हाइलाइट्स
- United Nations पर भारत की 12 जून, 2025 को गाज़ा युद्धविराम पर मतदान से दूरी को लेकर उठे सवाल
- पवन खेड़ा ने इसे बताया “नैतिक कायरता” और “भारत की उपनिवेशवाद विरोधी परंपरा से विश्वासघात”
- भारत कभी था फिलिस्तीन का सबसे बड़ा समर्थक, 1974 में PLO को मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश
- विदेश मंत्रालय की चुप्पी से और बढ़ा संशय, क्या रणनीतिक चुप्पी का संकेत है यह निर्णय?
- विरोधी दलों ने सरकार पर लगाया अमेरिकी दबाव में आने का आरोप
भारत का United Nations में स्टैंड: खामोशी की गूंज या रणनीतिक चुप्पी?
12 जून, 2025 को United Nations महासभा में गाज़ा युद्धविराम प्रस्ताव पर मतदान के समय भारत द्वारा भाग न लेना केवल एक कूटनीतिक निर्णय नहीं, बल्कि एक नैतिक बहस का विषय बन गया है। इस वोटिंग से भारत की दूरी पर देश के भीतर और वैश्विक मंचों पर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है।
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि यह “भारत की उपनिवेशवाद विरोधी विरासत और स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों से शर्मनाक विश्वासघात” है। उन्होंने याद दिलाया कि भारत एक समय पर फिलिस्तीन का प्रबल समर्थक रहा है और 1974 में PLO को मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश बना था।
क्या है United Nations में पारित हुआ प्रस्ताव?
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 12 जून को एक विशेष प्रस्ताव के माध्यम से गाज़ा में तत्काल युद्धविराम, मानवीय सहायता और बातचीत की पुनर्बहाली की अपील की थी। इस प्रस्ताव के पक्ष में 134 देशों ने मतदान किया, जबकि 15 ने विरोध किया और भारत समेत 29 देशों ने मतदान से दूरी बनाई।
United Nations में भारत की अनुपस्थिति के निहितार्थ
भारत का मतदान से दूरी बनाना उस समय आया जब गाज़ा में हालात बेहद गंभीर हैं—हजारों नागरिक मारे जा चुके हैं, लाखों बेघर हो चुके हैं, और मानवाधिकार संगठनों ने स्थिति को “नरसंहार” करार दिया है।
कई विश्लेषकों का मानना है कि भारत का यह कदम Israel और United States के साथ मजबूत रणनीतिक रिश्तों की दिशा में एक स्पष्ट संकेत है। लेकिन सवाल उठता है—क्या यह रणनीति मानवीय मूल्यों की कीमत पर बनाई जा रही है?
भारत का 12 जून, 2025 को संयुक्त राष्ट्र में गाजा युद्धविराम पर मतदान से दूर रहना एक चौंका देने वाली नैतिक कायरतापूर्ण कृत्य है। यह हमारी उपनिवेशवाद विरोधी विरासत और स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों के साथ शर्मनाक विश्वासघात है। कभी भारत ने फिलिस्तीन के लिए मजबूती से खड़ा होकर इतिहास… pic.twitter.com/ioi3IZii7e
— Lallanpost (@Lallanpost) June 15, 2025
कांग्रेस और विपक्ष का तीखा हमला
“नैतिक कायरता का प्रदर्शन”: पवन खेड़ा
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने ट्वीट कर लिखा:
“भारत का 12 जून, 2025 को संयुक्त राष्ट्र में गाज़ा युद्धविराम पर मतदान से दूर रहना एक चौंका देने वाली नैतिक कायरतापूर्ण कृत्य है। यह हमारी उपनिवेशवाद विरोधी विरासत और स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों के साथ शर्मनाक विश्वासघात है।”
खेड़ा ने सवाल उठाया कि अगर भारत 1974 में United Nations और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने फिलिस्तीन के समर्थन में खड़ा हो सकता था, तो अब चुप्पी क्यों?
भारत की ऐतिहासिक भूमिका और वर्तमान विरोधाभास
1974: PLO को मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश
भारत ने फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (PLO) को आधिकारिक मान्यता देकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फिलिस्तीन के संघर्ष को वैधता दी थी। उस समय भारत ने United Nations में फिलिस्तीन के पक्ष में कई प्रस्तावों का समर्थन किया।
2025: चुप्पी का कारण?
यह सवाल उठता है कि आज जब फिलिस्तीन को समर्थन देने की नैतिक आवश्यकता और अधिक है, तो भारत ने क्यों मतदान से दूरी बनाई?
विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया
जब विदेश मंत्रालय से इस मुद्दे पर जवाब मांगा गया, तो केवल यह कहा गया:
“भारत शांति और स्थिरता का समर्थक है। हमारी प्राथमिकता है कि सभी पक्ष युद्धविराम और मानवीय सहायता सुनिश्चित करें।”
यह अस्पष्ट बयान यह नहीं बताता कि भारत ने United Nations वोटिंग से खुद को अलग क्यों रखा।
रणनीतिक समीकरण: Israel, USA और गहराते रिश्ते
भारत और Israel के बीच सैन्य सहयोग, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और इंटेलिजेंस साझेदारी लगातार बढ़ रही है। वहीं United States के साथ QUAD और Indo-Pacific नीति को लेकर भारत की निकटता भी बढ़ी है।
क्या यही वजह है?
कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अमेरिका और इज़रायल को नाराज़ नहीं करना चाहता। ऐसे में United Nations में वोटिंग से दूरी बनाना एक कूटनीतिक संतुलन का प्रयास है।
जनता और युवाओं की प्रतिक्रिया
सोशल मीडिया पर युवाओं और छात्रों ने सरकार के निर्णय पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। हैशटैग #StandWithPalestine और #UNVoteIndia ट्रेंड करने लगे हैं। कई छात्रों और मानवाधिकार संगठनों ने यह मांग की है कि भारत को फिर से अपनी नैतिक भूमिका निभानी चाहिए।
नैतिकता बनाम रणनीति
भारत का United Nations वोटिंग से दूरी बनाना कूटनीतिक दृष्टि से चाहे जैसे भी समझा जाए, लेकिन नैतिक दृष्टिकोण से यह निर्णय आलोचना के घेरे में है। एक ऐसा देश जिसने उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष किया और दुनिया में न्याय, मानवता और समानता का संदेश दिया, क्या वह आज चुप रह सकता है?
भारत को यह तय करना होगा कि वह केवल एक रणनीतिक खिलाड़ी रहेगा या अपनी ऐतिहासिक नैतिक नेतृत्व की भूमिका भी निभाएगा।