कांग्रेस की सत्ता आई तो RSS पर लगेगा बैन? प्रियांक खड़गे के बयान से सियासत गर्म, इतिहासकार बोले—’पहले बजरंग दल पर कार्रवाई करो

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हाइलाइट्स 

  • 🔹 RSS Ban पर प्रियांक खड़गे का बयान, बोले—“कांग्रेस सत्ता में आई तो लगाएंगे प्रतिबंध”
  • 🔹 कर्नाटक के मंत्री के बयान से भाजपा और संघ समर्थकों में मची खलबली
  • 🔹 इतिहासकार अशोक कुमार पांडे बोले—“अगर RSS Ban की बात कर रहे हैं तो पहले बजरंग दल पर करें कार्रवाई”
  • 🔹 राजनीतिक गलियारों में बयान को बताया गया “ध्रुवीकरण की कोशिश”
  • 🔹 RSS Ban पर फिर छिड़ी वैचारिक और संवैधानिक बहस, क्या यह संभव है?

“सरकार में आए तो करेंगे RSS Ban” – प्रियांक खड़गे का बयान और बढ़ता विवाद

नई दिल्ली। देश की राजनीति एक बार फिर RSS Ban को लेकर गर्म हो गई है। कर्नाटक सरकार में मंत्री और कांग्रेस नेता प्रियांक खड़गे ने हाल ही में दिया एक बयान सियासी गलियारों में तीखी प्रतिक्रिया का कारण बन गया है। उन्होंने कहा कि यदि केंद्र में कांग्रेस की सरकार आती है, तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर प्रतिबंध लगाया जाएगा।

खड़गे के इस बयान को एक ओर कांग्रेस की वैचारिक स्थिति का प्रतिबिंब माना जा रहा है, वहीं दूसरी ओर भाजपा ने इसे “हिंदुत्व विरोधी मानसिकता” का परिचायक बताया है।

RSS Ban की बात पहली बार नहीं

 इतिहास में संघ पर पहले भी लग चुका है प्रतिबंध

RSS Ban कोई नई मांग नहीं है। भारत के इतिहास में अब तक तीन बार RSS पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है:

  1. 1948 में गांधी जी की हत्या के बाद
  2. 1975 में इमरजेंसी के दौरान
  3. 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद (अल्पकालिक प्रतिबंध)

इन सभी अवसरों पर RSS Ban अस्थायी रहा और कानूनी स्तर पर इसे लंबे समय तक कायम नहीं रखा जा सका। अब एक बार फिर यह मुद्दा कांग्रेस नेता द्वारा उठाया गया है।

 प्रियांक खड़गे ने क्या कहा?

कांग्रेस नेता और कर्नाटक सरकार में मंत्री प्रियांक खड़गे ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा:

“अगर केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनती है तो हम RSS Ban पर गंभीरता से विचार करेंगे। यह संगठन देश के सामाजिक ताने-बाने को तोड़ने का काम कर रहा है।”

उन्होंने यह भी कहा कि संविधान और सेक्युलरिज़्म की रक्षा के लिए संघ जैसे संगठनों पर कार्रवाई आवश्यक है।

इतिहासकार अशोक पांडे की तीखी प्रतिक्रिया – “बजरंग दल से क्यों नहीं शुरूआत?”

इतिहासकार और सामाजिक चिंतक अशोक कुमार पांडे ने प्रियांक खड़गे के बयान पर सवाल उठाते हुए कहा:

“बहुत अच्छी बात है कि कांग्रेस RSS Ban की बात कर रही है। लेकिन पहले कर्नाटक में अपने वादे के अनुसार बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाकर दिखाएं।”

उनका इशारा उस चुनावी वादे की ओर था जिसमें कांग्रेस ने कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि यदि वह सत्ता में आई तो बजरंग दल पर कार्रवाई करेगी।

RSS Ban – क्या संविधान इसकी इजाजत देता है?

भारत में संगठनों पर प्रतिबंध कैसे लगता है?

भारतीय कानून के तहत Unlawful Activities (Prevention) Act यानी UAPA के तहत सरकार किसी संगठन को प्रतिबंधित कर सकती है, यदि वह देश की एकता, अखंडता, और सार्वजनिक व्यवस्था को खतरे में डालता हो।

हालांकि, RSS Ban के मामले में यह आसान नहीं होगा क्योंकि:

  • RSS एक रजिस्टर्ड सामाजिक संगठन है
  • इसका राजनीतिक विंग (भाजपा) केंद्र में सत्तारूढ़ है
  • कोर्ट में इसे बार-बार “सामाजिक सेवा” से जुड़ा संगठन माना गया है

RSS Ban की मांग – वैचारिक लड़ाई या सियासी चाल?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि RSS Ban का मुद्दा एक तरह से कांग्रेस की वैचारिक पहचान को मज़बूत करने की कोशिश है। यह बात साफ है कि भाजपा और RSS की विचारधारा के विरोध में खड़े रहना कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा है।

लेकिन साथ ही, यह सवाल भी ज़रूरी हो जाता है—क्या यह चुनावी ध्रुवीकरण की रणनीति है या सच्चे लोकतंत्र की आवाज?

जनता की प्रतिक्रिया – सोशल मीडिया पर छिड़ी बहस

सोशल मीडिया पर RSS Ban को लेकर बहस छिड़ गई है। कुछ लोग इसे “संविधान की रक्षा के लिए ज़रूरी कदम” मान रहे हैं, जबकि अन्य इसे “राजनीतिक पाखंड” बता रहे हैं।

X (पूर्व ट्विटर) पर एक यूज़र ने लिखा:

“अगर बजरंग दल जैसे संगठनों पर कार्रवाई नहीं कर पा रहे, तो RSS Ban की बात सिर्फ हवा में तीर चलाना है।”

वहीं एक अन्य ने लिखा:

“RSS को बैन करने का मतलब है लाखों स्वयंसेवकों को अपराधी घोषित करना – यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक हो सकता है।”

RSS Ban का मुद्दा: राजनीतिक हथियार या सामाजिक सुधार?

प्रियांक खड़गे का RSS Ban पर बयान एक बार फिर इस बहस को सामने लाया है कि क्या वैचारिक विरोध को राजनीतिक प्रतिबंधों के जरिए नियंत्रित किया जा सकता है? क्या इस तरह के बयान समाज को जोड़ते हैं या और अधिक तोड़ते हैं?

देश की राजनीति में यह मुद्दा बार-बार उभरता रहा है, लेकिन सवाल यह है—क्या यह वास्तविक कार्रवाई की तरफ ले जाएगा या फिर केवल बयानबाज़ी तक सीमित रहेगा?

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