हाइलाइट्स
- Muslim women circumcision को लेकर वैश्विक स्तर पर बहस तेज़, भारत में भी जागरूकता की मांग बढ़ी
- यह प्रथा कुछ विशेष मुस्लिम समुदायों, विशेषकर दाऊदी बोहरा समाज में प्रचलित
- संयुक्त राष्ट्र और WHO कर चुके हैं इस परंपरा की आलोचना
- भारत सरकार पर बढ़ रहा है कानून बनाने का दबाव
- पीड़ित महिलाओं की गवाही से उजागर हो रही है खतने की मानसिक और शारीरिक पीड़ा
खतना क्या है और क्यों किया जाता है?
धार्मिक और सांस्कृतिक पक्ष
Muslim women circumcision यानी महिला खतना एक पारंपरिक धार्मिक प्रथा है, जिसे मुख्यतः दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में देखा जाता है। इस प्रक्रिया में लड़कियों के जननांगों के एक हिस्से को काटा जाता है, जिसे ‘ख़फ्ज़’ (Khafz) कहा जाता है। इसका उद्देश्य आम तौर पर “यौन इच्छा को नियंत्रित करना” बताया जाता है।
हालांकि कुरान में इसका कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है, फिर भी कुछ समुदाय इसे “धार्मिक परंपरा” के तौर पर देखते हैं।
प्रक्रिया और उम्र
यह प्रक्रिया आम तौर पर 6 से 12 वर्ष की बच्चियों पर की जाती है। अधिकतर मामलों में यह गुप्त रूप से की जाती है और पारंपरिक महिलाओं या नर्सों द्वारा बिना चिकित्सकीय मानकों के पूरी की जाती है।
भारत में स्थिति
कानूनी स्थिति
भारत में Muslim women circumcision के खिलाफ कोई विशेष कानून नहीं है, लेकिन इसे IPC की धारा 326A और 326B (शारीरिक क्षति से संबंधित) के अंतर्गत दंडनीय माना जा सकता है। हालाँकि, इस पर एक विशिष्ट कानून की कमी कई महिला अधिकार संगठनों को खल रही है।
न्यायपालिका की प्रतिक्रिया
2017 में एक जनहित याचिका के जरिए सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया गया था कि महिला खतना पर प्रतिबंध लगाया जाए। सरकार ने शुरुआत में इसे “एक सीमित समुदाय की परंपरा” कह कर टालने की कोशिश की, लेकिन बढ़ते दबाव और अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट्स के कारण अब बहस तेज हो गई है।
अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण
WHO और संयुक्त राष्ट्र का रुख
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने Muslim women circumcision को “महिलाओं के मानवाधिकारों का उल्लंघन” माना है और इसे शारीरिक और मानसिक रूप से हानिकारक करार दिया है। WHO के अनुसार, यह प्रथा न केवल असुरक्षित होती है, बल्कि इससे इंफेक्शन, बाँझपन, और सेक्सुअल डिसऑर्डर जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।
संयुक्त राष्ट्र भी इसे “महिला जननांग विकृति” (FGM – Female Genital Mutilation) की श्रेणी में रखता है और इसे खत्म करने के लिए विश्व स्तर पर अभियान चला रहा है।
पीड़ितों की आवाज़
असली कहानियाँ
मुंबई की एक 28 वर्षीय महिला, जिनका Muslim women circumcision बचपन में हुआ था, बताती हैं, “मुझे समझ में नहीं आया था कि मेरे साथ क्या हो रहा है। दर्द के अलावा, मुझे आज तक मानसिक पीड़ा है।”
वहीं कुछ महिलाएं इसे एक “पवित्र परंपरा” भी मानती हैं और कहती हैं कि इससे “पवित्रता” बनी रहती है।
यह द्वंद्व इस विषय को और जटिल बना देता है।
महिला अधिकार कार्यकर्ताओं की मांग
अभियान और आंदोलन
देशभर में कई NGO और महिला कार्यकर्ता Muslim women circumcision को बंद करने के लिए अभियान चला रहे हैं। इनमें से प्रमुख हैं:
- Sahiyo – एक गैर-सरकारी संस्था जो बोहरा समुदाय की महिलाओं को जागरूक करती है
- WeSpeakOut – पीड़ित महिलाओं द्वारा शुरू किया गया अभियान
- Masooma Ranalvi, जो इस विषय की प्रमुख आवाज़ बन चुकी हैं
इन संगठनों की मांग है कि भारत सरकार महिला खतना को भी बाल यौन शोषण की श्रेणी में लाए और इस पर सख्त कानून बनाए।
मुस्लिम समुदाय की प्रतिक्रिया
दो भागों में बंटा समाज
दाऊदी बोहरा समाज के भीतर भी इस विषय पर मतभेद है। कुछ धार्मिक नेता इसे अनिवार्य बताते हैं, जबकि युवा पीढ़ी और शिक्षित वर्ग इस परंपरा से दूरी बना रहा है।
मुंबई की बोहरा समुदाय से जुड़ी एक सामाजिक कार्यकर्ता कहती हैं, “धर्म बदलता है, समाज बदलता है। हमें भी अपने रीति-रिवाजों की समीक्षा करनी चाहिए।”
कानून बनाना जरूरी क्यों?
मानवाधिकार और संविधान
भारत का संविधान जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार देता है (अनुच्छेद 21)। Muslim women circumcision जैसी प्रथाएं न केवल उस अधिकार का उल्लंघन हैं, बल्कि यह बच्चों के साथ हिंसा और लिंग आधारित भेदभाव का भी उदाहरण हैं।
यदि पुरुष खतने को धार्मिक स्वतंत्रता कहा जा सकता है, तो महिला खतना पर सवाल क्यों? इसका जवाब यही है कि यह शारीरिक क्षति और लिंग भेदभाव दोनों है।
Muslim women circumcision केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि एक सामाजिक और मानवाधिकार का विषय बन चुका है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जहां महिला सशक्तिकरण की बात होती है, वहां इस प्रथा को कानूनी दायरे में लाना अत्यावश्यक है।
जरूरत है कि सरकार, समाज और धार्मिक नेतृत्व तीनों मिलकर इस पर गहन विमर्श करें और पीड़ितों की पीड़ा को समझें, ताकि भविष्य में किसी भी बच्ची को इस दर्दनाक अनुभव से न गुजरना पड़े।