हाइलाइट्स
- भारत चीन संबंध हाल ही में एससीओ समिट में चर्चा का मुख्य केंद्र बने, जहां नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात ने नए संकेत दिए।
- रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ मोदी और शी जिनपिंग की मुस्कुराती तस्वीर ने वैश्विक संदेश दिया।
- पाकिस्तान इस समिट में अलग-थलग नजर आया, जबकि चीन और भारत की नजदीकियों पर सबकी नजरें टिकी रहीं।
- पाकिस्तान ने एमएल-1 रेलवे परियोजना के लिए चीन को दरकिनार कर एडीबी से मदद मांगने का फैसला किया।
- चीन और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में आई खटास ने दक्षिण एशिया की राजनीति और अर्थव्यवस्था पर असर डाला है।
भारत चीन संबंध हमेशा से एशिया और दुनिया की राजनीति में अहम भूमिका निभाते रहे हैं। हाल ही में चीन में आयोजित एससीओ समिट ने एक बार फिर इन संबंधों को सुर्खियों में ला दिया। इस बैठक के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात ने वैश्विक स्तर पर नए संदेश दिए। साथ ही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मौजूदगी ने इस मुलाकात को और ज्यादा अहम बना दिया।
इस समिट से निकलने वाला सबसे बड़ा संदेश यह था कि भारत चीन संबंध अगर सही दिशा में बढ़ते हैं, तो न सिर्फ एशिया बल्कि पूरी दुनिया की राजनीति और अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डाल सकते हैं।
एससीओ समिट और भारत चीन संबंध की अहमियत
वैश्विक स्तर पर प्रभाव
एससीओ समिट में भारत चीन संबंध को लेकर जिस तरह के संकेत मिले, उन्होंने अमेरिका समेत पश्चिमी देशों को सतर्क कर दिया। मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात ने यह साफ कर दिया कि दोनों देशों के पास एक-दूसरे को सहयोग देने के कई विकल्प हैं।
भारत जहां अपने सामान के लिए नए बाजार ढूंढ सकता है, वहीं चीन अपनी वस्तुओं के लिए नए खरीदार तलाश सकता है। यही कारण है कि भारत चीन संबंध को लेकर पूरी दुनिया की नजरें इस बैठक पर टिकी रहीं।
रूस का समर्थन और तस्वीर का संदेश
इस समिट में सबसे चर्चित रही वह तस्वीर, जिसमें नरेंद्र मोदी, शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन हंसते हुए दिखाई दिए। इस तस्वीर ने दुनिया को संदेश दिया कि भारत चीन संबंध अब रूस के समर्थन के साथ और मजबूत हो सकते हैं। यह एक तरह से पश्चिमी देशों के लिए चेतावनी भी थी कि अगर उन्होंने दबाव बनाने की कोशिश की तो एशिया की बड़ी शक्तियां मिलकर जवाब दे सकती हैं।
पाकिस्तान का अलग-थलग पड़ना
चीन पाकिस्तान रिश्तों में दरार
इस समिट में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ अलग-थलग नजर आए। लंबे समय से चीन पाकिस्तान का सबसे बड़ा सहयोगी माना जाता रहा है, लेकिन अब हालात बदलते दिख रहे हैं।
पाकिस्तान ने हाल ही में एमएल-1 रेलवे परियोजना के लिए चीन से मदद लेने की बजाय एशियाई विकास बैंक (ADB) का रुख किया। यह परियोजना कभी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का सबसे बड़ा हिस्सा मानी जाती थी।
पाकिस्तान की आर्थिक मजबूरी
पाकिस्तान इस समय आर्थिक संकट से जूझ रहा है और दुनिया के अलग-अलग देशों से कर्ज मांग रहा है। ऐसे में चीन का पीछे हटना और पाकिस्तान का ADB के पास जाना यह संकेत देता है कि भारत चीन संबंध के मुकाबले चीन पाकिस्तान संबंध कमजोर हो रहे हैं।
भारत चीन संबंध के बदलते समीकरण
व्यापार और निवेश के नए अवसर
भारत चीन संबंध सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं हैं, बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी बेहद अहम हैं। अगर दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ता है तो व्यापार और निवेश के नए अवसर खुल सकते हैं।
भारत एक विशाल बाजार है और चीन दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक। इन दोनों की साझेदारी वैश्विक व्यापार को नई दिशा दे सकती है।
सुरक्षा और रणनीतिक पहलू
हालांकि भारत चीन संबंध कई बार सीमा विवाद और सुरक्षा मुद्दों की वजह से तनावपूर्ण भी रहे हैं, लेकिन एससीओ समिट ने यह उम्मीद जगाई कि दोनों देश आपसी मतभेदों को पीछे छोड़कर सहयोग की नई शुरुआत कर सकते हैं।
विशेषज्ञों की राय
विशेषज्ञों का मानना है कि एससीओ समिट से जो तस्वीर सामने आई, वह सिर्फ कूटनीति का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि इसके पीछे गहरी रणनीति छिपी थी।
- चीन पाकिस्तान से दूरी बनाकर भारत के करीब आने की कोशिश कर रहा है।
- भारत चीन संबंध अगर मजबूत होते हैं तो एशिया में नई शक्ति संतुलन की शुरुआत हो सकती है।
- अमेरिका और पश्चिमी देशों के लिए यह एक चुनौती होगी कि वे इस गठजोड़ का कैसे सामना करेंगे।
भारत चीन संबंध इस समय वैश्विक राजनीति के केंद्र में हैं। एससीओ समिट ने यह साफ कर दिया कि अगर भारत और चीन एकजुट होते हैं तो दुनिया की ताकतों का संतुलन बदल सकता है। पाकिस्तान का अलग-थलग पड़ना और चीन का भारत की ओर झुकाव इस दिशा में अहम संकेत हैं।
आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत चीन संबंध किस दिशा में बढ़ते हैं और इसका असर एशिया के साथ-साथ पूरी दुनिया पर कैसे पड़ता है।