बाथरूम में कैमरे, बिजली-पानी गायब और ट्रेनिंग ठप: गोरखपुर में महिला सिपाहियों के विद्रोह की अंदरूनी कहानी!

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हाइलाइट्स

  • Women Police Trainee Protest का वीडियो वायरल, बाथरूम में कैमरे और बुनियादी सुविधाओं के अभाव का आरोप
  • तकरीबन 600 ट्रेनी महिला सिपाहियों ने PAC बिछिया, गोरखपुर के गेट पर जमकर हंगामा किया
  • ट्रेनिंग सेंटर की क्षमता सिर्फ 300, लेकिन दोगुनी संख्या में रिक्रूट रखे जाने से जगह‑पानी‑बिजली की किल्लत
  • वरिष्ठ अधिकारियों ने समझाकर वापस भेजा, मगर Women Police Trainee Protest जारी रखने की चेतावनी
  • कमांडेंट ने अतिरिक्त शौचालय‑बाथरूम निर्माण व जांच समिति का भरोसा दिया, फिर भी भरोसा नहीं जता रहीं ट्रेनीज़

Women Police Trainee Protest: घटनाक्रम की पृष्ठभूमि

गोरखपुर के शाहपुर क्षेत्र स्थित 26वीं बटालियन PAC कैंपस में मंगलवार तड़के साढ़े पाँच बजे के आसपास Women Police Trainee Protest तब फूटा, जब आधी रात से बिजली कट और पानी की कमी झेल रहीं 598 प्रशिक्षु महिलाएँ बिखर पड़ीं। रोते‑चीखते हुए वे मुख्य गेट पर जमा हुईं और “सुरक्षा हमें भी चाहिए” के नारे लगाने लगीं। उनका आरोप—शौचालय‑ब्लॉक की गैलरी में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, जिनसे उनकी निजता खतरे में पड़ गई है।

पिछले 48 घंटों से सोशल मीडिया पर #WomenPoliceTraineeProtest ट्रेंड कर रहा है। वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि Women Police Trainee Protest में शामिल कुछ महिलाएँ वर्दी में, कुछ ट्रेनिंग ड्रेस में, लगातार आँसू पोंछते हुए सुविधाओं की बदहाली बयान कर रही हैं।

आरोपों का भूचाल

बाथरूम में कैमरा लगाने का दावा

ट्रेनी शिवानी (बदला हुआ नाम) ने रोते हुए कहा, “हम ‘सुरक्षा प्रहरी’ बनने आई हैं, लेकिन यहाँ हमारी ही सुरक्षा दांव पर है। बाथरूम के ऊपर‑नीचे कैमरा जैसा लेंस लगा दिखा। शिकायत की तो अफसर ने कहा—‘देख लेंगे।’ हम किससे न्याय माँगे?” उनकी बात पर शोर मचाता समूह लगातार “Women Police Trainee Protest जिंदाबाद” के नारे लगाता रहा।

आधी रात बिना बिजली, आधा लीटर पानी

एक अन्य ट्रेनी ने बताया कि जनरेटर कभी चलाया ही नहीं गया। गर्मी में बिना पंखे के सोना मुश्किल है। RO एक ही, पानी आधा लीटर मिलता है, वह भी कई बार खारा। “हम अधिकतम पाँच‑सात मिनट में स्नान करते हैं, लेकिन फिर भी पानी नहीं रहता,” उसने कहा। यह बयान वीडियो में साफ सुना गया, जिसे Women Police Trainee Protest हैशटैग के साथ लाखों बार देखा गया।

क्षमता से दोगुनी भीड़, सुरक्षा से समझौता

Women Police Trainee Protest के कारण

26वीं बटालियन PAC का यह केंद्र वर्ष 1995 में 300 कैडेट क्षमता के साथ बना था। इस समय 598 कैडेट—यानी लगभग दोगुनी—को एक ही बैरक‑ब्लॉक में समायोजित किया गया है। क्षमता‑अभाव का खामियाजा सबसे पहले शयनक्षेत्र और शौचालयों पर पड़ा। Women Police Trainee Protest के दौरान कई सिपाहियों ने दावा किया कि बेड तक फर्श पर लगाने पड़े हैं।

प्रशासन का पक्ष

PAC कमांडेंट आनंद कुमार ने प्रेस को बताया, “आरोप गम्भीर हैं। कैमरे हटाने और अतिरिक्त वॉशरूम निर्माण का काम शुरू हो चुका है। जाँच समिति भी गठित होगी। सबूत मिले तो दोषी बख्शे नहीं जाएँगे।” उन्होंने यह भी कहा कि Women Police Trainee Protest का धैर्य सराहनीय है, परंतु कानून व्यवस्था बनाए रखना भी उतना ही आवश्यक है।

जाँच समिति का खाका

  • पाँच सदस्यीय टीम, जिनमें दो महिला IPS अधिकारी
  • 72 घंटे के भीतर प्राथमिक रिपोर्ट
  • इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस इक्विपमेंट का फॉरेंसिक ऑडिट
    कमांडेंट ने भरोसा दिलाया कि “Women Police Trainee Protest में उठाए गए हर बिंदु पर पारदर्शी कार्रवाई होगी।”

व्यापक संदर्भ: महिला सुरक्षा बनाम संस्थागत ढाँचा

प्रशिक्षण संस्थानों की निगरानी व्यवस्था

राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की 2024‑25 रिपोर्ट के अनुसार, देश के 47% पुलिस प्रशिक्षण संस्थानों में आधारभूत सुविधाएँ मानक से कम पाई गईं। Women Police Trainee Protest ने इस आँकड़े को एक जीवंत उदाहरण के रूप में सामने ला दिया है। विशेषज्ञों का कहना है, यदि शुरुआती प्रशिक्षण में ही महिला सशक्तिकरण की अनदेखी होगी तो पूर्ण‑कालिक सेवा के दौरान वे स्वयं आश्वस्त कैसे रहेंगी?

कानूनी पहलू और नैतिक प्रश्न

भारतीय दंड संहिता की धारा‑354C (Voyeurism) शौचालय में कैमरा लगाने को गंभीर अपराध मानती है। यदि Women Police Trainee Protest के आरोप सही पाए गए तो दोषियों को पाँच से सात वर्ष की सजा हो सकती है। इसके अलावा, ‘Information Technology Act‑2000’ की धारा‑66E भी लागू होगी।

सोशल मीडिया की भूमिका

महज तीन घंटे में 2.3 मिलियन इम्प्रेशन वाले #WomenPoliceTraineeProtest ट्रेंड ने यह दिखाया कि डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म संस्थागत जवाबदेही तय करने का हथियार बन सकते हैं। महिला संगठन ‘पिंक बटालियन’ ने ट्वीट किया—“जब सुरक्षा‑बल की महिलाएँ ही असुरक्षित हों, तो आम महिला कहाँ सुरक्षित?”—इस ट्वीट को भी Women Police Trainee Protest के समर्थन में व्यापक साझा किया गया।

सरकार की प्रतिक्रियाएँ

उत्तर प्रदेश के गृह विभाग ने जिलाधिकारी व एसपी को संयुक्त निष्पक्ष जाँच का आदेश दिया है। राज्‍य मंत्री (गृह) ने विधानसभा परिसर में कहा, “Women Police Trainee Protest यदि व्यवस्थागत खामी का परिणाम है तो कड़ी कार्रवाई होगी।” विपक्ष ने हाउस में मुद्दा उठा कर कहा—“कैमरे लगाना सुनियोजित अपराध है।”

विशेषज्ञ क्या कहते हैं?

सुरक्षा विश्लेषक डॉ. मीरा राठौर मानती हैं कि Women Police Trainee Protest ने “ट्रेनिंग के दौरान मनोवैज्ञानिक सुरक्षा” का प्रश्न उछाला है। उनका सुझाव—हर पुलिस अकादमी में ‘Gender Sensitivity Audit’ अनिवार्य होना चाहिए। वहीं, पूर्व डीजीपी प्रशांत सिंह ने कहा, “डिसिप्लिन दंभ नहीं, सहूलियत से आता है। Women Police Trainee Protest चेतावनी है कि सुविधाएँ सुधारें, वरना प्रतिभा पलायन होगा।”

आगे क्या?

कमांडेंट ने सात‑दिवसीय समयसीमा तय की है। यदि इन दिनों में

  1. अतिरिक्त शौचालयों का निर्माण,
  2. जनरेटर के नियमित संचालन,
  3. RO यूनिट बढ़ाने,
  4. और संदिग्ध कैमरों की फॉरेंसिक जाँच
    पूरी नहीं होती, तो कैडेटों ने “अनिश्चितकालीन Women Police Trainee Protest” की चेतावनी दी है।

गोरखपुर की यह घटना सिर्फ एक प्रशिक्षण केंद्र का प्रशासनिक संकट नहीं, बल्कि उस सामाजिक विडंबना का आईना है जिसमें ‘रक्षक’ बनने चली बेटियाँ अपने ही प्रशिक्षण‑काल में असुरक्षित महसूस करती हैं। Women Police Trainee Protest ने बता दिया है कि संसाधन‑विकास और संवेदनशील प्रशासनिक निगरानी के बिना ‘महिला सशक्तिकरण’ का नारा खोखला है।

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