हाइलाइट्स
- अमेरिकी टैरिफ बढ़ने से भारतीय निर्यातक उद्योगों को बड़ा झटका लग सकता है
- ट्रंप ने भारत पर अब तक कुल 50 प्रतिशत अमेरिकी टैरिफ लगा दिया है
- टेक्सटाइल, फार्मा, ऑटो कंपोनेंट्स और रत्न-आभूषण सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित
- भारत का 17.7% निर्यात अमेरिका को होता है, जिससे व्यापार असंतुलन बढ़ सकता है
- विशेषज्ञों ने चीन की तर्ज पर सरकारी सब्सिडी देने की सिफारिश की
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाया गया नया अमेरिकी टैरिफ भारतीय अर्थव्यवस्था पर एक और दबाव की तरह सामने आया है। इस बार ट्रंप ने 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ का ऐलान किया है, जो कि अगले 21 दिनों में प्रभावी हो जाएगा। इससे पहले भी अमेरिका ने 25 प्रतिशत का अमेरिकी टैरिफ भारत पर थोप दिया था, जो 7 अगस्त से लागू होना है। कुल मिलाकर अब भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लागू किया जा चुका है।
यह निर्णय ऐसे समय पर आया है जब भारत का व्यापार पहले से ही वैश्विक मंदी, कच्चे तेल की कीमतों और डॉलर की मजबूती से प्रभावित है। ऐसे में अमेरिकी टैरिफ का यह डबल हमला भारतीय निर्यातकों और अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर संकट उत्पन्न कर सकता है।
अमेरिका को भारत का 17.7% निर्यात: अब क्या होगा?
व्यापार असंतुलन की आशंका बढ़ी
वित्त वर्ष 2024 में भारत का अमेरिका को निर्यात 81 अरब डॉलर रहा, जो कुल निर्यात का लगभग 17.7% हिस्सा है। यह स्पष्ट करता है कि अमेरिका भारत के लिए एक महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार है। परंतु अमेरिकी टैरिफ में बढ़ोतरी से यह साझेदारी अब दबाव में आ गई है।
भारत का अमेरिका के साथ व्यापार सरप्लस (ज्यादा निर्यात, कम आयात) में है, जो ट्रंप प्रशासन के लिए असहज स्थिति पैदा करता है। इसी असंतुलन को कम करने की आड़ में अमेरिकी टैरिफ को हथियार बनाया गया है।
कौन-कौन से सेक्टर होंगे सबसे ज्यादा प्रभावित?
टेक्सटाइल सेक्टर: रोज़गार पर खतरा
भारत के टेक्सटाइल और अपैरल एक्सपोर्ट का लगभग 28% अमेरिका को जाता है। ट्रंप के अमेरिकी टैरिफ के निर्णय से ट्राइडेंट, वेलस्पन लिविंग, केपीआर मिल जैसी बड़ी कंपनियों को बड़ा झटका लग सकता है।
अब तक अमेरिका भारतीय कपड़ों पर 10-12% टैरिफ लगा रहा था, जो अब बढ़कर 50% हो जाएगा। यह बढ़ोत्तरी सीधे तौर पर भारत के प्रमुख श्रमिक-आधारित उद्योग टेक्सटाइल सेक्टर को प्रभावित करेगी, जिससे लाखों लोगों की नौकरियों पर संकट मंडरा रहा है।
फार्मास्यूटिकल्स: अमेरिका को सबसे बड़ा निर्यात
भारत से अमेरिका को सबसे अधिक जेनरिक दवाएं और API (Active Pharmaceutical Ingredients) एक्सपोर्ट किए जाते हैं। अनुमान है कि वित्त वर्ष 2025 में भारत से अमेरिका को 10 अरब डॉलर की दवाओं का निर्यात होगा।
अमेरिकी टैरिफ अगर फार्मा उत्पादों पर भी लगाया गया, तो इससे अमेरिकी बाजार में भारतीय दवाएं महंगी हो सकती हैं। साथ ही, भारतीय कंपनियों की प्रतिस्पर्धा शक्ति भी घटेगी। यह स्थिति ग्लोबल हेल्थकेयर सप्लाई चेन को प्रभावित कर सकती है।
ऑटो कंपोनेंट्स: इंजीनियरिंग सेक्टर की चिंता
2024 में भारत ने अमेरिका को लगभग 2.2 अरब डॉलर के ऑटो पार्ट्स निर्यात किए। यह क्षेत्र ‘मेक इन इंडिया’ अभियान का अहम हिस्सा है। अब अमेरिकी टैरिफ की वजह से इस सेक्टर की ग्रोथ पर ब्रेक लग सकता है।
कलपुर्जों की कीमत बढ़ने से अमेरिकी कंपनियों के लिए भारतीय उत्पादों की मांग घटेगी, जिससे घरेलू निर्माताओं को ऑर्डर में गिरावट झेलनी पड़ सकती है।
रत्न और आभूषण: चमक हुई फीकी
भारत से अमेरिका को लगभग 12 अरब डॉलर के रत्न और आभूषण निर्यात किए जाते हैं। इस सेक्टर में अमेरिका की हिस्सेदारी करीब 30% है।
यह पहले से ही 27% टैरिफ झेल रहा है और अब 25% का नया अमेरिकी टैरिफ इस क्षेत्र की कमर तोड़ सकता है। इससे भारत के ज्वेलरी एक्सपोर्टर्स को भारी घाटा हो सकता है।
तेल और गैस: लागत में इजाफा तय
भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरत का 35-40% हिस्सा रूस से पूरा करता था। अब अमेरिका की बढ़ती निगरानी और दबाव की वजह से स्रोत बदलने पड़ सकते हैं, जिससे प्रति बैरल 3 डॉलर तक लागत बढ़ सकती है।
अगर अमेरिकी टैरिफ की वजह से सप्लाई चेन में बदलाव हुआ, तो इसका सीधा असर रिलायंस इंडस्ट्रीज और ओएमसी जैसी कंपनियों के प्रॉफिट मार्जिन पर पड़ेगा।
सोलर सेक्टर पर पड़ेगा परोक्ष प्रभाव
भारत के सोलर पीवी सेल और मॉड्यूल एक्सपोर्ट अमेरिका को होते हैं। अब अमेरिकी टैरिफ लगने से इनकी प्रतिस्पर्धा क्षमता घटेगी। हालांकि रिन्यूएबल एनर्जी प्रोजेक्ट्स पर प्रत्यक्ष प्रभाव सीमित रहेगा, लेकिन लॉन्ग टर्म में यह सेक्टर भी नुकसान झेलेगा।
किन सेक्टरों पर असर कम होगा?
विशेषज्ञों का मानना है कि आईटी सेवाएं, एफएमसीजी, रियल एस्टेट, बैंकिंग और इंश्योरेंस सेक्टर पर अमेरिकी टैरिफ का असर नगण्य होगा। खासकर आईटी कंपनियां अपनी सेवाओं की गुणवत्ता और नवाचार के दम पर अमेरिकी बाजार में अपनी पकड़ बनाए रखेंगी।
विशेषज्ञों की चेतावनी: “चीन की तरह देनी होगी सरकारी मदद”
परिधान निर्यात संवर्धन परिषद (APEC) के अध्यक्ष सुधीर सेखरी ने कहा कि भारतीय निर्यातक 25% अतिरिक्त अमेरिकी टैरिफ को सहन नहीं कर पाएंगे। सरकार को चाहिए कि वह निर्यातकों को उसी तरह की सब्सिडी दे जैसी चीन की सरकार अपने निर्यातकों को देती है।
उनका कहना है कि अगर ऐसा नहीं किया गया, तो टेक्सटाइल और अन्य श्रमिक प्रधान सेक्टरों में बेरोजगारी बढ़ सकती है, जिससे सामाजिक और आर्थिक असंतुलन पैदा होगा।
आगे की राह चुनौतीपूर्ण
डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिकी टैरिफ नीति ने भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। भारत को अब अपनी रणनीति बदलनी होगी।
आवश्यक है कि भारत सरकार अमेरिकी बाजार के विकल्पों की तलाश करे, घरेलू विनिर्माण को सब्सिडी दे और एफटीए (Free Trade Agreements) जैसे विकल्पों पर सक्रियता से काम करे।
साफ है कि अमेरिकी टैरिफ सिर्फ एक व्यापारिक नीति नहीं, बल्कि एक भू-राजनीतिक हथियार बन चुका है। और इस हथियार से बचाव के लिए भारत को आर्थिक और कूटनीतिक मोर्चों पर सजग रहना होगा।