हाइलाइट्स
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Tribal Woman Education Hero बनीं मालती मुर्मू, जिन्होंने लॉकडाउन में अपने घर को बना दिया स्कूल।
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आदिवासी गाँव जिलिंग सेरेंग की रहने वाली हैं मालती, जहाँ सरकारी स्कूल की दूरी 5 किमी से अधिक है।
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गोद में 2 महीने का बच्चा लेकर गाँव के 60 से अधिक बच्चों को निःशुल्क पढ़ाना शुरू किया।
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शुरू में झेली पारिवारिक व सामाजिक उपेक्षा, लेकिन संकल्प से बदली सोच।
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आज उनके पति भी शिक्षा आंदोलन में हैं सहभागी, मालती बन चुकी हैं Tribal Woman Education Hero।
आदिवासी गाँव से निकली शिक्षा की मशाल: मालती मुर्मू बनीं Tribal Woman Education Hero
पश्चिम बंगाल के पुरुलिया ज़िले के एक छोटे से आदिवासी गाँव जिलिंग सेरेंग की मालती मुर्मू ने जो कर दिखाया, वह न केवल इस देश की शिक्षा व्यवस्था के लिए एक गहरी प्रेरणा है, बल्कि यह इस बात का साक्षात प्रमाण है कि किसी भी बदलाव की शुरुआत जमीनी स्तर से होती है। मालती अब Tribal Woman Education Hero के रूप में सामने आई हैं।
लॉकडाउन का दौर और एक माँ की संघर्षगाथा
साल 2020 में जब वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण पूरे देश में लॉकडाउन लगाया गया, तब गाँव के अधिकांश बच्चों की पढ़ाई एकदम ठप हो गई। सरकारी स्कूल की दूरी 5 किलोमीटर से अधिक थी और ऑनलाइन शिक्षा का तो नामोनिशान भी नहीं था। ऐसे में मालती मुर्मू, जो उस समय दो महीने के बच्चे की माँ बनी थीं, ने निर्णय लिया कि वह इन बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा खुद लेंगी।
मालती ने अपने छोटे से मिट्टी के घर को कक्षा का रूप दे दिया। जहाँ एक ओर वह अपने बच्चे को गोद में लिए रखतीं, वहीं दूसरी ओर गाँव के बच्चों को पढ़ातीं। यह कार्य उन्होंने किसी सरकारी मदद के बिना शुरू किया।
Tribal Woman Education Hero बनने की राह आसान नहीं थी
शुरुआत में समाज और परिवार से उन्हें पर्याप्त सहयोग नहीं मिला। गाँव के कुछ लोगों ने सवाल उठाए कि “एक महिला बच्चों को क्यों पढ़ा रही है?” या “घर का काम छोड़कर यह क्यों कर रही है?”। लेकिन मालती के अडिग हौसले ने इन तमाम सवालों को बेमानी कर दिया।
जल्द ही लोगों को समझ में आया कि मालती सिर्फ पढ़ा नहीं रहीं, बल्कि एक पूरी पीढ़ी को सशक्त बना रहीं हैं। उनके Tribal Woman Education Hero बनने की यह यात्रा पूरी तरह से आत्मबल, धैर्य और समर्पण पर आधारित थी।
गाँव में शिक्षा की नई लहर
मालती के इस प्रयास का असर यह हुआ कि गाँव के कई ऐसे बच्चे जो पहले कभी स्कूल का मुँह नहीं देख पाए थे, अब अक्षर ज्ञान प्राप्त कर रहे थे। लड़कियाँ जो कभी बाहर नहीं निकलती थीं, वे भी अब पंक्तिबद्ध होकर “मालती दीदी” के घर आती थीं।
सिर्फ बच्चों में ही नहीं, बल्कि अभिभावकों में भी शिक्षा के प्रति रुचि जागी। लोगों ने अपने खेतों के काम के समय बच्चों को पढ़ाई के लिए अलग से समय देना शुरू किया।
पति का मिला साथ, परिवार बना सहायक
शुरुआत में जो परिवार शिक्षा के इस प्रयास के खिलाफ था, वह अब सबसे बड़ा समर्थन बन चुका है। मालती के पति अब खुद भी शिक्षण कार्य में हाथ बँटाते हैं। उन्होंने गाँव में एक छोटा सा टीन शेड का कमरा बनवाया है ताकि बारिश के मौसम में पढ़ाई बाधित न हो।
आज मालती और उनके पति मिलकर 70 से अधिक बच्चों को नियमित रूप से पढ़ा रहे हैं। इन बच्चों में कई पहली बार किसी किताब से परिचित हुए हैं।
सरकार और समाज से अपेक्षा
हालांकि मालती को अभी तक कोई विशेष सरकारी मदद नहीं मिली है, लेकिन अब समय आ गया है कि सरकार Tribal Woman Education Hero जैसी महिलाओं को न केवल सम्मानित करे बल्कि उनके काम को संस्थागत रूप से बढ़ावा दे। मालती जैसी शिक्षिका को एक स्थायी ग्राम शिक्षा केंद्र उपलब्ध कराना और कुछ न्यूनतम संसाधन देना राज्य की जिम्मेदारी बनती है।
मालती मुर्मू: Tribal Woman Education Hero के रूप में प्रेरणा
आज जब शिक्षा के नाम पर बड़े-बड़े योजनाएं बनती हैं लेकिन उनका असर जमीनी स्तर तक नहीं पहुँचता, ऐसे में मालती मुर्मू जैसी महिलाओं का कार्य एक रोशनी की किरण है। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि बदलाव की शुरुआत किसी मंत्रालय से नहीं, बल्कि एक जागरूक इंसान के भीतर से होती है।
उनकी कहानी भारत के हर कोने में फैली उन लाखों आदिवासी बेटियों के लिए प्रेरणा है जो संसाधनों के अभाव में अपने सपनों को खो देती हैं। मालती ने अपने जज़्बे और आत्मबल से यह दिखा दिया कि अगर नीयत सही हो, तो कुछ भी असंभव नहीं।
मालती मुर्मू की यह कहानी केवल एक महिला के संघर्ष की नहीं, बल्कि उस सामूहिक प्रयास की है जो बदलाव की ओर ले जाता है। वह न केवल एक शिक्षक हैं, बल्कि एक आंदोलन बन चुकी हैं। उनकी यह पहल उन्हें सचमुच Tribal Woman Education Hero बनाती है — एक ऐसा नाम, जिसे आने वाली पीढ़ियाँ याद रखेंगी।