NCERT ने हटाया ‘मुग़ल और दिल्ली सल्तनत’ का चैप्टर: क्या यह भारतीय इतिहास के साथ छेड़छाड़ है?

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हाइलाइट्स:

  • NCERT ने सोशल साइंस की किताब से हटाया ‘मुग़ल और दिल्ली सल्तनत’ का चैप्टर, जिसे लेकर अब बड़े विवाद की स्थिति बन गई है।
  • यह कदम शिक्षा प्रणाली के इतिहास संबंधी दृष्टिकोण पर महत्वपूर्ण सवाल खड़ा करता है।
  • कई इतिहासकार और शिक्षा विशेषज्ञ इसे भारतीय इतिहास के तथ्यों से छेड़छाड़ मान रहे हैं।
  • बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही इस मामले में अलग-अलग रुख़ अपनाए हुए हैं।
  • क्या यह कदम भारतीय छात्रों को सटीक और संतुलित इतिहास सिखाने के प्रयास का हिस्सा है या फिर इसे राजनीति से जोड़कर देखा जा सकता है?

NCERT की किताब से ‘मुग़ल और दिल्ली सल्तनत’ का चैप्टर क्यों हटाया गया?

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने अपनी सोशल साइंस की किताब से ‘मुग़ल और दिल्ली सल्तनत’ का चैप्टर हटा लिया है। इस कदम से देशभर में चर्चाएँ और विवाद शुरू हो गए हैं। यह निर्णय भारतीय इतिहास को किस दिशा में ले जाएगा, इस पर गहरी चिंताएँ उठ रही हैं।

विवाद का कारण: शिक्षा नीति और ऐतिहासिक दृष्टिकोण

‘मुग़ल और दिल्ली सल्तनत’ के अध्याय को हटाए जाने के पीछे कई तर्क दिए जा रहे हैं। कुछ शिक्षाविद् और इतिहासकार इसे भारतीय शिक्षा प्रणाली के इतिहास संबंधी दृष्टिकोण में बदलाव के रूप में देख रहे हैं। वे यह मानते हैं कि यह कदम भारतीय इतिहास को एक विशेष दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने की कोशिश हो सकती है, जो समग्र और संतुलित न हो।

इस बदलाव के पीछे NCERT का दावा है कि यह सुधार भारतीय पाठ्यक्रम को अधिक समकालीन और प्रासंगिक बनाने के लिए किया गया है। इसके अनुसार, कुछ ऐसे विषय हैं जो छात्रों के लिए अधिक उपयुक्त और आवश्यक हैं, और जो समकालीन भारत के विकास के दृष्टिकोण से अधिक महत्वपूर्ण हैं।

राजनीतिक दृष्टिकोण और इसके प्रभाव

‘मुग़ल और दिल्ली सल्तनत’ जैसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक चैप्टर को हटाए जाने का राजनीतिक पक्ष भी महत्वपूर्ण है। यह बदलाव खासतौर पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) के उस दृष्टिकोण से मेल खाता है, जो भारतीय इतिहास को सांस्कृतिक और राष्ट्रीयता के दृष्टिकोण से पुनः परिभाषित करने की कोशिश कर रही है। बीजेपी के नेताओं का कहना है कि यह कदम भारत के गौरवशाली इतिहास को उजागर करने की दिशा में है, जो कुछ खास समय और शासनकाल की बजाय समग्र भारतीय संस्कृति को प्राथमिकता देगा।

वहीं, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इस कदम को ‘राजनीतिकरण’ और ‘तथ्यों से छेड़छाड़’ के रूप में देख रहे हैं। उनका मानना है कि भारतीय इतिहास का एक हिस्सा होने के नाते मुगलों और दिल्ली सल्तनत का योगदान अनदेखा नहीं किया जा सकता।

इतिहासकारों और शिक्षाविदों की प्रतिक्रिया

इतिहासकारों और शिक्षाविदों का मानना है कि यह निर्णय भारतीय छात्रों को एक पक्षीय दृष्टिकोण से इतिहास सिखाने का प्रयास हो सकता है। Dr. Irfan Habib जैसे इतिहासकार इस बदलाव का विरोध करते हुए कहते हैं कि ‘मुग़ल और दिल्ली सल्तनत’ भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, और उन्हें पाठ्यक्रम से बाहर करना भारतीय इतिहास के सही चित्र को विकृत कर सकता है।

इसी प्रकार, Dr. Romila Thapar ने भी इस निर्णय की आलोचना की है। उनका कहना है कि इस तरह के बदलाव से छात्रों में ऐतिहासिक तथ्यों के प्रति सही समझ विकसित नहीं हो पाएगी।

छात्रों पर इसका प्रभाव

यदि यह बदलाव लागू किया जाता है, तो इसका प्रभाव छात्रों पर भी पड़ेगा। ‘मुग़ल और दिल्ली सल्तनत’ का अध्याय भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में प्रस्तुत किया गया था, जो भारतीय संस्कृति, राजनीति और समाज पर गहरा असर डालने वाला था। इसके हटने से छात्रों के पास इस युग की समझ का अभाव हो सकता है।

इसके अलावा, यह कदम ऐतिहासिक घटनाओं को समझने के छात्रों के लिए कठिन बना सकता है। जैसे कि ‘मुग़ल साम्राज्य’ और ‘दिल्ली सल्तनत’ के शासन के दौरान भारतीय समाज पर जो प्रभाव पड़ा, उसे समझने की आवश्यकता है, जिसे बिना इस अध्याय के ठीक से नहीं समझा जा सकता।

क्या यह बदलाव भारतीय समाज के लिए सकारात्मक होगा?

कुछ लोग इसे भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक आवश्यक सुधार मानते हैं, जबकि अन्य इसे ऐतिहासिक तथ्यों को नकारने के रूप में देख रहे हैं। शिक्षा और इतिहास के क्षेत्र में इस बदलाव का प्रभाव आने वाले समय में भारतीय समाज के दृष्टिकोण को प्रभावित कर सकता है।

यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या NCERT इस कदम से भारतीय इतिहास को इस तरह प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा है जो राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक पहचान को बढ़ावा देता हो, या फिर यह कदम वास्तव में शिक्षा प्रणाली में सुधार की दिशा में लिया गया एक प्रयास है।

अंतिम विचार

NCERT की सोशल साइंस की किताब से ‘मुग़ल और दिल्ली सल्तनत’ का चैप्टर हटाए जाने के निर्णय से भारतीय शिक्षा प्रणाली और इतिहास को लेकर एक बड़ी बहस शुरू हो गई है। इसे लेकर अलग-अलग दृष्टिकोण सामने आ रहे हैं। जबकि कुछ लोग इसे भारतीय शिक्षा के लिए एक सकारात्मक बदलाव मानते हैं, वहीं कुछ इसे इतिहास की सटीकता से छेड़छाड़ के रूप में देख रहे हैं।

यह विवाद भविष्य में और भी गहराई पकड़ सकता है, और यह देखना होगा कि आने वाले समय में सरकार और शिक्षा विभाग इस मुद्दे पर किस दिशा में निर्णय लेते हैं।

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