प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीसरी सरकार संकट के बादलों से घिरी दिखाई दे रही है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कुछ हालिया कदमों ने राजनीति के गलियारों में हलचल मचा दी है। एनडीए के अन्य दलों का भी कहना है कि उन्हें मंत्रालयों के नाम पर केवल आश्वासन ही मिले हैं, जिससे गठबंधन में असंतोष की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
नीतीश कुमार की संभावित पलटी
नीतीश कुमार की राजनीतिक चालें हमेशा से ही अप्रत्याशित रही हैं। हाल ही में, उनके एनडीए से अलग होने और विपक्षी गठबंधन में शामिल होने की चर्चाएं जोर पकड़ रही हैं। उनके कदमों ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या वे फिर से राजनीतिक पलटी मार सकते हैं?
एनडीए में असंतोष
एनडीए के भीतर कई दलों ने यह आरोप लगाया है कि उन्हें मंत्रालयों के नाम पर सिर्फ झुनझुना थमाया गया है। इससे गठबंधन के भीतर असंतोष की स्थिति पैदा हो गई है। एनडीए के कुछ नेताओं का मानना है कि सरकार उनके योगदान को पर्याप्त रूप से नहीं पहचान रही है, जिससे वे खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।
चंद्रबाबू नायडू और मोहन चरण माझी की शपथ ग्रहण में नीतीश की गैरमौजूदगी
हाल ही में, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी के शपथ ग्रहण समारोह में नीतीश कुमार की गैरमौजूदगी ने राजनीतिक हलकों में चर्चा को और बढ़ा दिया है। यह गैरमौजूदगी राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा एक संकेत के रूप में देखी जा रही है कि नीतीश कुमार एनडीए से नाराज हो सकते हैं और वे अपने भविष्य की राजनीति की दिशा में कुछ बड़ा कदम उठा सकते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चिंता
इन सभी घटनाक्रमों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चिंताएं बढ़ गई हैं। नीतीश कुमार का असंतोष और एनडीए के अन्य दलों का विद्रोह सरकार के स्थायित्व के लिए खतरा बन सकता है। मोदी सरकार के सामने अब यह चुनौती है कि वह कैसे इन दलों को संतुष्ट करती है और गठबंधन को मजबूत बनाए रखती है।
मोदी 3.0 सरकार एक संकट के दौर से गुजर रही है। नीतीश कुमार के अप्रत्याशित कदम, एनडीए के भीतर असंतोष और अन्य राजनीतिक घटनाक्रम सरकार के लिए चुनौती बन गए हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह आवश्यक है कि वे जल्द ही कुछ ठोस कदम उठाएं ताकि गठबंधन की एकता बनी रहे और सरकार स्थिर रह सके।
आने वाले दिनों में राजनीतिक परिदृश्य में क्या परिवर्तन होते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा।