Fake Degree Case: उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य पर गंभीर आरोप, हाई कोर्ट में याचिका स्वीकार

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हाइलाइट्स

  • Fake Degree Case में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य पर याचिका हुई स्वीकार
  • याचिकाकर्ता भाजपा नेता दिवाकर त्रिपाठी ने लगाए फर्जी शैक्षणिक डिग्री के आरोप
  • Fake Degree Case के तहत इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 6 मई को सुनवाई की तारीख तय की
  • हलफनामों में वर्षवार डिग्री की जानकारी में भारी अंतर को लेकर उठे सवाल
  • यदि Fake Degree Case में आरोप साबित हुए तो हो सकती है एफआईआर और गिरफ्तारी

मामला क्या है?

उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर विवादों में घिर गई है। इस बार विवाद के केंद्र में हैं राज्य के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, जिन पर Fake Degree Case के तहत गंभीर आरोप लगाए गए हैं। याचिका में दावा किया गया है कि मौर्य ने फर्जी डिग्री के सहारे कई चुनाव लड़े और इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन से पेट्रोल पंप तक हासिल कर लिया।

इस याचिका को खुद एक भाजपा नेता और आरटीआई कार्यकर्ता दिवाकर नाथ त्रिपाठी ने दाखिल किया है, जो कि अब तक का सबसे बड़ा राजनीतिक झटका साबित हो सकता है अगर आरोप सही पाए गए।

Fake Degree Case: याचिका में क्या आरोप हैं?

अलग-अलग चुनावों में अलग-अलग डिग्री विवरण

दिवाकर त्रिपाठी की याचिका के अनुसार, केशव मौर्य ने 2007, 2012 और 2014 के नामांकन पत्रों में शैक्षणिक योग्यता को अलग-अलग तरीकों से दर्शाया।

  • 2007 के हलफनामे में “उत्तमा” की डिग्री 1998 में प्राप्त दिखाया गया
  • वहीं 2012 और 2014 के हलफनामों में बीए की डिग्री 1997 में पूरी होना दर्शाया गया

यह अंतर ही इस Fake Degree Case की नींव बन गया।

हिंदी साहित्य सम्मेलन की मान्यता पर सवाल

हिंदी साहित्य सम्मेलन से प्राप्त “प्रथमा”, “मध्यमा” और “उत्तमा” जैसी डिग्रियों को कुछ राज्य हाईस्कूल, इंटर और स्नातक के समकक्ष मानते हैं, लेकिन यह राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय नहीं है। याचिका में यह भी स्पष्ट किया गया है कि यह संस्था बीए की डिग्री नहीं देती, फिर भी मौर्य ने स्वयं को बीए स्नातक घोषित किया।

Fake Degree Case का कानूनी इतिहास

यह याचिका सबसे पहले दो साल पहले दाखिल की गई थी जिसे हाईकोर्ट ने तथ्यहीन कहकर खारिज कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट की हस्तक्षेप

इसके बाद याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जहां से हाईकोर्ट के फैसले को पलटा गया और पुनः याचिका दाखिल करने का निर्देश दिया गया।

याचिका पुनः स्वीकार

गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुनर्विचार याचिका को स्वीकार करते हुए Fake Degree Case पर सुनवाई के लिए 6 मई की तारीख तय की है।

राजनैतिक समीकरणों पर असर

पार्टी में असहजता

याचिकाकर्ता खुद भाजपा के ही वरिष्ठ नेता हैं, इसलिए यह मामला पार्टी के अंदर गुटबाजी और नेतृत्व को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।

विपक्ष को मिला बड़ा मुद्दा

Fake Degree Case को विपक्ष ने तत्काल लपक लिया है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस नेताओं ने इसे “नीति और नीयत की हार” बताया है।

कानूनी परिणाम क्या हो सकते हैं?

यदि Fake Degree Case में आरोप सही साबित होते हैं, तो IPC की धारा 420 (धोखाधड़ी), 468 (धोखाधड़ी के लिए जालसाजी), 471 (जाली दस्तावेज का उपयोग) के तहत FIR दर्ज हो सकती है।

जेल की संभावना (H3)

यदि यह सिद्ध हो गया कि केशव मौर्य ने गलत जानकारी के आधार पर चुनाव लड़ा या सरकारी लाभ (जैसे पेट्रोल पंप) प्राप्त किया, तो उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर सजा हो सकती है।

याचिकाकर्ता का पक्ष

दिवाकर त्रिपाठी का कहना है:
“मैंने राज्य और केंद्र सरकार से बार-बार शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। अंततः न्याय के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा।”

डिप्टी सीएम मौर्य की प्रतिक्रिया

केशव प्रसाद मौर्य ने अब तक इस मामले पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि वह कानूनी सलाह ले रहे हैं और जल्द ही स्पष्टीकरण देंगे।

निष्कर्ष

इस मामले ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा दी है। Fake Degree Case केवल एक व्यक्ति विशेष पर सवाल नहीं उठाता, बल्कि पूरे राजनीतिक तंत्र की पारदर्शिता और ईमानदारी पर प्रश्नचिह्न लगाता है। 6 मई को होने वाली सुनवाई इस दिशा में एक निर्णायक मोड़ ला सकती है।

 

 

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