Turkey supported Pakistan

Turkey supported Pakistan” विवाद पर देश में बहिष्कार की लहर, लेकिन गुजरात सरकार अब भी तुर्की कंपनियों के साथ साझेदारी में क्यों?

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हाइलाइट्स :

  • “Turkey supported Pakistan” के बाद भारत में तुर्की के खिलाफ विरोध तेज
  • कई लोग तुर्की यात्रा और उत्पादों का बहिष्कार कर रहे हैं
  • सोशल मीडिया पर #BoycottTurkey ट्रेंड कर रहा है
  • गुजरात सरकार अब भी तुर्की कंपनियों से व्यापारिक संबंध बनाए हुए है
  • विपक्ष ने सवाल उठाया: क्या गुजरात के लिए बहिष्कार नियम अलग हैं?

भारत बनाम तुर्की: “Turkey supported Pakistan” विवाद ने उठाए गंभीर सवाल

हाल ही में एक सोशल मीडिया पोस्ट ने देशभर में नया विवाद खड़ा कर दिया। पत्रकार रोशन राय ने X (पूर्व ट्विटर) पर एक पोस्ट में लिखा, “Turkey supported Pakistan in the Indo Pak clash. Entire country is boycotting Turkey, cancelling trips to Turkey. But Gujarat Govt still has partnership with Turkish firms…” इस बयान ने न सिर्फ आम जनता को झकझोर दिया, बल्कि देश की राजनीतिक गलियों में भी हलचल मचा दी है।

तुर्की ने कब और कैसे पाकिस्तान का समर्थन किया?

“Turkey supported Pakistan” विवाद की शुरुआत 2020 के बाद तब तेज़ हुई जब तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर मुद्दे को उठाया। उन्होंने अपने भाषण में पाकिस्तान का समर्थन करते हुए कश्मीर को “संवेदनशील मुद्दा” बताया। इसके बाद भारत ने कड़ा विरोध दर्ज कराया, और तुर्की के बयान को “भारत की संप्रभुता में हस्तक्षेप” बताया।

उस समय से ही भारत में तुर्की को लेकर जनभावनाएं नकारात्मक हो गईं। “Turkey supported Pakistan” का यह नैरेटिव आम जनता में फैलने लगा।

पर्यटन और व्यापार पर बहिष्कार की छाया

तुर्की के इस रुख के बाद भारतीय पर्यटकों ने तुर्की की यात्रा रद्द करनी शुरू कर दी। कई ट्रैवल एजेंसियों ने भी तुर्की के पैकेज हटाने शुरू किए। सोशल मीडिया पर #BoycottTurkey ट्रेंड करने लगा।

बाजार में भी असर पड़ा:

  • भारतीय लोगों ने तुर्की उत्पादों को खरीदने से परहेज करना शुरू कर दिया
  • कुछ व्यवसायियों ने तुर्की से आयात बंद करने की घोषणा की
  • धार्मिक संगठनों ने भी बहिष्कार को समर्थन दिया

इस पूरे विरोध का आधार एक ही था – “Turkey supported Pakistan”

लेकिन गुजरात सरकार ने क्यों नहीं अपनाया बहिष्कार नीति?

जहां एक ओर देश के अन्य हिस्सों में तुर्की का बहिष्कार हो रहा है, वहीं गुजरात सरकार अब भी तुर्की कंपनियों से साझेदारी बनाए हुए है। रोशन राय की पोस्ट में जिन बिंदुओं को उठाया गया है, वे निम्नलिखित हैं:

1. सूरत मेट्रो परियोजना में तुर्की कंपनियों की भागीदारी 

सूरत में चल रही मेट्रो परियोजना में तुर्की की निर्माण कंपनी Gülermak कार्यरत है। यह कंपनी सुरंग निर्माण और इंजीनियरिंग के लिए नियुक्त की गई है।

2. साणंद में होम अप्लायंसेज की जॉइंट वेंचर 

साणंद औद्योगिक क्षेत्र में एक तुर्की कंपनी के साथ जॉइंट वेंचर के अंतर्गत होम अप्लायंसेज यूनिट की स्थापना हो रही है। यह एक मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट का हिस्सा बताया गया है।

3. INDEX-B में तुर्की डेस्क 

गुजरात इंडस्ट्रियल एक्सपो INDEX-B में विशेष ‘Turkish Business Desk’ स्थापित किया गया है जो तुर्की और गुजरात के उद्यमियों को जोड़ने का काम करता है।

क्या कहती है गुजरात सरकार?

गुजरात सरकार की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। हालांकि, सूत्रों का कहना है कि ये सभी साझेदारियाँ “पूर्व-निर्धारित अनुबंध” के तहत हैं और इनसे पीछे हटना कानूनी जटिलता पैदा कर सकता है।

नाम न छापने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा:

“राजनीतिक बयान अलग होते हैं और व्यावसायिक अनुबंध अलग। हम राष्ट्रहित में काम करते हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय परियोजनाओं में कई पक्ष जुड़े होते हैं।”

विपक्ष ने उठाए तीखे सवाल

विपक्षी पार्टियों ने इस पर तुरंत प्रतिक्रिया दी। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा:

“जब देश में तुर्की के खिलाफ विरोध हो रहा है, तो गुजरात सरकार को ये बताना होगा कि ‘Turkey supported Pakistan’ के बावजूद ये साझेदारी क्यों कायम है?”

आप पार्टी और अन्य क्षेत्रीय दलों ने भी इस मुद्दे पर भाजपा सरकार से पारदर्शिता की मांग की है।

सोशल मीडिया पर आक्रोश

सोशल मीडिया पर “Turkey supported Pakistan” को लेकर जनता में भारी आक्रोश है। लोग गुजरात सरकार से जवाब मांग रहे हैं। कुछ यूज़र्स ने यह भी कहा कि यदि यह स्थिति दिल्ली या महाराष्ट्र में होती तो भाजपा सरकार अब तक धरना-प्रदर्शन कर चुकी होती।

एक यूजर ने लिखा:

“If Turkey supported Pakistan, why are we still doing business with them? Are Gujaratis immune to nationalism?”

 क्या “Turkey supported Pakistan” से जुड़ा विरोध केवल प्रतीकात्मक है?

“Turkey supported Pakistan” को लेकर जो राष्ट्रव्यापी आक्रोश है, वह केवल सोशल मीडिया पर सीमित न रह जाए, इसके लिए नीति निर्माताओं को स्पष्ट स्टैंड लेना होगा।

यदि एक राज्य सरकार तुर्की कंपनियों के साथ खुलेआम व्यापारिक समझौते करती है, तो बाकी देश के बहिष्कार अभियान का क्या महत्व रह जाता है?

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