तीर्थ यात्रा में पीरियड्स आ जाएं तो महिलाएं क्या करें? प्रेमानंद महाराज ने बताया धर्म और श्रद्धा का गुप्त रहस्य

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हाइलाइट्स

  • Periods During Pilgrimage को लेकर प्रेमानंद महाराज ने दिया आध्यात्मिक और तार्किक उत्तर
  • महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान तीर्थ दर्शन से नहीं रोका जाना चाहिए: संत का स्पष्ट संदेश
  • ब्रह्म हत्या के दोष को बांटने की पौराणिक कथा में छिपा है पीरियड्स का रहस्य
  • धर्म और विज्ञान के बीच संतुलन बनाता नजर आया प्रेमानंद महाराज का बयान
  • स्त्रियों के लिए समाज में जागरूकता फैलाने वाला संदेश बना यह प्रवचन

 तीर्थ यात्रा और पीरियड्स: क्या है सही राह?

भारत जैसे धार्मिक देश में जब महिलाएं Periods During Pilgrimage जैसे मुद्दे पर बात करती हैं तो अक्सर वे संकोच, डर और भ्रम से घिरी होती हैं। तीर्थ स्थलों पर जाने की वर्षों की मनोकामना, लंबी यात्रा और तैयारियों के बावजूद जब अचानक मासिक धर्म शुरू हो जाए, तो महिलाएं स्वयं से सवाल पूछने लगती हैं – क्या अब भगवान के दर्शन करना पाप होगा?

इन्हीं गहन सवालों का उत्तर हाल ही में वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद गोविंद शरण महाराज ने अपने एक प्रवचन में दिया है। उनका उत्तर न केवल धर्मशास्त्रों में गहराई से रचा-बसा था, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी बेहद प्रासंगिक और शक्तिशाली था।

 प्रेमानंद महाराज की दृष्टि: मासिक धर्म अपराध नहीं, वंदनीय प्रक्रिया

 ब्रह्म हत्या और स्त्रियों का योगदान

प्रेमानंद महाराज ने Periods During Pilgrimage पर पूछे गए सवाल का उत्तर देते हुए एक गूढ़ पौराणिक कथा साझा की। उन्होंने बताया कि जब देवराज इंद्र ने वृत्रासुर नामक ब्राह्मण का वध किया, तो उन पर ब्रह्म हत्या का दोष लगा। इस दोष को ब्रह्मर्षियों ने चार भागों में विभाजित किया:

  1. जल – जिसमें दिखाई देने वाला झाग ब्रह्म हत्या का अंश है।
  2. वृक्ष – जिनसे निकलने वाला गोंद इसका प्रतीक है।
  3. भूमि – जिसमें दिखाई देने वाले गड्ढे इसी दोष के प्रतीक हैं।
  4. स्त्री – जिनमें मासिक धर्म के रूप में यह दोष आता है।

परंतु महाराज ने इस दोष को अपराध नहीं, एक पवित्र जिम्मेदारी बताया। उन्होंने कहा कि महिलाएं जब पीरियड्स के दौरान मंदिर या तीर्थ पर होती हैं, तो उन्हें भगवान के दर्शन से वंचित करना सरासर अनुचित है।

 “दर्शन करें, भेंट न चढ़ाएं”: प्रेमानंद महाराज का समाधान

 श्रद्धा से बढ़कर कोई शुद्धि नहीं

संत प्रेमानंद महाराज ने कहा कि महिलाएं यदि Periods During Pilgrimage की स्थिति में हैं, तो उन्हें:

  • स्नान कर लेना चाहिए
  • शरीर और मन से स्वच्छता बनाए रखनी चाहिए
  • प्रत्यक्ष रूप से मूर्ति को न छूकर दूर से दर्शन करना चाहिए
  • कोई भेंट या प्रसाद न चढ़ाएं
  • नजदीकी धार्मिक गतिविधियों में भाग न लें, पर श्रवण और कीर्तन कर सकती हैं

उनके अनुसार भगवान श्रद्धा और भाव को देखते हैं, शरीर की प्रक्रिया को नहीं।

 सामाजिक संदेश: धर्म का सही स्वरूप क्या है?

 महिलाओं के साथ सदियों से होता आया है भेदभाव

भारत में महिलाएं लंबे समय से इस सवाल से जूझती रही हैं कि क्या धर्म उन्हें पूर्ण अधिकार देता है? Periods During Pilgrimage जैसी परिस्थिति में उन्हें सामाजिक रूप से दूर रखा जाता रहा है – यह एक मनोवैज्ञानिक, धार्मिक और सामाजिक दबाव बन चुका है।

 प्रेमानंद महाराज की वाणी से बदल सकता है नजरिया

उनकी वाणी से एक बड़ा संदेश गया है कि:

“जिस स्त्री ने ब्रह्म हत्या का भाग अपने ऊपर लिया है, वह महान है। उसे मंदिर से बाहर करना धार्मिक अपराध के बराबर है।”

यह वाक्य न केवल स्त्रियों के आत्मसम्मान को बढ़ाता है, बल्कि धर्म की मूल भावना – करुणा, समावेश और भक्ति – को भी उजागर करता है।

 कौन हैं प्रेमानंद गोविंद शरण महाराज?

 स्थान और सत्संग व्यवस्था

प्रेमानंद महाराज वृंदावन स्थित श्री हित राधा केली कुंज आश्रम में रहते हैं। यह आश्रम परिक्रमा मार्ग पर भक्ति वेदांत हॉस्पिटल के सामने स्थित है। उनके दर्शन के लिए:

  • भक्त पहले रजिस्ट्रेशन कराते हैं
  • अगली सुबह सत्संग, भजन और एकांत वार्तालाप के लिए टोकन मिलता है
  • देशभर से श्रद्धालु आते हैं, जिनमें कई जानी-मानी हस्तियां भी शामिल हैं

धर्म, पीरियड्स और स्त्री

 क्या कहता है समाज?

जहां आज भी कई धार्मिक स्थल Periods During Pilgrimage के नाम पर महिलाओं को प्रवेश से वंचित करते हैं, वहीं प्रेमानंद महाराज जैसे संत एक नई सोच की शुरुआत करते हैं। वह धार्मिक सिद्धांतों को कठोरता से नहीं, करुणा से जोड़ते हैं

 धर्म में बदलाव की ज़रूरत

इस विषय पर संतों, धर्माचार्यों और आम जनता के बीच जागरूकता लाना अत्यंत आवश्यक है। धर्म तब तक अधूरा है जब तक उसमें हर भक्त के लिए बराबरी की भावना न हो – फिर चाहे वह स्त्री हो या पुरुष।

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