में श्रद्धालुओं की बस पर हमला हुआ, जिसमें 10 मासूम लोगों की जान गई। इसके बाद जो सिलसिला शुरू हुआ, वो थमने का नाम नहीं ले रहा।

तारीखों में दर्ज खून की कहानी: कब, कहां और कितने मरे?

लगातार बढ़ते हमलों की एक झलक:

तारीख घटना मौतें
9 जून श्रद्धालुओं की बस पर हमला 10
11 जून जवान पर हमला 1
6 जुलाई मुठभेड़ में जवान शहीद 2
8 जुलाई आतंकी हमले में नुकसान 5
15 जुलाई घात लगाकर हमला 4
29 जुलाई नागरिकों की हत्या 4
22 अप्रैल ताजा हमला, अब तक सबसे बड़ा 28

इतना खून बह चुका है, लेकिन न तो केंद्र सरकार ने कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस की, और न ही किसी जिम्मेदारी तय हुई है।

Intelligence Failure या Political Silence?

यह सवाल अब हर किसी के मन में है कि अगर सरकार को Kashmir Terror Attacks की भनक नहीं थी, तो क्यों नहीं? और अगर थी, तो कार्रवाई क्यों नहीं की गई?

आखिर इंटेलिजेंस एजेंसियाँ किस बात का वेतन ले रही हैं? कश्मीर जैसे संवेदनशील इलाके में, जहाँ हर हरकत पर नज़र रखी जाती है, वहाँ इतने बड़े हमलों की योजना कैसे बनती रही और किसी को खबर तक नहीं लगी?

विपक्ष का हमला: “देश जानना चाहता है सरकार क्या कर रही है?”

कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी और कई अन्य दलों ने सरकार से सार्वजनिक रूप से जवाब मांगा है। उनका कहना है कि सरकार सिर्फ चुनाव प्रचार और उद्घाटन समारोहों में व्यस्त है, जबकि Kashmir Terror Attacks लगातार देश की आत्मा पर वार कर रहे हैं।

विपक्ष के कुछ बयान:

  • राहुल गांधी: “अगर यही New India है, तो फिर Old India बेहतर था।”
  • अखिलेश यादव: “हमारे जवान हर रोज मर रहे हैं, लेकिन सरकार मौन है।”
  • ममता बनर्जी: “क्या देश में अब नागरिकों की जान की कोई कीमत नहीं बची?”

क्या कश्मीर फिर से 90 के दशक की ओर लौट रहा है?

90 के दशक का वो काला दौर जब घाटी में खून बहना आम बात हो गई थी, अब वैसा ही मंजर एक बार फिर दिखाई देने लगा है। लोग अपने घरों से निकलने में डर रहे हैं, बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे, और पर्यटक घाटी से लौट रहे हैं।

Kashmir Terror Attacks ने न केवल सुरक्षा बल्कि पर्यटन, स्थानीय व्यापार और सामाजिक तानेबाने को भी तोड़ दिया है।

सरकारी आंकड़े और जमीनी हकीकत में फर्क

गृह मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों में कहा गया है कि आतंकी घटनाओं में गिरावट आई है। लेकिन जब जमीन पर 28 लोगों की लाशें उठाई जाती हैं, तो फिर इन आँकड़ों की सच्चाई पर कौन विश्वास करेगा?

आगे की राह: क्या है समाधान?

अगर सरकार वाकई में Kashmir Terror Attacks को रोकना चाहती है, तो उसे सिर्फ बयानबाजी से नहीं, ज़मीनी कार्रवाई से काम लेना होगा:

सुझाव:

  • इंटेलिजेंस नेटवर्क को मजबूत करना
  • स्थानीय युवाओं को मुख्यधारा में जोड़ना
  • हर हमले पर तत्काल और पारदर्शी रिपोर्ट
  • सेना और CRPF के मॉडर्नीकरण पर बल
  • राजनीतिक दलों को एक मंच पर लाना

मीडिया की चुप्पी: क्या TRP से बड़ा है आतंकवाद?

एक और अहम पहलू यह है कि मुख्यधारा की मीडिया इस पूरे मुद्दे पर लगभग चुप है। क्या उन्हें यह डर है कि सवाल पूछने से उनकी टीआरपी गिर जाएगी या फिर सरकार नाराज़ हो जाएगी?

आम जनता अब पूछ रही है: “क्या मीडिया का काम अब सिर्फ एंकरिंग रह गया है?”

Kashmir Terror Attacks पर कब जागेगी सरकार?

देश आज जानना चाहता है कि Kashmir Terror Attacks के पीछे आखिर कौन है? कब तक हमारे जवान और नागरिक यूँ ही मरते रहेंगे? क्या सरकार के पास कोई ठोस योजना है या फिर हर हमले के बाद सिर्फ श्रद्धांजलि और निंदा का सिलसिला चलता रहेगा?

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