हाइलाइट्स
- हालिया स्टडी के अनुसार बार-बार आने वाले nightmares समय से पहले मौत का कारण बन सकते हैं
- यूरोपीय न्यूरोलॉजी कांग्रेस में 18,300 अडल्ट्स और 2,400 बच्चों पर हुई रिसर्च पेश की गई
- डरावने सपनों से नींद डिस्टर्ब होती है जिससे शरीर में तेज़ी से बढ़ती है बायोलॉजिकल एज
- बच्चों और बड़ों दोनों में दिखा गया असर, माता-पिता ने भी दिए इनपुट
- वैज्ञानिकों ने बताया, nightmares स्ट्रेस, मोटापा और स्मोकिंग से भी खतरनाक संकेतक हैं
शोध की शुरुआत: सपनों पर गहराई से अध्ययन
Nightmares यानी डरावने सपनों पर लंबे समय से वैज्ञानिक शोध करते आ रहे हैं, लेकिन हाल ही में यूके डिमेंशिया रिसर्च इंस्टिट्यूट और इम्पीरियल कॉलेज लंदन की एक स्टडी ने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। इस रिसर्च को यूरोपियन अकैडमी ऑफ न्यूरोलॉजी कांग्रेस 2025 में प्रस्तुत किया गया, जिसमें यह बताया गया कि जो अडल्ट्स हफ्ते में तीन बार से अधिक डरावने सपने देखते हैं, उनमें 70 साल से पहले मृत्यु होने की संभावना उन लोगों की तुलना में अधिक होती है जो शायद ही कभी nightmares देखते हैं।
स्टडी में कौन-कौन थे शामिल?
इस अध्ययन में कुल 18,300 अडल्ट्स को शामिल किया गया, जिनकी उम्र 26 से 86 साल के बीच थी। इसके अतिरिक्त, 8 से 10 साल के 2,429 बच्चों को भी स्टडी में जोड़ा गया। अडल्ट प्रतिभागियों ने स्वयं बताया कि उन्हें nightmares कितनी बार आते हैं, जबकि बच्चों के डरावने सपनों के बारे में उनके माता-पिता ने जानकारी दी। शोधकर्ताओं ने 19 साल तक इन सभी की हेल्थ ट्रैक की और परिणाम बेहद चौंकाने वाले निकले।
डरावने सपनों और उम्र बढ़ने का संबंध
सेलुलर एजिंग पर असर
शोधकर्ताओं ने पाया कि बार-बार आने वाले nightmares सिर्फ नींद को बाधित नहीं करते, बल्कि शरीर के सेल्स की उम्र भी बढ़ा देते हैं। यह बायोलॉजिकल एजिंग का संकेत है, जिसे क्रोमोसोम के टीलोमियर की लंबाई मापकर जाना गया। जैसे-जैसे टीलोमियर छोटे होते जाते हैं, शरीर में उम्र बढ़ने के लक्षण तेज़ी से दिखने लगते हैं।
दिमाग का भ्रम और फिजिकल रिएक्शन
इस स्टडी को लीड करने वाले डॉक्टर अबीदीमी ने बताया कि डरावने सपनों के दौरान शरीर में वही स्ट्रेस रिस्पॉन्स एक्टिव हो जाता है जो किसी असली खतरे के दौरान होता है। दिमाग सपने और वास्तविकता में फर्क नहीं कर पाता, जिससे फाइट-ऑर-फ्लाइट मोड एक्टिवेट हो जाता है। यही कारण है कि nightmares के बाद लोग अक्सर पसीने से लथपथ और तेज़ धड़कनों के साथ जागते हैं।
नींद में रुकावट और शरीर पर उसका असर
स्ट्रेस हार्मोन की भूमिका
Nightmares की वजह से नींद में रुकावट आती है और इससे शरीर में स्ट्रेस हार्मोन – खासकर कॉर्टिसोल – का स्तर बढ़ जाता है। यह हार्मोन सीधे तौर पर बायोलॉजिकल एजिंग से जुड़ा होता है और लंबे समय तक इसका बढ़ा हुआ स्तर समय से पहले मौत का कारण बन सकता है।
अन्य जोखिम संकेतकों से भी अधिक खतरनाक
शोध में पाया गया कि nightmares मोटापा, खराब जीवनशैली, एक्सरसाइज की कमी और धूम्रपान जैसे फैक्टर्स से भी अधिक खतरनाक संकेतक हैं। यानी अगर आपको सप्ताह में कई बार डरावने सपने आते हैं, तो आपको गंभीरता से इसे लेना चाहिए।
बच्चों में भी दिखा प्रभाव
पेरेंट्स की रिपोर्ट से खुलासा
बच्चों के मामले में भी डरावने सपनों का असर देखा गया। हालांकि बच्चों ने स्वयं अपने सपनों की जानकारी नहीं दी, पर उनके माता-पिता ने बताया कि उनके बच्चे अक्सर nightmares के कारण रात में जागते हैं या डरकर रोते हैं। यह मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक विकास के लिए चिंताजनक हो सकता है।
क्या Nightmares को रोका जा सकता है?
स्ट्रेस मैनेजमेंट से मदद मिल सकती है
डॉक्टर अबीदीमी का मानना है कि अगर मानसिक तनाव को कम कर लिया जाए तो nightmares की आवृत्ति में भी कमी लाई जा सकती है। इसके लिए कुछ आसान सुझाव दिए गए हैं:
- सोने से पहले डरावना या विचलित करने वाला कॉन्टेंट न देखें
- एक्सरसाइज और मेडिटेशन को दिनचर्या में शामिल करें
- अगर आपको एंग्जाइटी या डिप्रेशन है, तो चिकित्सकीय परामर्श लें
इमेज रिहर्सल थेरपी का उपयोग
इमेज रिहर्सल थेरपी (IRT) एक साइकोलॉजिकल ट्रीटमेंट है जिसमें व्यक्ति अपने डरावने सपने को दोबारा सोचकर उसका अंत पॉजिटिव रूप में करता है। यह थेरेपी घर पर भी की जा सकती है और इसे लेकर कई सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं।
डर को हल्के में न लें
Nightmares को लेकर आम धारणा यही है कि वे केवल सपने हैं और कोई नुकसान नहीं पहुंचाते, लेकिन इस नई स्टडी ने यह साबित कर दिया है कि बार-बार आने वाले डरावने सपने शरीर के लिए गंभीर खतरा हो सकते हैं। न सिर्फ नींद खराब होती है, बल्कि इससे जीवन की अवधि भी कम हो सकती है।
इसलिए जरूरी है कि हम अपने सपनों और नींद की गुणवत्ता को गंभीरता से लें और जरूरत पड़ने पर विशेषज्ञों की मदद लेने से न हिचकें।