हाइलाइट्स:
- Local Kashmiris पर गंभीर आरोप, कथित रूप से हमलावरों की मदद का मामला आया सामने
- कश्मीर घाटी में पहचान पूछकर हत्या करने की घटनाओं ने फैलाई दहशत
- स्थानीय विक्रेताओं के अचानक गायब होने पर शक की सुई बढ़ी
- पीड़ितों के परिवारों का आरोप—”केवल नाम और धर्म के आधार पर बनाई गई मौत की सूची”
- मामले पर केंद्र सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की चुप्पी बनी चिंता का कारण
घाटी में धर्म के आधार पर चुनकर हत्या: एक डरावनी सच्चाई
कश्मीर घाटी में हाल ही में सामने आए एक भयावह घटनाक्रम ने देश भर को हिलाकर रख दिया है। स्थानीय रिपोर्ट्स और चश्मदीद गवाहों के अनुसार, कुछ हमलावरों ने निर्दोष यात्रियों को उनके धर्म की पुष्टि के लिए कलमा पढ़ने को कहा, और यदि वे ऐसा न कर सके, तो उनकी पैंट उतरवा कर धार्मिक पहचान की पुष्टि की गई। इस प्रक्रिया के बाद, जिनकी पहचान ‘गैर-मुस्लिम’ के रूप में हुई, उन्हें बेरहमी से गोली मार दी गई।
इस भयावह कृत्य के दौरान Local Kashmiris की संलिप्तता पर भी गंभीर आरोप लगे हैं। कई स्थानीय निवासियों का कहना है कि कुछ विक्रेताओं और दुकानदारों ने इन हमलावरों को संदिग्ध व्यक्तियों की पहचान बताई, जिससे यह नरसंहार संभव हो सका।
स्थानीय लोगों की भूमिका पर सवाल
कई चश्मदीदों का दावा है कि Local Kashmiris ने हमलावरों को हिंदू यात्रियों की पहचान बताई। यह जानकारी हमलावरों के लिए निर्णायक साबित हुई।
संदिग्ध स्थानीय विक्रेताओं का गायब होना
मामले के बाद घाटी में कई स्थानीय विक्रेता अचानक अपने ठिकानों से लापता हो गए। पुलिस को शक है कि इनका सीधा संबंध हमलों से हो सकता है। हालांकि, इस बारे में अब तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
पहचान के आधार पर हत्या: क्या ये एक प्री-प्लान था?
गंभीर बात यह है कि इन हत्याओं को योजनाबद्ध ढंग से अंजाम दिया गया। घटनास्थलों पर किसी भी तरह की लूट या विरोध का कोई प्रमाण नहीं मिला। यह स्पष्ट करता है कि हत्या का एकमात्र उद्देश्य धर्म आधारित पहचान था।
ट्रिगर क्या था?
कई जानकारों का मानना है कि यह घटना हालिया राजनीतिक उथल-पुथल और कुछ कट्टरपंथी संगठनों के प्रचार का परिणाम है, जो घाटी में विभाजन और नफरत को बढ़ावा दे रहे हैं।
पीड़ितों के परिवारों की व्यथा: “हमें सिर्फ हिंदू होने की सजा मिली”
दिल्ली निवासी नरेश मेहता, जिनके भाई इस हमले में मारे गए, कहते हैं:
न्याय की उम्मीद
पीड़ित परिवारों ने केंद्र सरकार से CBI जांच की मांग की है और कहा है कि इस मामले में शामिल Local Kashmiris की भूमिका को भी पूरी गंभीरता से जांचा जाए।
सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की चुप्पी: बड़ा सवाल
इस क्रूर घटना के बाद केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने सीमित बयान जारी किए हैं। सवाल यह उठता है कि क्या अब समय नहीं आ गया है जब Local Kashmiris की भूमिका को लेकर भी कठोर जांच शुरू की जाए?
क्या यह केवल कुछ कट्टरपंथियों का काम था?
विशेषज्ञों का कहना है कि पूरी कश्मीरी आबादी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, परंतु ऐसे मामलों में जो स्थानीय सहयोग मिला है, उस पर चुप रहना न्याय के खिलाफ है।
घाटी की स्थिति और आगे की राह
कश्मीर एक बार फिर अस्थिरता की ओर बढ़ रहा है। Local Kashmiris को चाहिए कि वे खुद सामने आकर ऐसी घटनाओं की निंदा करें और दोषियों की पहचान में सहयोग करें।
संवाद की जरूरत
सांप्रदायिकता और धार्मिक पहचान के नाम पर हत्या जैसी घटनाएं केवल भारत के ताने-बाने को कमजोर करती हैं। ऐसे में संवाद और सद्भाव ही एकमात्र समाधान है।