हाइलाइट्स
- Waqf Act पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने दिया बड़ा बयान
- सिब्बल बोले: मस्जिदों में चढ़ावे की परंपरा नहीं, मंदिरों से तुलना अनुचित
- अदालत में वक्फ़ बोर्ड की भूमिका और अधिकारों पर हुई व्यापक बहस
- याचिकाकर्ता ने Waqf Act की संवैधानिक वैधता को दी चुनौती
- पूरे देश में वक्फ़ संपत्तियों को लेकर छिड़ी बहस ने पकड़ी राजनीतिक गर्मी
Waqf Act पर सुप्रीम कोर्ट में बहस का केंद्र बने कपिल सिब्बल के बयान
सुप्रीम कोर्ट में Waqf Act की संवैधानिकता पर सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल का बयान सामने आया है, जो अब एक बड़ी बहस का विषय बन गया है। उन्होंने कोर्ट को संबोधित करते हुए कहा कि “मस्जिदों में मंदिरों की तरह चढ़ावा नहीं आता है,” और यह तथ्य Waqf Act के तहत वक्फ़ संपत्तियों की प्रकृति को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
यह बयान ऐसे समय में आया है जब पूरे देश में वक्फ़ बोर्ड द्वारा नियंत्रित संपत्तियों और उनके अधिकार क्षेत्र को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। कई याचिकाएं इस कानून को “एकतरफा” और “धार्मिक पक्षपातपूर्ण” बताते हुए इसकी समीक्षा की मांग कर रही हैं।
क्या है Waqf Act और क्यों है ये विवादों में?
Waqf Act, 1995 में संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है, जिसका उद्देश्य मुस्लिम धर्मार्थ संस्थाओं और संपत्तियों को व्यवस्थित रूप से प्रबंधित करना है। इस अधिनियम के तहत प्रत्येक राज्य में एक वक्फ़ बोर्ड का गठन किया गया है, जो मस्जिदों, कब्रिस्तानों, मदरसों और दरगाहों की संपत्तियों की देखरेख करता है।
Waqf Act के मुख्य प्रावधान:
- वक्फ़ संपत्तियों का पंजीकरण अनिवार्य
- वक्फ़ बोर्ड को प्रबंधन, किराया निर्धारण और लीज़ देने के अधिकार
- किसी संपत्ति पर दावा करने के लिए अदालत में विशेष प्रक्रिया निर्धारित
परंतु, हाल के वर्षों में यह अधिनियम कई बार निशाने पर आया है। आरोप यह है कि इसके जरिए वक्फ़ बोर्ड को “बिना पर्याप्त न्यायिक समीक्षा” के भारी संपत्तियों पर अधिकार मिल जाता है।
सुनवाई में क्या-क्या हुआ?
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने यह दलील दी कि Waqf Act “समानता के अधिकार” (Article 14) और “धार्मिक स्वतंत्रता” (Article 25-28) का उल्लंघन करता है। उनका तर्क था कि किसी एक धर्म को इतनी अधिक कानूनी शक्ति देना संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है।
इसके जवाब में कपिल सिब्बल ने अदालत से कहा:
“मस्जिदें चढ़ावे पर नहीं चलतीं। वहां ऐसी आर्थिक गतिविधियाँ नहीं होतीं जैसी मंदिरों में होती हैं। वक्फ़ संपत्तियाँ समाज सेवा और धर्मार्थ कार्यों के लिए होती हैं, न कि व्यावसायिक लाभ के लिए।”
उन्होंने आगे यह भी जोड़ा कि Waqf Act का मकसद “मुस्लिम समाज की धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं को संरक्षित करना है,” और इसकी तुलना मंदिरों से करना न्यायोचित नहीं।
वक्फ़ संपत्तियों को लेकर देशभर में विवाद
भारत में अनुमानतः 6 लाख से अधिक वक्फ़ संपत्तियाँ हैं, जिनमें कई करोड़ों की ज़मीनें शामिल हैं। इन संपत्तियों को लेकर प्रायः दो तरह के विवाद सामने आते हैं:
1. निजी भूमि पर वक्फ़ दावा:
कई स्थानों पर लोगों ने यह आरोप लगाया है कि वक्फ़ बोर्ड ने उनकी निजी संपत्ति पर दावा ठोंक दिया। इसके उदाहरण मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में देखे गए हैं।
2. सरकारी योजनाओं में अड़चन:
कुछ राज्यों में रेलवे, राजमार्ग निर्माण और सरकारी भवन परियोजनाओं में वक्फ़ संपत्ति घोषित होने के कारण प्रोजेक्ट अटक गए हैं। इससे विकास कार्यों पर भी असर पड़ा है।
राजनीतिक दृष्टिकोण और प्रतिक्रियाएँ
Waqf Act पर जारी बहस में राजनीतिक रंग भी चढ़ चुका है। कुछ दल इसे “अल्पसंख्यकों को विशेष लाभ” कहकर आलोचना कर रहे हैं, जबकि अन्य इसे “धार्मिक अधिकारों की रक्षा का ज़रिया” मानते हैं।
विपक्ष का आरोप:
- कानून एकतरफा है
- हिन्दू, सिख, ईसाई संस्थाओं के लिए ऐसे व्यापक अधिनियम नहीं
- वक्फ़ बोर्ड का नियंत्रण राजनीतिक बन चुका है
समर्थकों की दलील:
- यह एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र की पहचान है
- मुस्लिम समाज की संपत्तियों की रक्षा हेतु आवश्यक
- इससे शिक्षा, स्वास्थ्य और धर्मार्थ कार्यों को बढ़ावा मिलता है
क्या कहती है अदालत और आगे क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए कहा है कि वह Waqf Act के सभी पहलुओं की विस्तृत जांच करेगा। अदालत का ध्यान इस बात पर भी है कि क्या इस अधिनियम की प्रक्रिया “प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों” का पालन करती है।
अगली सुनवाई की तारीख तय कर दी गई है, जिसमें केंद्र सरकार और राज्य वक्फ़ बोर्डों को भी अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाएगा।
विशेषज्ञों की राय
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि Waqf Act जैसे अधिनियमों की समीक्षा समय-समय पर होनी चाहिए। विशेषकर जब समाज में संपत्ति अधिकारों को लेकर इतनी संवेदनशीलता हो।
प्रो. फैज़ान उस्मानी, एक संवैधानिक विशेषज्ञ कहते हैं:
“अगर किसी संपत्ति पर दावा किया जाता है, तो उसका निपटारा अदालत में निष्पक्ष ढंग से होना चाहिए। वक्फ़ बोर्ड को यह अधिकार नहीं होना चाहिए कि वह बिना न्यायिक आदेश के संपत्ति को ‘वक्फ़’ घोषित कर दे।”
Waqf Act पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई ने एक गहरे संवैधानिक, सामाजिक और राजनीतिक बहस को जन्म दिया है। कपिल सिब्बल का बयान — “मस्जिदों में चढ़ावा नहीं आता,” — न केवल धार्मिक संस्थाओं की आर्थिक प्रकृति पर प्रकाश डालता है, बल्कि यह भी बताता है कि अलग-अलग धार्मिक व्यवस्थाओं के लिए समान कानून बनाना कितना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
इस बहस का फैसला सिर्फ एक कानून नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र में धार्मिक अधिकारों और समानता के संतुलन को भी निर्धारित करेगा।