हाइलाइट्स
- पुलिस बर्बरता की यह घटना मथुरा के गोवर्धन क्षेत्र की है, जहाँ एक युवक को सीएम पोर्टल पर शिकायत करना भारी पड़ गया
- सब-इंस्पेक्टर कपिल नागर ने रिश्वत की शिकायत पर युवक को बेरहमी से पीटा
- युवक के गुप्तांगों पर मारी गई लातें, निर्वस्त्र कर थाने के सामने फेंका गया
- मेडिकल सहायता देने से इनकार, परिवार ने कपड़े तक पहनाकर अस्पताल पहुंचाया
- घटना के बाद क्षेत्र में उबाल, जनता ने पूछा – क्या अब शिकायत करना गुनाह है?
क्या पुलिस बर्बरता लोकतंत्र पर धब्बा नहीं? मथुरा में युवक को निर्वस्त्र कर पीटने की शर्मनाक घटना
स्थान: मथुरा, उत्तर प्रदेश
फोकस कीवर्ड: पुलिस बर्बरता
उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले से एक ऐसी खबर आई है जिसने लोकतंत्र की आत्मा को झकझोर कर रख दिया है। जिस सीएम पोर्टल को आम जनता की शिकायतों का समाधान करने के लिए बनाया गया था, वही अब आम नागरिकों के लिए नर्क का दरवाजा बनता जा रहा है। पुलिस बर्बरता की ताजा मिसाल गोवर्धन थाना क्षेत्र में सामने आई है, जहाँ एक गरीब किसान के बेटे को सब-इंस्पेक्टर कपिल नागर की रिश्वतखोरी के खिलाफ शिकायत करना इतना महंगा पड़ा कि उसकी जिंदगी बर्बादी की दहलीज पर आ गई।
शिकायत से बौखलाया दरोगा, पुलिस बर्बरता ने ली हैवानियत की शक्ल
₹20,000 की रिश्वत मांगने की थी शिकायत
पीड़ित युवक ने मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल पर गोवर्धन थाने में तैनात सब-इंस्पेक्टर कपिल नागर के खिलाफ ₹20,000 की रिश्वत मांगने की शिकायत दर्ज कराई थी। लेकिन यह शिकायत पुलिस बर्बरता के दरवाजे खोलने वाली साबित हुई।
थाने बुलाकर गुप्तांगों पर मारी लातें
शिकायत के बाद दरोगा कपिल नागर ने युवक को थाने बुलाया। वहाँ उसे एक कमरे में बंद कर दिया गया और जो हुआ, वह सभ्य समाज के लिए कलंक है। युवक को बेरहमी से पीटा गया, बार-बार उसके गुप्तांगों पर लात मारी गई और उसे मानसिक व शारीरिक रूप से तोड़ दिया गया।
निर्वस्त्र कर फेंका गया थाने के बाहर – कहां है मानवता?
परिजनों की गुहार भी बेअसर
जब युवक की हालत बिगड़ी, उसके माता-पिता और परिजन रोते-बिलखते थाने पहुँचे। उन्होंने हाथ जोड़कर विनती की, दया की अपील की – लेकिन पुलिस बर्बरता की यह दीवार टस से मस नहीं हुई।
मेडिकल सहायता से भी वंचित
युवक की हालत नाजुक होने के बावजूद पुलिस ने न तो डॉक्टर को बुलाया, न ही अस्पताल ले जाने की अनुमति दी। उसे निर्वस्त्र ही थाने के बाहर फेंक दिया गया। परिजनों ने जैसे-तैसे उसका गुप्तांग ढका और उसे गोद में उठाकर अस्पताल ले गए।
क्या जनसुनवाई अब दिखावा है? मुख्यमंत्री से उठे सवाल
क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना अपराध बन गया?
इस घटना ने उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है। पुलिस बर्बरता का यह मामला केवल एक व्यक्ति के साथ हुई मारपीट नहीं, बल्कि पूरे प्रशासनिक तंत्र की अमानवीयता की मिसाल है।
सीएम से पूछा गया – क्या जनसुनवाई अब जनता के खिलाफ है?
सवाल उठ रहे हैं कि क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की “जनसुनवाई” अब केवल नाम मात्र की प्रक्रिया है? क्या आम नागरिक को प्रशासनिक भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने का हक नहीं रहा?
पुलिस मित्र नहीं, अब अत्याचारी बनती जा रही है – जनता में गुस्सा
क्षेत्र में आक्रोश, विरोध प्रदर्शन की तैयारी
घटना के बाद गोवर्धन और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में जबरदस्त गुस्सा देखने को मिल रहा है। कई सामाजिक संगठनों ने इसे पुलिस बर्बरता की पराकाष्ठा करार दिया है। ग्रामीणों ने प्रदर्शन की चेतावनी दी है।
“जंगलराज” जैसे आरोप
स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि शिकायत करने पर इस हद तक अत्याचार झेलना पड़े, तो लोकतंत्र का कोई औचित्य नहीं बचता। कुछ लोगों ने तो यहाँ तक कहा कि “यह राज्य प्रायोजित हिंसा है” और “उत्तर प्रदेश में जंगलराज है”।
अब क्या होगा न्याय? कार्रवाई या चुप्पी?
सस्पेंड या ट्रांसफर से नहीं चलेगा
सवाल यह भी है कि क्या प्रशासन इस पुलिस बर्बरता के आरोपी को सिर्फ सस्पेंड करके खानापूर्ति करेगा या फिर कानूनी कार्यवाही कर उसे जेल भेजेगा?
NHRC और मानवाधिकार आयोग से दखल की मांग
मानवाधिकार संगठनों ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) से स्वतः संज्ञान लेने की मांग की है। उनका कहना है कि इस मामले में न्याय नहीं मिला, तो यह एक खतरनाक उदाहरण बन जाएगा।
पुलिस बर्बरता का यह मामला देश भर के लिए चेतावनी है
यह अकेला मामला नहीं है। हर साल देश भर में सैकड़ों नागरिक पुलिस की क्रूरता का शिकार होते हैं, लेकिन बहुत कम मामलों में सजा होती है। पुलिस बर्बरता सिर्फ एक प्रशासनिक समस्या नहीं, बल्कि यह लोकतंत्र के मूल्यों पर सीधा प्रहार है।
कब सुधरेगी व्यवस्था?
अगर इस मामले पर सरकार और प्रशासन चुप्पी साध लेता है, तो यह संदेश जाएगा कि सीएम पोर्टल पर शिकायत करना आम नागरिक के लिए खुद की मौत को बुलावा देना है। पुलिस बर्बरता को नजरअंदाज करना, केवल एक युवक नहीं, पूरे समाज के प्रति अन्याय होगा।
अब समय आ गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार कठोर कदम उठाए और यह स्पष्ट करे कि शासन में पुलिस बर्बरता के लिए कोई स्थान नहीं है।