क्या जन्म के बाद हर मुस्लिम बच्चे को करवाना पड़ता है खतना? धर्म, विज्ञान और कानून के बीच उलझा सच

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हाइलाइट्स

  • Muslim Circumcision को लेकर फिर छिड़ी बहस, धार्मिक परंपरा बनाम वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर चर्चा तेज
  • इस्लामी मान्यताओं में खतना को क्यों माना जाता है अनिवार्य
  • बाल्यावस्था में खतना करवाना जरूरी या व्यक्तिगत निर्णय का विषय?
  • सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम बच्चियों और लड़कों के खतने को लेकर याचिकाएं लंबित
  • डॉक्टरों का दावा: Muslim Circumcision के कुछ फायदे हैं, लेकिन जोखिम भी कम नहीं

 मुस्लिम खतना: परंपरा, विज्ञान और कानूनी बहस के बीच फंसा मुद्दा

नई दिल्ली – भारत में Muslim Circumcision यानी खतना को लेकर एक बार फिर बहस तेज हो गई है। यह विषय केवल धार्मिक परंपरा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि अब यह वैज्ञानिक, सामाजिक और कानूनी विमर्श का केंद्र बन चुका है। खतना, जिसे अरबी में ‘खितान’ कहा जाता है, इस्लाम में जन्म से लेकर बाल्यकाल के शुरुआती वर्षों में किया जाने वाला एक धार्मिक कर्तव्य माना जाता है। परंतु आधुनिक चिकित्सा विज्ञान और बाल अधिकारों के दृष्टिकोण से यह विषय कहीं अधिक जटिल है।

 खतना क्या है?

खतना एक सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसमें पुरुषों के जननांग के अग्रभाग (foreskin) को काटा जाता है। इस्लाम धर्म में यह प्रक्रिया Muslim Circumcision के रूप में पहचानी जाती है और इसे शुद्धता, धार्मिक पालन और स्वास्थ्य के लिए आवश्यक माना गया है।

 इस्लाम में खतना का महत्व

 धार्मिक मान्यता

इस्लाम में खतना को ‘सुन्नत’ माना गया है, यानी वह परंपरा जिसे पैगंबर मोहम्मद ने अपनाया और अनुयायियों से उसका पालन करने को कहा। हालांकि कुरान में Muslim Circumcision का सीधा उल्लेख नहीं है, लेकिन हदीस और इस्लामी फिकह (शास्त्र) में इसका व्यापक उल्लेख मिलता है।

 उलेमा की राय

देवबंद और बरेलवी दोनों विचारधाराओं के मौलानाओं का मानना है कि खतना इस्लाम की पहचान है और इसके बिना ‘दीन’ अधूरा है। उनके अनुसार यह धार्मिक ज़िम्मेदारी है, जो बचपन में पूरी की जाती है।

 वैज्ञानिक नजरिया: खतना के फायदे और नुकसान

 संभावित लाभ

  • Muslim Circumcision से मूत्र मार्ग संक्रमण (UTI) के खतरे में कमी
  • HIV और अन्य यौन संक्रमित बीमारियों की संभावना में कुछ हद तक गिरावट
  • जननांगों की स्वच्छता को बनाए रखने में सहायता

 संभावित नुकसान

  • संक्रमण, अत्यधिक रक्तस्राव और गलत सर्जरी की संभावना
  • मानसिक और शारीरिक आघात की आशंका, खासकर नवजात शिशुओं में
  • जबरन खतना से मानवाधिकारों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन

 क्या भारत में खतना वैधानिक है?

भारत में Muslim Circumcision को लेकर कोई विशेष कानून नहीं है। इसे धार्मिक स्वतंत्रता के अंतर्गत वैध माना जाता है। परंतु बाल अधिकारों की संस्थाएं और कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ता इस पर सवाल उठा रहे हैं। उनका मानना है कि बिना बच्चे की सहमति के शारीरिक बदलाव गैरकानूनी होना चाहिए।

 सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाएं

कुछ साल पहले बोहरा समुदाय की बच्चियों के खतने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। कोर्ट ने उस समय केंद्र सरकार से इस पर जवाब मांगा था कि क्या इस तरह की परंपराएं बच्चों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हैं।

 चिकित्सा विशेषज्ञों की राय

 डॉ. इरफान अंसारी, वरिष्ठ शल्य चिकित्सक

Muslim Circumcision अगर सही उम्र और सही चिकित्सा पद्धति से की जाए तो इसमें कोई बड़ी जटिलता नहीं होती। लेकिन बिना एनेस्थीसिया और प्रशिक्षित डॉक्टर के बिना यह गंभीर समस्या बन सकती है।*”

 डॉ. नलिन अग्रवाल, शिशु रोग विशेषज्ञ

“खतना पूरी तरह से मेडिकल आवश्यक नहीं है। इसे धार्मिक कारणों से किया जाता है। यदि इसके लिए सहमति नहीं ली जाती तो यह बच्चों के मानवाधिकार का हनन माना जा सकता है।”

 माता-पिता की सोच और समाज का दबाव

भारत के कई मुस्लिम परिवारों में Muslim Circumcision न केवल धार्मिक नियम के तहत बल्कि सामाजिक पहचान के तौर पर भी होता है। माता-पिता को डर होता है कि अगर उन्होंने यह प्रक्रिया नहीं करवाई, तो समाज में उनकी धार्मिक पहचान पर प्रश्नचिन्ह लग सकता है।

 बदलती सोच

हाल के वर्षों में कुछ जागरूक मुस्लिम परिवार इस प्रक्रिया को लेकर पुनर्विचार कर रहे हैं। वे इसे बच्चों के बड़े होने के बाद उनके निर्णय पर छोड़ना चाहते हैं, परंतु इस सोच को समाज में स्वीकार्यता मिलना अब भी कठिन है।

 वैश्विक परिप्रेक्ष्य में खतना

Muslim Circumcision केवल भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के मुस्लिम देशों में किया जाता है। मिस्र, सऊदी अरब, इंडोनेशिया, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में यह आम चलन है। अमेरिका और यूरोप में इसे लेकर लगातार बहस होती रही है। कुछ देशों में इसे माता-पिता की अनुमति से ही सीमित कर दिया गया है।

परंपरा बनाम व्यक्तिगत स्वतंत्रता

Muslim Circumcision आज एक संवेदनशील मुद्दा बन चुका है। यह धर्म, चिकित्सा और कानून तीनों के बीच का जटिल संगम है। जहां एक ओर यह मुस्लिम समुदाय की धार्मिक पहचान से जुड़ा विषय है, वहीं दूसरी ओर बच्चों के अधिकार, स्वतंत्रता और आधुनिक चिकित्सा नैतिकता इसके विरोध में खड़े हैं।

समाज को अब यह समझने की आवश्यकता है कि धार्मिक स्वतंत्रता के साथ-साथ व्यक्तिगत स्वतंत्रता और स्वास्थ्य अधिकार भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। आने वाले वर्षों में इस विषय पर और गहन विचार-विमर्श तथा कानूनी दिशा-निर्देश की आवश्यकता पड़ सकती है।

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