हाइलाइट्स
- Sex Life को लेकर महात्मा गांधी पर फिर शुरू हुई बहस, लंदन की इतिहासकार कुसुम वदगामा के बयान से भड़का विवाद
- गांधी की ‘Sex Life’ पर पहले भी छप चुकी हैं कई किताबें, पर इस बार मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में
- इतिहासकारों का दावा – गांधी निर्वस्त्र महिलाओं के साथ सोते थे, ब्रह्मचर्य के नाम पर करते थे ‘Sexual Experiments’
- मनुबेन, सुशीला नायर सहित कई महिलाएं गांधी के ‘Sex Life’ प्रयोग में शामिल थीं
- संसद चौक लंदन में गांधी की प्रतिमा लगाने का विरोध, विवादित ‘Sex Life’ को लेकर उठे सवाल
प्रस्तावना: गांधी का आदर्श और विवाद
महात्मा गांधी का नाम सुनते ही मन में एक संत-छवि उभरती है—लंगोटधारी, आत्मसंयमी, अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलने वाला एक ‘राष्ट्रपिता’। लेकिन इन दिनों उनकी Sex Life को लेकर उभरे ताजा विवाद ने उनके जीवन के एक गहरे, कम चर्चित हिस्से को फिर सुर्खियों में ला दिया है।
लंदन के प्रतिष्ठित अखबार The Times में छपे लेख के मुताबिक, गांधीवादी और 82 वर्षीय इतिहासकार डॉ. कुसुम वदगामा ने दावा किया है कि गांधी को Sex Life की बुरी लत थी। वह महिलाओं के साथ निर्वस्त्र सोते थे और ब्रह्मचर्य के नाम पर ‘कामुक प्रयोग’ करते थे।
विवाद की जड़: Sex Life पर इतिहासकार का दावा
कुसुम वदगामा का बयान
डॉ. वदगामा ने लंदन में गांधी की प्रतिमा लगाए जाने का विरोध करते हुए कहा,
“गांधी एक सेक्स-मैनियाक थे। उन्होंने मासूम लड़कियों के साथ ब्रह्मचर्य का नाम लेकर अनुचित संबंध बनाए।”
उनका यह बयान न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गया है। कुसुम वदगामा ने यह भी कहा कि वह खुद गांधी की अनुयायी थीं, लेकिन समय के साथ उन्हें गांधी की Sex Life से जुड़ी कई असहज सच्चाइयों का अहसास हुआ।
ऐतिहासिक दस्तावेज और Sex Life के प्रमाण
जेड ऐडम्स की किताब – Gandhi: Naked Ambition
ब्रिटिश इतिहासकार जेड ऐडम्स ने 2010 में प्रकाशित अपनी किताब में गांधी की Sex Life पर गहन अध्ययन के आधार पर उन्हें “अर्ध दमित सेक्स मैनियाक” बताया। उन्होंने दावा किया कि गांधी नग्न होकर महिलाओं के साथ सोते थे और नहाते भी थे।
गिरिजा कुमार की रिसर्च – Brahmacharya: Gandhi and His Women Associates
2006 में प्रकाशित इस पुस्तक में 18 महिलाओं का उल्लेख किया गया है जो गांधी के ब्रह्मचर्य प्रयोगों में भाग लेती थीं—मनुबेन, सुशीला नायर, आभा गांधी, लीलावती आसर, आदि।
ब्रह्मचर्य या ब्रह्म-विरोध?
महिलाओं के बयान – अस्पष्ट लेकिन आशंका भरे
गांधी के साथ वर्षों बिताने वाली महिलाएं, जैसे मनुबेन और सुशीला नायर, उनके साथ अपने संबंधों को “आध्यात्मिक प्रयोग” बताती रहीं, लेकिन कई बार वे सवालों से बचती नजर आईं।
निर्मल बोस की गवाही
निर्मल बोस, जो गांधी के निजी सचिव रहे, ने अपनी पुस्तक My Days with Gandhi में लिखा:
“मैंने गांधी को एक सुबह दीवार में सिर पटकते देखा और सुशीला नायर रो रही थीं।”
बोस ने उनके ब्रह्मचर्य प्रयोगों का विरोध किया और आखिरकार गांधी से अलग हो गए।
राजनीति और Sex Life का टकराव
नेहरू और पटेल का असहज संबंध
इतिहासकारों के अनुसार, गांधी की Sex Life को लेकर उनके राजनीतिक सहयोगी भी असहज थे। नेहरू उन्हें ‘अप्राकृतिक’ मानते थे, जबकि पटेल उनके ब्रह्मचर्य को ‘अधर्म’ कहते थे।
मनुबेन और सुशीला के जीवन पर प्रभाव
गांधी के ब्रह्मचर्य प्रयोगों में शामिल महिलाएं जीवनभर अविवाहित रहीं या उनका वैवाहिक जीवन बर्बाद हो गया। इस विषय पर चर्चा हमेशा वर्जित बनी रही।
Sex Life के प्रयोग और वैश्विक दृष्टिकोण
ब्रिटिश नेताओं का विरोध
ब्रिटेन के पूर्व चांसलर जॉर्ज ओसबॉर्न और विदेश सचिव विलियम हेग ने गांधी की प्रतिमा लगाने की योजना बनाई थी, लेकिन कुसुम वदगामा के विरोध और Sex Life पर उठे सवालों ने यह निर्णय विवादित बना दिया।
विश्व प्रतिक्रिया और विचार
गांधी के अनुयायी दुनिया भर में बंट गए हैं। कुछ इसे “चरित्र हनन” मानते हैं, जबकि अन्य इसे “सच को सामने लाना” कहकर समर्थन कर रहे हैं।
गांधी: पवित्रता बनाम पुरुष
दोहरी मानसिकता?
कुसुम वदगामा ने कहा:
“गांधी दूसरों को सेक्स से दूर रहने की सलाह देते थे, जबकि खुद सेक्स की भूख में जीते थे।”
आत्मशुद्धि या शारीरिक इच्छा?
कई विद्वानों का मानना है कि गांधी के Sex Life प्रयोग आत्मसंयम का परीक्षण थे, जबकि कई अन्य इसे महिलाओं के शोषण की नई परिभाषा मानते हैं।
क्या Sex Life पर बात करना गांधी का अपमान है?
गांधी के जीवन का यह पहलू हमेशा रहस्य और विवाद के घेरे में रहा है। उनकी Sex Life को लेकर जितने भी आरोप या किताबें सामने आई हैं, वे हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या महापुरुषों की आलोचना ‘देशद्रोह’ मानी जानी चाहिए, या फिर इतिहास का सच स्वीकार करना चाहिए?
आज, जब दुनिया महिला अधिकारों और पारदर्शिता की बात करती है, गांधी की Sex Life पर खुली चर्चा का समय आ गया है। यह इतिहास को खंगालने का नहीं, बल्कि उसे ईमानदारी से स्वीकारने का युग है।