हाइलाइट्स
- Police Brutality के आरोपों में इटावा पुलिस पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं
- स्कूलों में घुसकर यादव समाज के छात्रों को गिरफ्तार कर रही है पुलिस
- दलित शिक्षक ने विरोध किया तो दरोगा ने मां-बहन की गालियां देते हुए पीटा
- समाज में भय का माहौल, प्रशासन पर पक्षपातपूर्ण कार्रवाई के आरोप
- समाज के नेताओं और संगठनों ने विरोध प्रदर्शन की दी चेतावनी
उत्तर प्रदेश के इटावा जिले से एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है जिसने पूरे प्रदेश की सामाजिक और राजनीतिक चेतना को झकझोर कर रख दिया है। आरोप है कि उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक के दबाव में पुलिस प्रशासन ने जिले के विभिन्न स्कूलों में घुसकर यादव समाज से जुड़े छात्रों को Police Brutality का शिकार बनाया और बिना किसी ठोस वजह के गिरफ्तार किया।
घटनाक्रम: कैसे स्कूल बन गया पुलिस का टारगेट?
हादसा उस वक्त और गंभीर हो गया जब एक दलित समाज से आने वाले शिक्षक ने पुलिस से छात्रों को न उठाने की गुहार लगाई। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, दरोगा ने न केवल उन्हें गालियां दीं बल्कि बेरहमी से पीटा भी। यह सब एक स्कूल परिसर के भीतर हुआ, जहाँ बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी प्रशासन की होनी चाहिए थी।
Police Brutality की ये घटनाएं अब केवल इटावा तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि पूरे राज्य में कानून व्यवस्था को लेकर सवाल खड़े कर रही हैं।
डर और दहशत का माहौल: कौन होगा अगला निशाना?
इटावा के ग्रामीण और शहरी इलाकों में इस वक्त भय का माहौल है। यादव समाज के लोगों को लग रहा है कि उन्हें जातिगत आधार पर निशाना बनाया जा रहा है। कई छात्र, जो कक्षा 10 और 12 के बोर्ड परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे, पुलिस द्वारा बिना वारंट गिरफ्तार किए गए।
इस तरह की Police Brutality न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन है बल्कि एक समूचे समाज को चुप कराने की साजिश मानी जा रही है।
पीड़ित शिक्षक की आपबीती: “उन्होंने कहा तू दलित है, चुपचाप भाग जा…”
दलित शिक्षक, जिनकी पहचान सुरक्षा कारणों से गोपनीय रखी जा रही है, ने बताया कि उन्होंने पुलिस से केवल इतना कहा कि “बच्चों को मत ले जाइए, वे निर्दोष हैं”, लेकिन जवाब में उन्हें अपमानित किया गया।
“मुझे मेरी जाति का ताना दिया गया, मां-बहन की गालियां दी गईं, और लाठियों से पीटा गया,” उन्होंने कहा।
इस प्रकार की Police Brutality भारतीय संविधान के मूल सिद्धांतों—समानता और सम्मान—का खुला उल्लंघन है।
खबर मिल रही है कि इटावा के अंदर उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक के दवाब में पुलिस प्रशासन स्कूलों में पहुंच कर यादव समाज के निर्दोष छात्रों को गिरफ़्तार कर रही है जब एक दलित समाज के अध्यापक ने पुलिस से बात करने का प्रयास किया तो दरोगा मां बहन की गलियां देते हुए अध्यापक को पीटने लगा… pic.twitter.com/Y5X5rAySYJ
— Aniruddh Singh Vidrohi (@MandalArmyCheif) June 28, 2025
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं: विपक्ष ने साधा सरकार पर निशाना
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने घटना की निंदा करते हुए इसे सत्ता के दुरुपयोग की पराकाष्ठा बताया। सपा प्रवक्ता ने कहा,
“यह केवल Police Brutality नहीं, बल्कि लोकतंत्र की हत्या है। सरकार एक खास वर्ग को डराकर चुप करना चाहती है।”
वहीं कांग्रेस और बसपा ने भी स्वतंत्र जांच की मांग की है और NHRC में शिकायत दर्ज कराने की बात कही है।
क्या कहता है प्रशासन?
पुलिस विभाग की ओर से जारी प्रेस नोट में कहा गया कि यह कार्रवाई “आपराधिक पृष्ठभूमि वाले संदिग्ध युवकों के खिलाफ की गई” थी। लेकिन अब तक किसी भी छात्र पर कोई दर्ज एफआईआर या आरोप सार्वजनिक नहीं किए गए हैं।
Police Brutality पर उठे सवालों के बावजूद प्रशासन ने न ही जांच का आदेश दिया और न ही दरोगा पर कोई कार्रवाई की।
समाज में आक्रोश: शांति की मांग या जनविरोध की लहर?
यादव समाज के कई युवा संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि पुलिस और सरकार ने माफी नहीं मांगी और दोषियों को दंडित नहीं किया, तो वे प्रदेशव्यापी आंदोलन शुरू करेंगे।
“हमने लंबे समय तक चुप्पी साधी, लेकिन अब सब्र का बांध टूट रहा है। हम डरने वाले नहीं,” — यह संदेश सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।
सामाजिक विशेषज्ञों की राय: क्या ये ‘Police Brutality’ समाज को बांटने की साजिश है?
विवेकानंद समाजशास्त्र संस्थान के प्रोफेसर डॉ. सुदर्शन मिश्रा ने कहा:
“यह घटना केवल एक पुलिसिया कार्रवाई नहीं है, बल्कि सामाजिक विभाजन को गहरा करने वाली एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा लगती है। Police Brutality का राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है।”
कब रुकेगा यह अन्याय?
इटावा की यह घटना एक संकेत है कि Police Brutality अब एक सामाजिक और राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। यदि इस पर समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो आने वाले समय में प्रदेश की कानून व्यवस्था ही नहीं, सामाजिक ताना-बाना भी खतरे में पड़ सकता है।