हाइलाइट्स
- डायबिटीज के मरीजों की बढ़ती संख्या देश में स्वास्थ्य संकट का संकेत दे रही है
- असंतुलित खानपान और जीवनशैली बनी सबसे बड़ी वजह
- युवाओं और बच्चों में भी तेजी से बढ़ रहे हैं मधुमेह के मामले
- इंसुलिन पर निर्भरता और अंगों को होने वाले नुकसान से बढ़ रही चिंता
- आयुर्वेदिक उपाय और संयमित जीवनशैली से संभव है रोग पर नियंत्रण
डायबिटीज के मरीजों की बढ़ती संख्या आज न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक गंभीर स्वास्थ्य संकट बन चुकी है। शुगर या मधुमेह अब कोई उम्र से जुड़ी बीमारी नहीं रही, बल्कि यह तेजी से युवाओं, किशोरों और यहां तक कि छोटे बच्चों को भी अपनी चपेट में ले रही है। बदलती जीवनशैली, मानसिक तनाव, और सबसे अहम — असंतुलित खानपान — इस रोग के फैलाव के प्रमुख कारण बन रहे हैं।
भारत को आज ‘डायबिटीज की राजधानी’ कहा जा रहा है। इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन के अनुसार, भारत में 10 करोड़ से अधिक लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं, और इनमें से आधे से अधिक लोगों को यह पता ही नहीं है कि उन्हें यह बीमारी है।
डायबिटीज क्या है और यह कैसे होती है?
डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर में ब्लड शुगर का स्तर सामान्य से अधिक हो जाता है। इसका प्रमुख कारण होता है इंसुलिन हार्मोन की कमी या उसके प्रति शरीर की प्रतिक्रिया में बदलाव। इंसुलिन वह हार्मोन है जो ग्लूकोज को शरीर की कोशिकाओं में पहुंचाता है ताकि वह ऊर्जा के रूप में उपयोग हो सके।
डायबिटीज के दो मुख्य प्रकार:
- टाइप 1 डायबिटीज: यह आमतौर पर बच्चों और किशोरों में होता है। इसमें शरीर इंसुलिन बनाना बंद कर देता है।
- टाइप 2 डायबिटीज: यह अधिकतर वयस्कों में होता है और यह शरीर में इंसुलिन की कमी या उसका सही उपयोग न होने के कारण होता है।
क्यों बढ़ रही है डायबिटीज के मरीजों की संख्या?
असंतुलित खानपान
जंक फूड, अधिक चीनी, तले हुए भोजन और प्रोसेस्ड फूड का अधिक सेवन डायबिटीज के मरीजों की बढ़ती संख्या के पीछे का सबसे बड़ा कारण है।
शारीरिक निष्क्रियता
आज की डिजिटल जीवनशैली में शारीरिक श्रम कम हो गया है। घंटों बैठे रहने और व्यायाम न करने से शरीर की इंसुलिन संवेदनशीलता घट जाती है।
तनाव और नींद की कमी
लगातार मानसिक दबाव और नींद की कमी हार्मोनल असंतुलन को जन्म देती है, जिससे ब्लड शुगर का स्तर असामान्य हो सकता है।
पारिवारिक इतिहास
अगर माता-पिता को डायबिटीज है तो अगली पीढ़ी को इसका खतरा अधिक होता है।
डायबिटीज के लक्षण – इन संकेतों को न करें नजरअंदाज
- अत्यधिक प्यास लगना
- बार-बार पेशाब आना
- थकान और कमजोरी
- वजन का तेजी से घटना या बढ़ना
- घावों का धीरे भरना
- त्वचा में खुजली और संक्रमण
इन लक्षणों में से कोई भी लक्षण लंबे समय तक दिखे तो ब्लड शुगर की जांच जरूर कराएं।
क्या खानपान बना रहा है आपको शुगर का शिकार?
कौन से खाद्य पदार्थ बढ़ाते हैं खतरा?
- मीठे पेय पदार्थ जैसे कोल्ड ड्रिंक, पैक्ड जूस
- व्हाइट ब्रेड, बिस्किट, मैदे से बनी चीज़ें
- प्रोसेस्ड फूड, जैसे चिप्स, फास्ट फूड
- अत्यधिक तेल, घी और मक्खन का सेवन
कौन से खाद्य पदार्थ हैं फायदेमंद?
- साबुत अनाज जैसे ओट्स, ब्राउन राइस
- हरी सब्जियां और कम शर्करा वाले फल
- मेथी, दालचीनी, करेला – प्राकृतिक शुगर कंट्रोलर
- प्रोटीन युक्त खाद्य जैसे दालें, अंडा, टोफू
युवाओं और बच्चों में डायबिटीज – खतरे की घंटी
डायबिटीज के मरीजों की बढ़ती संख्या अब केवल बुजुर्गों तक सीमित नहीं रही। मोबाइल, वीडियो गेम्स और स्क्रीन की लत ने बच्चों को शारीरिक रूप से निष्क्रिय बना दिया है। साथ ही स्कूल कैंटीन में जंक फूड की उपलब्धता बच्चों को अस्वास्थ्यकर खानपान की ओर खींच रही है।
एक अध्ययन के अनुसार, भारत में 5 से 15 वर्ष की आयु के बच्चों में टाइप 2 डायबिटीज के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। यह स्थिति भविष्य के लिए गंभीर चेतावनी है।
डायबिटीज का असर शरीर पर – सिर्फ ब्लड शुगर ही नहीं
- हृदय रोग का खतरा बढ़ता है
- किडनी फेलियर का जोखिम
- नेत्र विकार, यहां तक कि अंधापन
- नर्व डैमेज, जिससे पैर सुन्न पड़ सकते हैं
- गर्भावस्था में जटिलताएं (गैस्टेशनल डायबिटीज)
डायबिटीज को रोकना और नियंत्रण – कैसे संभव है?
नियमित जांच
30 वर्ष की उम्र के बाद साल में कम से कम एक बार ब्लड शुगर की जांच करानी चाहिए।
संतुलित जीवनशैली
रोज़ाना 30 मिनट की वॉक या योगासन, सात से आठ घंटे की नींद और तनाव प्रबंधन आवश्यक है।
आहार पर नियंत्रण
डायबिटीज के मरीजों की बढ़ती संख्या को रोकने के लिए अपने भोजन की गुणवत्ता और मात्रा पर ध्यान देना ज़रूरी है।
आयुर्वेदिक उपाय
- मेथी के बीज रात में भिगोकर सुबह सेवन करें
- करेले का जूस सप्ताह में 2-3 बार पीना लाभकारी
- दालचीनी पाउडर को गुनगुने पानी में मिलाकर पिएं
आज की भागदौड़ भरी दुनिया में डायबिटीज के मरीजों की बढ़ती संख्या एक गंभीर चेतावनी है। यह बीमारी न केवल शरीर बल्कि जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करती है। लेकिन अच्छी खबर यह है कि यह एक ऐसी बीमारी है जिसे समय रहते रोका और नियंत्रित किया जा सकता है। अगर हम अपने खानपान, दिनचर्या और सोच में बदलाव लाएं, तो हम न केवल इस रोग से बच सकते हैं, बल्कि दूसरों के लिए भी एक उदाहरण बन सकते हैं।