हाइलाइट्स
- Viral Video में दिखा बीजेपी एमएलसी अरुण पाठक और आईपीएस अधिकारी के बीच तीखा विवाद
- ग्रीन पार्क स्टेडियम में घुसने की कोशिश कर रहे थे अरुण पाठक, रोकने पर भड़के
- महिला आईपीएस अधिकारी अंजली विश्वकर्मा ने नहीं झुकाया सिर, ड्यूटी को प्राथमिकता दी
- बहस में झलकी जातीय मानसिकता, अरुण पाठक के व्यवहार पर उठे सवाल
- Viral Video के बाद सोशल मीडिया पर विरोध और समर्थन की बहस तेज
ग्रीन पार्क स्टेडियम में सियासी टकराव: Viral Video से बवाल
उत्तर प्रदेश के कानपुर स्थित ऐतिहासिक ग्रीन पार्क स्टेडियम में एक Viral Video ने पूरे राज्य की सियासत को झकझोर कर रख दिया है। बीजेपी के एमएलसी अरुण पाठक और आईपीएस अधिकारी अंजली विश्वकर्मा के बीच हुआ तीखा टकराव अब जातीय विवाद का रूप ले चुका है।
यह घटना तब हुई जब ग्रीन पार्क स्टेडियम में एक विशेष क्रिकेट मैच चल रहा था, और सुरक्षा बेहद कड़ी थी। इसी दौरान बीजेपी नेता अपने सुरक्षाकर्मियों के साथ स्टेडियम में घुसने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन अंजली विश्वकर्मा ने उन्हें परमिशन न होने के कारण रोक दिया।
Viral Video में दिखी बहस की पूरी तस्वीर
यह विवाद कैमरे में कैद हो गया और चंद घंटों में ही Viral Video बनकर सोशल मीडिया पर फैल गया। वीडियो में साफ़ देखा जा सकता है कि अरुण पाठक बेहद आक्रोशित हैं और महिला अधिकारी से बदसलूकी कर रहे हैं। उन्होंने बार-बार यह जताने की कोशिश की कि वह ‘विधायक’ हैं और उनके रुतबे के आगे कोई अधिकारी नहीं ठहरता।
बीजेपी के एमएलसी अरुण पाठक अपने सुरक्षाकर्मियों के साथ कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम में घुसने की कोशिश कर रहे थे.
आईपीएस अधिकारी अंजली विश्वकर्मा ने अपनी ड्यूटी निभाते हुए सुरक्षाकर्मियों को अंदर जाने की परमिशन नही दी.
इस बात से अरुण पाठक नाराज हो गए और अंजली विश्वकर्मा से… pic.twitter.com/FKJ35WSXDC
— Kranti Kumar (@KraantiKumar) June 30, 2025
ड्यूटी बनाम दबाव: अंजली विश्वकर्मा की निडरता
जहाँ एक तरफ विधायक रौब झाड़ने की कोशिश कर रहे थे, वहीं अंजली विश्वकर्मा पूरे आत्मविश्वास से अपनी ड्यूटी पर अडिग रहीं। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि सुरक्षा नियम सबके लिए एक जैसे हैं, चाहे वो विधायक हों या आम नागरिक।
इस Viral Video में उनकी स्पष्टवादिता और प्रोफेशनलिज्म को खूब सराहा जा रहा है। कई सोशल मीडिया यूज़र्स ने लिखा, “अगर ऐसे अफसर हर विभाग में हों, तो भ्रष्टाचार और जातिवाद की जड़ें अपने आप खत्म हो जाएंगी।”
जातीय मानसिकता की झलक: Viral Video के पीछे की सोच
विवाद सिर्फ एक स्टेडियम में घुसने की अनुमति तक सीमित नहीं था। इस पूरे टकराव में जो बात सबसे ज्यादा चुभती है, वह है जातीय भेदभाव की मानसिकता। सूत्रों की मानें तो अरुण पाठक इस बात से असहज थे कि उन्हें एक OBC वर्ग की महिला अफसर द्वारा रोका गया।
यही कारण है कि बहस के दौरान उनके व्यवहार में आक्रोश से ज़्यादा जातीय अहंकार साफ दिखाई दिया। वीडियो में उनका लहजा, उनकी बॉडी लैंग्वेज और बार-बार की जा रही धमकियाँ इसी ओर इशारा करती हैं।
सोशल मीडिया पर उठे तीखे सवाल
Viral Video वायरल होने के बाद ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर जनता की प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई है। कुछ ने अरुण पाठक का समर्थन किया, तो अधिकांश लोग अंजली विश्वकर्मा के समर्थन में खड़े हो गए।
एक यूजर ने लिखा, “जिस अधिकारी ने अपनी वर्दी और जिम्मेदारी का मान रखा, उस पर दबाव बनाना एक अपराध है।”
वहीं दूसरे यूजर ने टिप्पणी की, “जातीय घमंड में चूर नेतागण लोकतंत्र की असली ताकत को भूल बैठे हैं।”
उत्तर प्रदेश पुलिस की चुप्पी क्यों?
अब सवाल यह उठता है कि उत्तर प्रदेश पुलिस इस मामले में क्या कार्रवाई करेगी। क्या एक महिला अधिकारी को बिना किसी राजनीतिक दबाव के समर्थन मिलेगा? या फिर राजनीतिक प्रभाव के चलते मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा?
कई रिटायर्ड अफसरों का मानना है कि इस मामले में टिक-फॉर-टेट (Tit-for-Tat) जवाब देने की ज़रूरत है। यदि पुलिस अपने अफसरों के सम्मान को सुरक्षित नहीं रख पाएगी, तो यह पूरी फोर्स के मनोबल को तोड़ेगा।
Viral Video ने खोले कई मोर्चे
- क्या एक जनप्रतिनिधि को नियमों से ऊपर माना जाना चाहिए?
- क्या जातीय पहचान के आधार पर अफसरों के साथ दुर्व्यवहार उचित है?
- क्या पुलिस को अपनी जिम्मेदारी निभाने की आज़ादी है?
इन सभी सवालों के जवाब इस Viral Video में छिपे हैं, जिसने सिर्फ एक बहस नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय विमर्श को जन्म दिया है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं: चुप्पी या समर्थन?
जहाँ बीजेपी ने इस पर आधिकारिक बयान देने से इनकार किया है, वहीं विपक्ष इस वीडियो को सरकारी तंत्र में जातिवादी सोच का उदाहरण बता रहा है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने मांग की है कि अरुण पाठक के खिलाफ कार्यवाही हो और अंजली विश्वकर्मा को सम्मानित किया जाए।
Viral Video ने दिखाया असली चेहरा
यह महज एक Viral Video नहीं, बल्कि हमारे सिस्टम में छुपे जातीय विष को उजागर करने वाला आईना है। जब तक अफसरों को उनकी जाति के आधार पर आंका जाएगा, तब तक लोकतंत्र अधूरा ही रहेगा।
इस घटना ने यह भी साबित किया कि अगर कोई अफसर अपने फर्ज़ पर अडिग रहे, तो सत्ता भी झुकने को मजबूर हो सकती है। अंजली विश्वकर्मा जैसे अफसर लोकतंत्र की असली रीढ़ हैं