हाइलाइट्स
- नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज (NAFLD) भारत में तेजी से फैल रही गंभीर बीमारी
- AIIMS की स्टडी में खुलासा: दुनिया के 25% लोग NAFLD से प्रभावित
- मोटापा, डायबिटीज और मेटाबॉलिक सिंड्रोम इसके प्रमुख कारण
- बच्चों और युवाओं में भी बढ़ रहा है NAFLD का खतरा
- विशेषज्ञों ने दी सलाह: लाइफस्टाइल सुधारें, तेल और जंक फूड से परहेज करें
नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज: भारत में लिवर की खामोश तबाही
क्या है नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज (NAFLD)?
नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज (NAFLD) एक ऐसी मेडिकल स्थिति है, जिसमें व्यक्ति शराब का सेवन किए बिना भी लिवर में चर्बी जमा होने लगती है। यह समस्या धीरे-धीरे गंभीर होती जाती है और अंतिम अवस्था में लिवर कैंसर या लिवर फेलियर का रूप भी ले सकती है।
NAFLD की शुरुआती अवस्था सामान्य प्रतीत हो सकती है, लेकिन यह धीरे-धीरे नॉन-अल्कोहॉलिक स्टिएटोहेपेटाइटिस (NASH), फाइब्रोसिस, सिरोसिस और अंततः लिवर कैंसर तक ले जा सकती है।
AIIMS की स्टडी ने खोली आंखें
AIIMS दिल्ली के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉक्टर प्रमोद गर्ग और उनकी टीम द्वारा की गई रिसर्च में खुलासा हुआ है कि दुनिया की 25% आबादी नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज से प्रभावित है। यह रिसर्च जर्नल ऑफ क्लीनिकल एंड एक्सपेरिमेंटल हेपटोलॉजी में प्रकाशित हुई है।
स्टडी के अनुसार, मिडिल ईस्ट और साउथ अमेरिका में NAFLD के मामले सबसे ज्यादा हैं, जबकि अफ्रीका में यह रोग अपेक्षाकृत कम देखा गया है। 2017 की एक रिपोर्ट बताती है कि हर साल लगभग 3.67 लाख नए NASH के मामले सामने आ रहे हैं, जो 1990 की तुलना में दोगुने हैं।
भारत में नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज की स्थिति
किसे है सबसे ज्यादा खतरा?
विशेषज्ञों का मानना है कि निम्नलिखित समूहों में NAFLD का खतरा सबसे अधिक होता है:
- डायबिटीज के मरीज: 55-60% तक
- मोटापे से पीड़ित: 65-95% तक
- मेटाबॉलिक सिंड्रोम वाले: 73% तक
इन तीनों स्थितियों में शरीर की चर्बी, शुगर लेवल और मेटाबॉलिज्म गड़बड़ हो जाता है, जिससे नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज की संभावना बढ़ जाती है।
बच्चों में भी बढ़ रही है बीमारी
चौंकाने वाली बात यह है कि यह बीमारी अब बच्चों को भी अपना शिकार बना रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार, 7.3% से 22.4% तक स्वस्थ बच्चों में भी नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज के लक्षण मिल रहे हैं। यह बीमारी उम्र के साथ गंभीर रूप ले लेती है और शुरुआती अवस्था में इसका पता चलना बेहद मुश्किल होता है।
गलत जीवनशैली बन रही है बड़ी वजह
AIIMS डॉक्टरों की चेतावनी
डॉ. दीपक गुंजन, डॉ. गोविंद माखरिया और डॉ. साग्निक बिस्वास जैसे विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया है कि जीवनशैली की गड़बड़ी ही इस बीमारी का सबसे बड़ा कारण है।
“लोगों को खाने में तेल की मात्रा 10% तक कम करनी चाहिए। यह न सिर्फ लिवर के लिए, बल्कि दिल, डायबिटीज और कैंसर जैसी बीमारियों के जोखिम को भी कम करता है।” — डॉ. दीपक गुंजन
NAFLD से बचाव के उपाय
हेल्दी थ्री फॉर्म्युला
- हेल्दी डाइट:
- आधी प्लेट में हरी सब्ज़ियां और फल
- ट्रांस फैट और पैकेज्ड फूड से बचाव
- एक्सरसाइज:
- रोजाना 30-40 मिनट व्यायाम
- वॉकिंग, रनिंग, योग और खेलकूद
- हेल्दी स्लीप:
- समय पर सोना और जागना
- तनाव कम करना
नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज का इलाज
सिर्फ दवा नहीं, लाइफस्टाइल जरूरी
डॉ. साग्निक बिस्वास के अनुसार, NAFLD का इलाज केवल दवाओं से संभव नहीं है। इसके लिए हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाना जरूरी है। यदि मरीज को पहले से डायबिटीज, मोटापा या स्लीप एपनिया जैसी समस्याएं हैं, तो डॉक्टर अतिरिक्त दवाएं दे सकते हैं।
“लाइफस्टाइल में सुधार, वजन पर नियंत्रण और संतुलित आहार ही NAFLD का सबसे कारगर इलाज है।” — डॉ. साग्निक बिस्वास
कैसे करें शुरुआती पहचान?
- अल्ट्रासाउंड:
लिवर में चर्बी की मात्रा का पता लगाया जा सकता है - लिवर फंक्शन टेस्ट (LFT):
लिवर की कार्यप्रणाली का विश्लेषण किया जाता है - स्टेजिंग:
NAFLD चार स्टेज में होती है, जिसमें अंतिम स्टेज सिरोसिस है
इन बातों का जरूर रखें ध्यान
- शराब पूरी तरह छोड़ें:
शराब लिवर को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाती है - वजन और डाइट पर नियंत्रण:
सही डाइट और एक्सरसाइज से लिवर की हालत सुधारी जा सकती है - समय-समय पर मेडिकल चेकअप:
खासकर डायबिटीज, मोटापा और हाई BP वाले लोग
भारतीय खानपान में सुधार जरूरी
डॉ. शालीमार बताते हैं कि भारतीय डाइट में अक्सर कार्बोहाइड्रेट और फैट की मात्रा ज्यादा होती है, जबकि प्रोटीन और फाइबर कम। जंक फूड, पैकेज्ड स्नैक्स और ट्रांस फैट इस संतुलन को और बिगाड़ते हैं।
“हर थाली में संतुलन जरूरी है—हरी सब्जियां, फल, साबुत अनाज, और कम फैट वाली चीजें शामिल करें।” — डॉ. शालीमार
समय रहते चेत जाएं
नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज एक खामोश लेकिन घातक बीमारी है, जो भारत में तेजी से अपने पैर पसार रही है। इस पर नियंत्रण के लिए सरकारी नीतियों के साथ-साथ आम लोगों की जागरूकता और जीवनशैली में बदलाव की सख्त जरूरत है। समय रहते चेत जाना ही इसका सबसे बड़ा इलाज है।