Indus Water Treaty पर भारत की सर्जिकल स्ट्राइक: पाकिस्तान की प्यास और कश्मीर में बिजली क्रांति का आगाज़

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हाइलाइट्स

  • भारत ने Indus Water Treaty पर रोक लगाकर पाकिस्तान को पानी पर बड़ा झटका दिया
  • जम्मू-कश्मीर में 4000 मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए भारत के पांच बड़े प्रोजेक्ट्स होंगे पूरे
  • अब भारत को हाइड्रो प्रोजेक्ट्स के लिए पाकिस्तान या विश्व बैंक से मंजूरी नहीं लेनी पड़ेगी
  • चिनाब और झेलम नदियों पर बनाए जा रहे पावर प्रोजेक्ट्स से भारत को मिलेगी जल-स्वराज्य की ताकत
  • पाकिस्तान ने जताई चिंता—कहा, भारत के इस कदम से देश में जल संकट गहराएगा

 पहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले के बाद भारत ने अपने रुख में सख्ती दिखाते हुए ऐतिहासिक Indus Water Treaty पर रोक लगाने का बड़ा फैसला किया है। 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुआ यह जल समझौता दशकों से दोनों देशों के बीच एक संवेदनशील लेकिन स्थिर विषय बना हुआ था। लेकिन अब भारत के इस कदम से न केवल पाकिस्तान में हड़कंप मच गया है, बल्कि दक्षिण एशिया की जल राजनीति में भी एक नया अध्याय शुरू हो गया है।

 पाकिस्तान की बौखलाहट: “हमारे लोग प्यासे मर जाएंगे”

Indus Water Treaty के अंतर्गत भारत को तीन पूर्वी नदियों (रावी, सतलुज और ब्यास) का और पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियों (झेलम, चिनाब और सिंधु) का जल उपयोग करने का अधिकार मिला था। भारत ने इस समझौते का लंबे समय तक पालन किया, लेकिन अब आतंकी गतिविधियों और पाकिस्तान की असहयोगी नीति के चलते भारत ने इस संधि को निलंबित कर दिया है।

पाकिस्तान की सरकार और मीडिया दोनों ने इस फैसले को “जलयुद्ध की शुरुआत” कहा है। इस्लामाबाद में जल संसाधन मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “अगर भारत ने पानी रोक दिया तो हमारे खेत सूख जाएंगे और लोग प्यासे मरेंगे।”

 भारत को मिला रणनीतिक लाभ: अब बिना मंजूरी पूरे होंगे रुके हुए प्रोजेक्ट्स

भारत के लिए Indus Water Treaty लंबे समय से एक तकनीकी और कूटनीतिक बाधा रही है। खासतौर से जम्मू-कश्मीर में हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स के निर्माण में विश्व बैंक और पाकिस्तान की स्वीकृति की जरूरत इसे जटिल बना देती थी।

अब इस रोक के बाद भारत सरकार को अपने प्रोजेक्ट्स के लिए न तो पाकिस्तान की अनुमति लेनी पड़ेगी और न ही विश्व बैंक की निगरानी में काम करना होगा। इसका सबसे बड़ा फायदा जम्मू-कश्मीर के पांच महत्वपूर्ण पावर प्रोजेक्ट्स को मिलेगा—बुरसार (800 मेगावाट), दुलहस्ती (260 मेगावाट), सवालकोट (1856 मेगावाट), उरी (240 मेगावाट), और किरथाई (930 मेगावाट)

 हाइड्रोपावर से आत्मनिर्भरता: भारत की रणनीतिक योजना

इन पांचों पावर प्रोजेक्ट्स की कुल क्षमता 4000 मेगावाट से अधिक है और यह भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम है। इनमें से अधिकांश प्रोजेक्ट्स चिनाब और झेलम नदियों पर आधारित हैं।

 सवालकोट: सबसे बड़ा प्रोजेक्ट

सवालकोट प्रोजेक्ट चिनाब नदी पर स्थित है और इसकी क्षमता 1856 मेगावाट है। इसके तहत रामबन जिले में 192.5 मीटर ऊंचा बांध बनना है, जो परियोजना की सबसे बड़ी इंजीनियरिंग चुनौती भी है।

 बुरसार और दुलहस्ती: जल नियंत्रण और ऊर्जा उत्पादन

बुरसार प्रोजेक्ट, जो कि किश्तवाड़ जिले में चिनाब पर बन रहा है, केवल बिजली ही नहीं पैदा करेगा बल्कि जल के बहाव को भी नियंत्रित करेगा। दुलहस्ती एक अंडरग्राउंड प्रोजेक्ट है जो तकनीकी रूप से बेहद उन्नत है।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया: विश्व बैंक की चुप्पी और चीन की नजर

Indus Water Treaty पर भारत की यह कार्रवाई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी चर्चा का विषय बन गई है। हालांकि विश्व बैंक ने अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन चीन, जो पाकिस्तान के साथ रणनीतिक गठजोड़ में है, इस घटनाक्रम पर करीबी नजर बनाए हुए है।

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला केवल पानी रोकने के लिए नहीं, बल्कि पाकिस्तान को रणनीतिक दबाव में लाने के लिए लिया गया है। भारत ने यह संकेत दे दिया है कि अगर आतंकी गतिविधियों पर लगाम नहीं लगी, तो कूटनीतिक, आर्थिक और जल संसाधन के स्तर पर कठोर कदम उठाए जाएंगे।

 आगे का रास्ता: भारत तय करेगा कौन-सा पानी कहां जाएगा

भारत अब इस स्थिति का लाभ उठाकर अपने जल प्रबंधन ढांचे को सुदृढ़ कर सकता है। सिंधु प्रणाली की नदियों पर स्टोरेज क्षमता बढ़ाकर भारत खुद तय करेगा कि कितना पानी घरेलू उपयोग में आएगा और कितना पाकिस्तान जाएगा।

जल विशेषज्ञों के अनुसार, भारत की अगली रणनीति बड़े जलाशयों और बांधों के निर्माण की होगी ताकि जल संकट से निपटने में राष्ट्रीय हित सर्वोपरि रहे। इसके अलावा, कश्मीर घाटी में स्थानीय लोगों को रोजगार और बिजली आपूर्ति दोनों ही मिलेंगे।

 Indus Water Treaty पर रोक केवल शुरुआत है

Indus Water Treaty को रोकना कोई साधारण फैसला नहीं है, यह एक सुनियोजित रणनीतिक पहल है जो भारत की बदली हुई सुरक्षा और कूटनीतिक नीति को दर्शाती है। यह कदम ना केवल पाकिस्तान को चेतावनी है, बल्कि यह संदेश भी कि भारत अब अपनी सहनशीलता की सीमा पार कर चुका है।

यह कहना गलत नहीं होगा कि आने वाले वर्षों में यह फैसला भारत के ऊर्जा और जल संसाधन की दिशा में क्रांतिकारी बदलाव लेकर आएगा।

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