हाइलाइट्स
- कई भारतीय मंदिरों में Temple Meat Offering की परंपरा सदियों पुरानी मानी जाती है।
- कुछ मंदिरों में बकरे की बलि देकर उसका मटन भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।
- मछली को भी कुछ तटीय मंदिरों में देवी को चढ़ाने की मान्यता है।
- यह परंपरा लोक-आस्था, तंत्र साधना और जनजातीय प्रभावों से जुड़ी हुई है।
- सुप्रीम कोर्ट और राज्य सरकारें समय-समय पर बलि परंपरा को लेकर दिशा-निर्देश जारी करती रही हैं।
मंदिर में मांस का प्रसाद! भारतीय परंपरा का रहस्यमयी पक्ष
भारत विविधताओं का देश है, जहां धार्मिक आस्थाएं और परंपराएं क्षेत्र विशेष के अनुसार बदलती रहती हैं। जहाँ एक ओर हिंदू धर्म में शुद्धता और सात्विकता को प्राथमिकता दी जाती है, वहीं दूसरी ओर देश के कुछ हिस्सों में Temple Meat Offering की परंपरा भी देखी जाती है। यह परंपरा ना केवल विस्मय पैदा करती है, बल्कि इसके पीछे छिपी मान्यताओं, रहस्यों और ऐतिहासिक तथ्यों को जानना भी आवश्यक है।
Temple Meat Offering की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
बलि की परंपरा: वैदिक काल से तांत्रिक पंथ तक
भारत में Temple Meat Offering की शुरुआत वैदिक युग से जुड़ी मानी जाती है। हालांकि वैदिक यज्ञों में पशु बलि का उल्लेख मिलता है, परंतु समय के साथ यह परंपरा सीमित होती गई। लेकिन भारत के कुछ इलाकों में यह परंपरा तांत्रिक और आदिवासी प्रभावों के तहत अब भी प्रचलित है। देवी काली, भैरव, चामुंडा और ग्राम देवी-देवताओं के मंदिरों में Temple Meat Offering आम बात है।
देश के प्रमुख मंदिर जहां मांस प्रसाद में दिया जाता है
कामाख्या मंदिर, असम
असम के गुवाहाटी में स्थित यह शक्तिपीठ Temple Meat Offering की सबसे चर्चित जगहों में से एक है। अंबुबाची मेले के दौरान हजारों बकरे, भैंसे और कबूतर देवी को बलि स्वरूप अर्पित किए जाते हैं।
काल भैरव मंदिर, उज्जैन
यहां भक्त भैरव बाबा को शराब और बकरे की बलि अर्पण करते हैं। इसे ‘भैरव तांत्रिक परंपरा’ का हिस्सा माना जाता है।
मीनाक्षी मंदिर, तमिलनाडु
हालांकि मुख्य मंदिर में मांस नहीं चढ़ता, लेकिन आसपास के उपमंदिरों में Temple Meat Offering की परंपरा देखने को मिलती है। विशेषकर मछली देवी को प्रसाद स्वरूप चढ़ाई जाती है।
क्या कहती हैं धार्मिक मान्यताएं?
भारत में बहुत से ऐसे मंदिर है , जिनमें बकरे की बलि दी जाती है फिर उसके मटन को प्रसाद बांटे जाते हैं!
कुछ मंदिर ऐसे भी हैं जिनमें मछली के प्रसाद भी दिए जाते हैं!! pic.twitter.com/II9WwHeCEj
— मौर्यवंश की बेटी… (@speak000000) July 13, 2025
शक्ति और तंत्र की साधना में बलि का महत्व
Temple Meat Offering को कई भक्त ‘आत्म बलिदान’ की प्रतीकात्मकता से जोड़ते हैं। विशेष रूप से तांत्रिक साधना में बलि को ‘तमोगुणी’ पूजा के रूप में देखा जाता है।
ग्राम देवी-देवताओं की आराधना
ग्रामीण भारत में ग्राम देवी—जैसे डोंगरी देवी, जटरा माता या काली माई—की पूजा में Temple Meat Offering अत्यंत सामान्य बात है। यहां बलि को रोगों से मुक्ति, अच्छी फसल, और संतान प्राप्ति के लिए चढ़ाया जाता है।
कानूनी और नैतिक बहसें: क्या मांस प्रसाद वैध है?
सुप्रीम कोर्ट और बलि पर रोक
हाल के वर्षों में पशु बलि पर कानूनी प्रश्न उठे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि पशु क्रूरता अधिनियम के अंतर्गत गैर-कानूनी बलि पर रोक लगाई जा सकती है। हालांकि Temple Meat Offering धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत आता है, फिर भी राज्य सरकारें इसमें हस्तक्षेप कर सकती हैं।
गोवा, नागालैंड और पश्चिम बंगाल में विशेष नियम
इन राज्यों में कुछ समुदायों को परंपरागत Temple Meat Offering की अनुमति दी गई है। लेकिन इसके लिए स्थानीय प्रशासन से अनुमति लेना अनिवार्य होता है।
क्या मांस को प्रसाद माना जा सकता है?
यह प्रश्न सामाजिक, धार्मिक और नैतिक स्तर पर कई बार उठ चुका है। अधिकांश हिंदू मंदिरों में प्रसाद के रूप में फल, मिष्ठान्न या सूखे मेवे दिए जाते हैं। लेकिन Temple Meat Offering से जुड़े मंदिरों में भक्त इसे प्रसाद ही मानते हैं, और श्रद्धा पूर्वक ग्रहण करते हैं।
दुनिया भर में Temple Meat Offering की परंपरा
भारत के अलावा नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और थाईलैंड जैसे देशों में भी Temple Meat Offering की परंपरा है। नेपाल के ‘गढीमाई उत्सव’ में हर पाँच साल में लाखों जानवरों की बलि दी जाती थी, हालांकि अब इस पर आंशिक रोक है।
विज्ञान क्या कहता है?
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण
विशेषज्ञ मानते हैं कि Temple Meat Offering लोगों की सामूहिक चेतना और भय-निवारण की प्रवृत्ति से जुड़ा होता है। बलि के माध्यम से लोग अपने अंदर के भय, दोष या अपराधबोध को देवी को समर्पित कर मन की शांति प्राप्त करते हैं।
पर्यावरणीय दृष्टिकोण
पर्यावरणविदों के अनुसार, बड़े पैमाने पर बलि से न केवल पशु क्रूरता बढ़ती है बल्कि इससे सार्वजनिक स्वच्छता और बायो वेस्ट का भी खतरा उत्पन्न होता है।
समाप्ति: आस्था और आधुनिकता के बीच संतुलन आवश्यक
भारत जैसे देश में जहां परंपराएं गहराई से जड़ें जमा चुकी हैं, वहां Temple Meat Offering जैसे विषयों पर दो-टूक निर्णय आसान नहीं होता। यह जरूरी है कि इस परंपरा की जड़ों को समझा जाए, साथ ही पशु क्रूरता और वैज्ञानिक सोच के साथ संतुलन बनाकर आगे बढ़ा जाए।