बाराबंकी के प्रसिद्ध शिव मंदिर में दलित युवक पर कहर: क्या पूजा करने की सजा थी उसकी जाति?

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हाइलाइट्स

  • Temple Caste Violence का मामला बाराबंकी के लोधेश्वर महादेव मंदिर से सामने आया
  • दलित युवक को पूजा से रोकते हुए पुजारी पक्ष ने की मारपीट, अस्पताल में भर्ती
  • आरोपी बोले: “तुम चमार हो, तुमसे पूजा नहीं होगी”, जातिसूचक गालियों का भी आरोप
  • दलितों के धार्मिक अधिकारों पर हमले को लेकर सामाजिक संगठनों में आक्रोश
  • पुलिस ने एफआईआर दर्ज की, मामले की जांच जारी

 क्या है पूरा मामला?

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के रामनगर थाना क्षेत्र स्थित लोधेश्वर महादेव मंदिर में गुरुवार रात एक Temple Caste Violence की घटना ने सबको झकझोर कर रख दिया। पीड़ित शैलेंद्र प्रताप गौतम, जो एक दलित समुदाय से आते हैं, मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने गए थे। लेकिन वहां मौजूद पुजारी पक्ष के तीन युवकों—अखिल तिवारी, शुभम तिवारी और आदित्य तिवारी ने न केवल उन्हें पूजा करने से रोका, बल्कि जातिसूचक गालियां देते हुए उनकी बेरहमी से पिटाई भी की

पीड़ित युवक को गंभीर अवस्था में जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है। पीड़ित ने साफ तौर पर आरोप लगाया कि हमलावरों ने पूजा सामग्री जैसे लोटा और घंटा से हमला किया, जिससे सिर और शरीर पर गहरी चोटें आई हैं।

धार्मिक स्थलों पर दलितों के साथ ऐसा व्यवहार क्यों?

भारत में मंदिरों को आध्यात्मिकता और समरसता का प्रतीक माना जाता है, लेकिन बाराबंकी की यह घटना एक बार फिर साबित करती है कि Temple Caste Violence आज भी हमारे समाज में ज़िंदा है। यह न केवल एक व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है, बल्कि संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन है।

दलितों को मंदिरों में पूजा करने से रोकना कोई नई बात नहीं है। कई राज्यों से ऐसी घटनाएं अक्सर सामने आती रही हैं, जिनमें निचली जातियों के लोगों को मंदिरों में घुसने या पूजा करने से रोका जाता है।

पीड़ित का बयान: “मैं चिल्ला रहा था, लेकिन कोई नहीं आया मदद को”

शैलेंद्र प्रताप ने मीडिया से बात करते हुए कहा,

“मैं हर साल लोधेश्वर महादेव मंदिर जाता हूं। इस बार भी शिवरात्रि से पहले पूजा करने गया था। लेकिन तिवारी बंधुओं ने मुझे पहचान कर कहा – ‘तू चमार बिरादरी से है, यहां पूजा नहीं कर सकता।’ जब मैंने विरोध किया, तो उन्होंने मेरे सिर पर लोटा मारा और घंटा उठाकर पीटना शुरू कर दिया। मैं मदद के लिए चिल्लाया, लेकिन मंदिर में मौजूद किसी ने भी हस्तक्षेप नहीं किया।”

पुलिस की कार्रवाई: एफआईआर दर्ज, आरोपियों की तलाश

घटना की सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और घायल शैलेंद्र को अस्पताल में भर्ती कराया गया। रामनगर थाने में धारा 323, 504, 506 और SC/ST एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज की गई है। Temple Caste Violence को गंभीरता से लेते हुए पुलिस ने बताया कि आरोपियों की तलाश की जा रही है और जल्द ही उन्हें गिरफ़्तार कर लिया जाएगा।

सामाजिक संगठनों का विरोध प्रदर्शन

घटना के बाद सामाजिक न्याय संगठन और दलित अधिकार कार्यकर्ताओं ने मंदिर परिसर के बाहर प्रदर्शन शुरू कर दिया है।
भारतीय दलित महासभा के प्रदेश अध्यक्ष रमेश पासवान ने कहा,

“यह सिर्फ एक व्यक्ति पर हमला नहीं है, यह पूरे समुदाय के धार्मिक अधिकारों पर हमला है। हम मांग करते हैं कि इस Temple Caste Violence में लिप्त लोगों को फास्ट ट्रैक कोर्ट में पेश किया जाए और कड़ी सजा दी जाए।”

लोधेश्वर महादेव मंदिर की ऐतिहासिकता

लोधेश्वर महादेव मंदिर को बाराबंकी का सबसे पौराणिक शिव मंदिर माना जाता है, जहां हर साल लाखों श्रद्धालु शिवरात्रि के दौरान पूजा-अर्चना करने आते हैं। लेकिन ऐसी घटनाएं मंदिर की प्रतिष्ठा को धूमिल करती हैं और धार्मिक स्थलों को विवादों में घसीटती हैं।

सरकार की प्रतिक्रिया

अब तक राज्य सरकार की ओर से इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। हालांकि, बाराबंकी जिलाधिकारी ने कहा है कि “घटना गंभीर है, दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।”
वहीं, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने स्वतः संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार से 48 घंटे में रिपोर्ट मांगी है।

क्या कहता है संविधान?

भारत का संविधान हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है, फिर चाहे उसकी जाति कुछ भी हो। अनुच्छेद 25 के तहत हर नागरिक को पूजा-पाठ, धर्म और आस्था की स्वतंत्रता प्राप्त है। लेकिन Temple Caste Violence जैसी घटनाएं दर्शाती हैं कि ज़मीनी स्तर पर ये अधिकार अब भी कई लोगों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।

सोशल मीडिया पर गूंज

घटना के बाद सोशल मीडिया पर #TempleCasteViolence, #JusticeForShailendra और #DalitRights जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। लोग प्रशासन से कठोर कदम उठाने की मांग कर रहे हैं। कई यूज़र्स ने लिखा है कि अगर मंदिर जैसे स्थानों पर भी जाति का भेदभाव होगा, तो सामाजिक समरसता कैसे आएगी?

क्या सिर्फ गिरफ्तारी से खत्म होगा जातिवाद?

बाराबंकी की यह घटना एक बार फिर इस बात की याद दिलाती है कि Temple Caste Violence कोई इत्तेफाक नहीं, बल्कि हमारी सामाजिक संरचना की एक गहरी बीमारी है। जब तक धार्मिक स्थलों पर दलितों को समान अधिकार नहीं मिलते, तब तक हम एक समरस समाज की कल्पना नहीं कर सकते।

सरकार, समाज और मंदिर प्रबंधन—सभी को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी व्यक्ति केवल अपनी जाति की वजह से अपने धर्म का पालन करने से वंचित न रहे। वरना संविधान के मूल्य केवल किताबों तक ही सिमट कर रह जाएंगे।

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