हाइलाइट्स:
- Waqf Amendment Act को लेकर Mahmud Pracha ने दिया बड़ा बयान, कहा- “न्याय 80% प्रोटेस्ट से ही मिलता है”
- बौद्ध, सिख, ईसाई और SC-ST समुदायों के साथ हो रही बातचीत, मिलकर करेंगे देशव्यापी विरोध
- Mahmud Pracha का दावा- यह एक्ट धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय के खिलाफ
- वक्फ संपत्तियों के नियंत्रण को लेकर गहराया विवाद, कई समुदायों ने जताई नाराजगी
- केंद्र सरकार पर एकतरफा कानून थोपने का आरोप, Waqf Amendment Act की संवैधानिकता पर भी सवाल
एक कानून, कई सवाल: क्या वाकई “Waqf Amendment Act” धर्मनिरपेक्ष भारत के लिए खतरा है?
देश में एक बार फिर धर्म और राजनीति के टकराव की ज़मीन तैयार हो चुकी है, और केंद्र में है “Waqf Amendment Act”। इस कानून को लेकर अब सामाजिक कार्यकर्ता और वरिष्ठ वकील महमूद प्राचा ने बड़ा बयान देते हुए कहा है, “80 प्रतिशत न्याय प्रोटेस्ट से ही मिलता है, और इस एक्ट के खिलाफ भी हम सब मिलकर आवाज़ उठाएंगे।”
Mahmud Pracha के इस बयान ने न सिर्फ सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है, बल्कि देश भर के अल्पसंख्यक और वंचित समुदायों के बीच भी एक नई बहस को जन्म दे दिया है।
क्या है Waqf Amendment Act?
Waqf Amendment Act भारत में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और नियंत्रण से जुड़ा हुआ एक संशोधित कानून है। इसका उद्देश्य वक्फ बोर्डों को अधिक शक्ति देना और संपत्ति के प्रबंधन में पारदर्शिता लाना बताया गया है। लेकिन Mahmud Pracha समेत कई सामाजिक और धार्मिक संगठनों का मानना है कि यह कानून असमानता को बढ़ावा देता है और धार्मिक स्वतंत्रता पर कुठाराघात करता है।
Mahmud Pracha का विरोध क्यों?
Mahmud Pracha का कहना है कि यह कानून संविधान की मूल भावना के खिलाफ है, जो धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय को सर्वोपरि मानता है। उन्होंने कहा, “हमारी बौद्ध, सिख, ईसाई और SC-ST समुदायों से बातचीत चल रही है और हम सभी मिलकर विरोध प्रदर्शन करेंगे।”
उनका यह भी दावा है कि इस एक्ट के तहत केवल मुस्लिम वक्फ संपत्तियों की बात की जाती है, लेकिन अन्य धार्मिक और ऐतिहासिक संपत्तियों को नजरअंदाज किया जा रहा है।
एकतरफा प्रक्रिया पर उठे सवाल
समाजशास्त्रियों और कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि Waqf Amendment Act को लाने में पारदर्शिता की कमी रही है। न तो इसकी विधायी प्रक्रिया में विभिन्न समुदायों की राय को पर्याप्त महत्व दिया गया, न ही संसद में इस पर समुचित बहस हुई।
इसके कारण कई अल्पसंख्यक समुदायों में यह भावना गहराई है कि यह कानून उन्हें हाशिये पर धकेलने का एक प्रयास है।
क्या यह सिर्फ मुस्लिमों का मुद्दा है?
इस प्रश्न पर Mahmud Pracha का जवाब बिल्कुल साफ है: “नहीं, यह सिर्फ मुस्लिमों का नहीं, बल्कि हर उस भारतीय का मुद्दा है जो न्याय, समानता और धर्मनिरपेक्षता में विश्वास रखता है।”
उनके मुताबिक, वक्फ जैसी संस्थाओं का नियंत्रण केवल धार्मिक पहचान के आधार पर नहीं होना चाहिए। अगर बौद्ध, सिख और ईसाई समुदायों की संपत्तियां भी हैं, तो उनके संरक्षण के लिए समान कानून और पारदर्शी प्रक्रिया होनी चाहिए।
Waqf Amendment Act के विरोध में क्या हो रही है तैयारी?
Mahmud Pracha ने जानकारी दी है कि देशभर में जन-जागरण अभियान चलाया जाएगा, जिसमें विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग शामिल होंगे। दिल्ली, लखनऊ, हैदराबाद, कोलकाता और भोपाल जैसे शहरों में रैलियों और धरनों की योजना है।
उन्होंने यह भी कहा कि अगर सरकार इस कानून को वापस नहीं लेती, तो सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की जाएगी।
क्या यह आंदोलन राजनीति से प्रेरित है?
सरकार के प्रवक्ताओं और कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह आंदोलन राजनीतिक एजेंडा हो सकता है। लेकिन Mahmud Pracha ने इस आरोप को सिरे से खारिज करते हुए कहा, “यह लड़ाई राजनीतिक नहीं, संवैधानिक है। हम भारत के संविधान के खिलाफ कुछ नहीं चाहते।”
धर्मनिरपेक्षता की परीक्षा?
भारत में धर्मनिरपेक्षता सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि एक संवैधानिक मूल्य है। Waqf Amendment Act को लेकर उठ रहे सवालों ने देश की धर्मनिरपेक्ष नींव को एक बार फिर चर्चा के केंद्र में ला खड़ा किया है।
क्या सरकार इस कानून पर पुनर्विचार करेगी? क्या सभी समुदायों की राय को सुना जाएगा? और क्या यह कानून देश की एकता और अखंडता को मजबूत करेगा या कमजोर?
Waqf Amendment Act पर विवाद जितना संवेदनशील है, उतना ही महत्वपूर्ण भी। यह केवल एक कानून नहीं, बल्कि उस विश्वास का परीक्षण है जिसे भारत ने संविधान के ज़रिए अपने नागरिकों को दिया है। Mahmud Pracha और उनके साथियों की यह लड़ाई, केवल एक समुदाय की नहीं, बल्कि समूचे लोकतंत्र की है।