क्यों एक उम्र के बाद बच्चों से दूर हो जाते हैं पिता? जानिए एक्सपर्ट के बताए 4 चौंकाने वाले कारण

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हाइलाइट्स

  • पिता और बच्चे का रिश्ता किशोरावस्था में सबसे अधिक बदलाव से गुजरता है।
  • घर में मौजूद रहना और बच्चे के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ना, दोनों अलग बातें हैं।
  • केवल नियम लागू करने से नहीं, भरोसा बनाने से रिश्ता मजबूत होता है।
  • ग्रेड से ज्यादा जरूरी है बच्चे की भावनाओं को समझना।
  • समय रहते जुड़ाव नहीं बनाया तो दूरी पाटना मुश्किल हो जाता है।

किशोरावस्था और पिता-बच्चे का बदलता रिश्ता

किशोरावस्था वह दौर है जब बच्चा न पूरी तरह छोटा रहता है, न पूरी तरह बड़ा बन पाता है। यह समय अपने आप को समझने, अपनी पहचान बनाने और दुनिया को नए नजरिए से देखने का होता है। इसी समय पिता और बच्चे का रिश्ता भी एक नाजुक मोड़ पर पहुंच जाता है।

पेरेंटिंग कोच और फैमिली रिलेशन एक्सपर्ट पुष्पा शर्मा के अनुसार, 12-13 साल की उम्र के बाद बच्चे कई बार अपने पिता से दूरी बनाने लगते हैं। यह दूरी अचानक नहीं आती, बल्कि छोटी-छोटी बातों का असर समय के साथ गहरा होता जाता है।

मौजूद रहना और भावनात्मक रूप से जुड़ना — दोनों अलग हैं

कई पिता यह मान लेते हैं कि घर पर रहना ही बच्चों के साथ समय बिताना है। लेकिन घर में मौजूद रहने और सचमुच बच्चे के साथ मौजूद होने में बड़ा अंतर है।

अगर पिता घर में रहते हुए भी ज्यादातर समय टीवी, फोन या अपने काम में उलझे रहते हैं, तो बच्चे को लगता है कि उनका इमोशनल कनेक्शन कमजोर है। पिता और बच्चे का रिश्ता तभी गहरा होता है, जब पिता बच्चों की बात सुनें, उनकी खुशियों और चुनौतियों में हिस्सा लें।

भरोसे के बिना रिश्ता अधूरा

किशोरावस्था में लड़के अपनी ताकत और क्षमता को परखना चाहते हैं, जबकि लड़कियां यह जानना चाहती हैं कि वे कितनी अहम हैं। अगर पिता का रिश्ता केवल नियम लागू करने और डांटने तक सीमित रह जाए, तो भरोसा खत्म होने लगता है।

ऐसी स्थिति में बच्चे अपनी बात घर पर शेयर करना बंद कर देते हैं और दोस्तों या सोशल मीडिया में वह ध्यान और मान्यता ढूंढने लगते हैं, जो घर में नहीं मिलती। यह सीधा असर पिता और बच्चे के रिश्ते पर पड़ता है।

ग्रेड से ज्यादा जरूरी है समझ

कई बार पिता बच्चों को केवल एक “प्रोजेक्ट” की तरह देखने लगते हैं, जहां सिर्फ उनके रिजल्ट और अनुशासन पर फोकस होता है। पुष्पा शर्मा कहती हैं — बच्चों को कंट्रोल करने से ज्यादा जरूरी है उन्हें समझना।

अगर आप चाहते हैं कि पिता और बच्चे का रिश्ता मजबूत बना रहे, तो बच्चों की भावनाओं को समझें, उनके डर और सपनों के बारे में पूछें और धैर्य के साथ उनकी बातें सुनें।

समय रहते जुड़ाव जरूरी

कई पिता सोचते हैं कि अभी सख्त रहेंगे और बाद में बच्चों के साथ दोस्ती करेंगे। लेकिन हकीकत यह है कि अगर किशोरावस्था में जुड़ाव नहीं बनाया, तो बाद में दूरी पाटना बेहद मुश्किल हो जाता है।

12 साल की उम्र तक अगर आप भावनात्मक रूप से नहीं जुड़े, तो हाई स्कूल या कॉलेज के समय में अचानक करीब आना आसान नहीं होता। इस समय तक बच्चे तय कर चुके होते हैं कि वे किसके साथ सुरक्षित और सहज महसूस करते हैं। यही वजह है कि इस दौर में पिता और बच्चे का रिश्ता या तो बेहद मजबूत हो सकता है या धीरे-धीरे कमजोर।

पिता और बच्चे का रिश्ता मजबूत बनाने के उपाय

1. रोज़ाना संवाद

दिन में कम से कम 15-20 मिनट सिर्फ बच्चे से बात करें, बिना फोन या टीवी के।

2. छोटे-छोटे पलों में शामिल हों

उनकी उपलब्धियों पर खुश हों, असफलताओं में साथ खड़े हों।

3. भरोसा दिखाएं

हर बार गलती पर सज़ा देने के बजाय समाधान और सीख पर ध्यान दें।

4. मिलकर गतिविधियां करें

कभी साथ खाना बनाएं, खेल खेलें या वॉक पर जाएं। ये पल पिता और बच्चे का रिश्ता मजबूत करते हैं।

5. इमोशंस पर चर्चा

बच्चों को यह महसूस कराएं कि उनकी भावनाएं भी उतनी ही अहम हैं जितना उनका प्रदर्शन।

भावनात्मक जुड़ाव का दीर्घकालिक असर

जब पिता और बच्चे का रिश्ता भरोसे, समझ और समय पर आधारित होता है, तो बच्चे जीवन में ज्यादा आत्मविश्वासी और संतुलित बनते हैं। वे अपने फैसले सोच-समझकर लेते हैं और मुश्किल समय में भी परिवार को अपना सबसे बड़ा सहारा मानते हैं।

पेरेंटिंग एक्सपर्ट्स मानते हैं कि किशोरावस्था में बनाया गया भावनात्मक जुड़ाव, आने वाले दशकों तक बच्चे के व्यक्तित्व और रिश्तों की नींव तय करता है। इसलिए यह समय हल्के में नहीं लेना चाहिए।

किशोरावस्था वह मोड़ है जहां पिता और बच्चे का रिश्ता या तो मजबूत नींव पा सकता है या धीरे-धीरे कमजोर पड़ सकता है। इसकी मजबूती का राज़ सिर्फ समय देने में नहीं, बल्कि दिल से जुड़ने में है। भरोसा, संवाद और समझदारी — यही वह तीन स्तंभ हैं जिन पर यह रिश्ता जीवनभर खड़ा रहता है।

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