उर्दू की एक किताब ने मचा दिया बवाल! बेगूसराय के स्कूल में शिक्षक का आरोप—पढ़ाने पर लगी रोक, मिली धमकी

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हाइलाइट्स

  • उर्दू शिक्षक के साथ दुर्व्यवहार का मामला सामने आया, ‘उर्दू पढ़ाने’ को लेकर खड़ा हुआ विवाद
  • नावकोठी के राजकीय मध्य विद्यालय में छात्रों और अभिभावकों ने किया विरोध
  • पीड़ित शिक्षक ने राज्यपाल और शिक्षा विभाग को भेजी लिखित शिकायत
  • उर्दू पढ़ने वाले छात्रों को नाम काटने की धमकी देने का भी आरोप
  • जिला शिक्षा अधिकारी ने मौके पर जाकर जांच का भरोसा जताया

उर्दू पढ़ाने पर विवाद ने तूल पकड़ा: बिहार के स्कूल में शिक्षकीय गरिमा पर सवाल

बिहार के बेगूसराय जिले के नावकोठी प्रखंड स्थित राजकीय मध्य विद्यालय पहसारा बभन गामा में उर्दू पढ़ाने को लेकर गंभीर विवाद उत्पन्न हो गया है। इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब विद्यालय में हाल ही में नियुक्त उर्दू शिक्षक मोहम्मद आविद ने मुस्लिम छात्र-छात्राओं को उर्दू पढ़ाने की मांग की, लेकिन स्कूल प्रशासन ने उन्हें ऐसा करने से स्पष्ट रूप से मना कर दिया।

उर्दू शिक्षक का आरोप है कि उन्हें प्रिंसिपल और अन्य शिक्षकों द्वारा अपमानित किया गया और जानबूझकर उर्दू पढ़ाने से रोका गया। यह मामला अब केवल शिक्षकीय अधिकारों का नहीं, बल्कि भाषा और अल्पसंख्यक अधिकारों का मुद्दा बन गया है।

स्कूल के अंदर की कहानी: जब उर्दू पढ़ाने से रोका गया शिक्षक को

 नियुक्ति के बाद शुरू हुआ तनाव

बीपीएससी TRE-3 के माध्यम से नियुक्त मोहम्मद आविद की पोस्टिंग 15 मई 2025 को उर्दू शिक्षक के रूप में हुई थी। उनकी मांग थी कि स्कूल में उर्दू पढ़ाने की विशेष कक्षा चलाई जाए, ताकि मुस्लिम छात्र अपने विषय की पढ़ाई कर सकें। लेकिन, 27 जून को उन्होंने जो कुछ अनुभव किया, उसने उनके आत्मसम्मान को गहरी चोट पहुंचाई।

आरोप है कि प्रधानाध्यापक और अन्य शिक्षकों ने न केवल उनकी बात को नजरअंदाज किया, बल्कि उनके साथ अमानवीय व्यवहार करते हुए उर्दू पढ़ाने से साफ इनकार कर दिया।

शिकायतों की झड़ी: राज्यपाल से लेकर डीएम तक को लिखी चिट्ठी

मोहम्मद आविद ने इस मामले की लिखित शिकायत राज्यपाल, ज़िलाधिकारी, शिक्षा विभाग, और अन्य संबंधित अधिकारियों को भेजी है। उन्होंने बताया कि जब विभाग ने प्रधानाध्यापक से शो कॉज नोटिस मांगा, तो उनके प्रतिशोध में बच्चों को नाम काटने की धमकी दी गई।

शिक्षक का आरोप है कि वे रोजाना स्कूल में 8 घंटे उपस्थित रहते हैं, परंतु उन्हें उर्दू पढ़ाने की अनुमति आज तक नहीं दी गई। यह न केवल नियुक्ति की शर्तों के विरुद्ध है, बल्कि विद्यार्थियों के शिक्षा अधिकार का भी हनन है।

छात्र और अभिभावकों का आक्रोश: “हम उर्दू पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन धमकाया गया”

 बच्चों ने शिक्षा अधिकारी से लगाई गुहार

इस घटना के बाद उर्दू पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं और उनके अभिभावक जिला शिक्षा कार्यालय पहुंचे। उन्होंने बताया कि उन्हें धमकाकर कुछ काग़ज़ों पर हस्ताक्षर करवाए गए। छात्रों का कहना था कि वे सिर्फ उर्दू पढ़ना चाहते हैं, जो उनका वैधानिक अधिकार है, लेकिन स्कूल प्रशासन इसका विरोध कर रहा है।

 शिक्षा अधिकार अधिनियम का उल्लंघन?

यह मामला शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) और माइनॉरिटी अधिकारों के दायरे में आता है। यदि किसी विशेष भाषा में पढ़ाई की मांग है और सरकार ने उसके लिए शिक्षक नियुक्त किया है, तो उर्दू पढ़ाने से रोकना सीधे तौर पर कानून का उल्लंघन है।

जिला शिक्षा अधिकारी की प्रतिक्रिया: करेंगे व्यक्तिगत जांच

जिला शिक्षा अधिकारी ने स्वीकार किया है कि यह मामला गंभीर है और उन्होंने खुद छात्रों और अभिभावकों से मिलकर उनकी बात सुनी है। उन्होंने कहा, “मैंने सभी के मोबाइल नंबर लिए हैं और स्वयं जाकर पूरे मामले की जांच करूंगा। जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।”

उर्दू शिक्षक की मांग: निष्पक्ष जांच और कक्षा संचालन की अनुमति

 शिक्षक की ओर से क्या कहा गया?

मोहम्मद आविद का कहना है, “मुझे उर्दू पढ़ाने के लिए ही बहाल किया गया था। लेकिन, आज तक न तो कक्षा दी गई और न ही सम्मानजनक व्यवहार। मैं सिर्फ इतना चाहता हूं कि मुझे मेरे विषय को पढ़ाने की स्वतंत्रता मिले।”

उनकी मांग है कि जिला प्रशासन जल्द से जल्द उर्दू पढ़ाने की व्यवस्था सुनिश्चित करे और दोषियों पर कार्रवाई की जाए।

क्या कहता है नियमानुसार भाषा पढ़ाने का अधिकार?

भारत का संविधान अनुच्छेद 350A के तहत अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार देता है। बिहार सरकार ने उर्दू को दूसरी राजभाषा का दर्जा दे रखा है, और मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में उर्दू पढ़ाने के लिए शिक्षक नियुक्त करना इस नीति का हिस्सा है।

ऐसे में यदि किसी विद्यालय में उर्दू पढ़ाने से शिक्षक को रोका जा रहा है, तो यह संविधान और राज्य की भाषा नीति दोनों का उल्लंघन है।

मामला केवल भाषा का नहीं, सम्मान और अधिकार का भी है

बेगूसराय के इस स्कूल में उर्दू शिक्षक के साथ हुए व्यवहार ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हमारे सरकारी संस्थानों में अल्पसंख्यक अधिकारों का सम्मान होता है? क्या उर्दू पढ़ाने जैसी सामान्य बात को विवाद का कारण बनाकर शिक्षकों को अपमानित करना उचित है?

जवाब सिर्फ जिला शिक्षा अधिकारी की जांच में नहीं, बल्कि हमारी सोच में छुपा है।

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