Third World War

अगर हुआ तीसरा विश्व युद्ध, तो कौन होंगे आमने-सामने? जानिए भारत किस पक्ष में खड़ा होगा

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हाइलाइट्स

  • तीसरा विश्व युद्ध (Third World War) की बढ़ती संभावना के बीच वैश्विक ताकतों के संभावित गठबंधन।
  • रूस-यूक्रेन संघर्ष और मिडिल ईस्ट में टकराव से अंतरराष्ट्रीय तनाव चरम पर।
  • भारत की गुट निरपेक्ष नीति और तृतीय विश्व युद्ध में उसकी भूमिका।
  • ऐतिहासिक रूप से दो विश्व युद्धों के विनाशकारी परिणाम और उनसे मिली सीख।
  • भविष्य में वैश्विक शांति बनाए रखने के लिए कूटनीति और सहयोग का महत्व।

तीसरा विश्व युद्ध (Third World War): एक बढ़ती हुई चिंता

दुनिया में वर्तमान समय में कई क्षेत्रीय संघर्ष और अंतरराष्ट्रीय तनाव तीव्र होते जा रहे हैं। रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध, मिडिल ईस्ट में तुर्किए और इजराइल के बीच हालिया हिंसा, तथा भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य टकराव जैसी घटनाएं वैश्विक शांति के लिए खतरा बन रही हैं। इसी बीच “Third World War” यानि तीसरे विश्व युद्ध की आशंका गंभीर होती जा रही है।

अगर यह युद्ध होता है तो यह न केवल क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक स्तर पर बड़े पैमाने पर तबाही और अस्थिरता लेकर आएगा। आइए समझते हैं कि कौन से देश किस गुट में होंगे और भारत की इस बड़े वैश्विक संकट में क्या भूमिका हो सकती है।

इतिहास की बड़ी चेतावनी: पहले दो विश्व युद्ध

पहला विश्व युद्ध (1914-1918)

पहला विश्व युद्ध मित्र राष्ट्रों और केंद्रीय शक्तियों के बीच लड़ा गया था, जिसमें करीब 20 मिलियन लोग मारे गए। इस युद्ध में फ्रांस, ब्रिटेन, रूस, अमेरिका और जापान जैसे देशों ने मिलकर जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी, ऑटोमन साम्राज्य और बुल्गारिया के खिलाफ संघर्ष किया।

दूसरा विश्व युद्ध (1939-1945)

दुनिया का सबसे विनाशकारी युद्ध, जिसमें लगभग 70-85 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई। इसमें धुरी राष्ट्र (जर्मनी, इटली, जापान) और मित्र राष्ट्र (अमेरिका, सोवियत संघ, ब्रिटेन, फ्रांस) के बीच भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध ने वैश्विक शक्ति संतुलन को पूरी तरह से बदल दिया।

Third World War के संभावित गठबंधन

पश्चिमी गुट

अमेरिका आज भी वैश्विक महाशक्ति है और यह रूस व चीन को सबसे बड़े प्रतिद्वंदी के रूप में देखता है। नाटो (NATO) के सदस्य देश जैसे ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और अन्य यूरोपीय देश अमेरिका के साथ मिलकर लड़ सकते हैं। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया, जापान और दक्षिण कोरिया भी इस गुट का हिस्सा हो सकते हैं।

पूर्वी गुट

रूस, चीन, उत्तर कोरिया, ईरान, सीरिया और कुछ अरब देश रूस के समर्थन में खड़े हो सकते हैं। ये देश राजनीतिक और सैन्य तौर पर एक दूसरे के साथ सहयोग बढ़ा रहे हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस के लिए चीन का समर्थन एक अहम संकेत है।

भारत की भूमिका और रुख

भारत की विदेश नीति हमेशा से “गुट निरपेक्षता” पर आधारित रही है। शीत युद्ध के दौरान भारत ने न तो अमेरिका के साथ और न ही सोवियत संघ के साथ पूर्ण गठबंधन किया। वर्तमान में भी भारत इसी नीति को अपनाए हुए है।

सुरक्षा और सीमाएं

भारत की प्राथमिकता अपनी सीमाओं की सुरक्षा और आंतरिक स्थिरता बनाए रखना है। हाल के वर्षों में भारत ने सैन्य ताकत बढ़ाई है और सीमा पर अपने दावों को मजबूत किया है। तीसरे विश्व युद्ध के संभावित संकट में भारत वैश्विक टकराव से दूर रहना चाहता है।

कूटनीतिक प्रयास

भारत कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर शांति और सहयोग की वकालत करता है। संयुक्त राष्ट्र, BRICS और अन्य वैश्विक संगठन भारत के लिए अपने रुख को स्थापित करने के प्रमुख माध्यम हैं। भारत तटस्थ रहकर युद्ध की विभीषिका से बचने का प्रयास करेगा।

वैश्विक शांति के लिए चुनौतियां और अवसर

चुनौतियां

  • बढ़ता सैन्य व्यय और हथियारों की होड़।
  • क्षेत्रीय संघर्षों का बड़े युद्ध में बदलने का खतरा।
  • राजनीतिक अस्थिरता और आपसी अविश्वास।

अवसर

  • कूटनीति और वार्ता के माध्यम से विवादों का समाधान।
  • वैश्विक आर्थिक सहयोग और विकास परियोजनाएं।
  • संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की भूमिका।

तीसरा विश्व युद्ध (Third World War) की आशंका एक गंभीर और चिंताजनक विषय है, जो आज के वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य की सच्चाई को दर्शाता है। रूस-यूक्रेन युद्ध, मिडिल ईस्ट में संघर्ष और भारत-पाकिस्तान के तनाव इस संभावित युद्ध के संकेतक हैं।

भारत, अपनी गुट निरपेक्ष नीति के कारण, वैश्विक टकराव से दूरी बनाकर अपने हितों की रक्षा करने का प्रयास करेगा। इसके साथ ही, दुनिया भर के देशों को भी चाहिए कि वे आपसी मतभेदों को संवाद से सुलझाएं और विश्व शांति बनाए रखने की दिशा में काम करें।

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