हाइलाइट्स
- आवारा कुत्ते अब शहरों में ‘वफादारी’ का नहीं, बल्कि ‘दहशत’ का दूसरा नाम बनते जा रहे हैं
- सुप्रीम कोर्ट ने Suo Moto Cognizance लेते हुए चिंता जताई – कहा ये डरावनी स्थिति है
- सालाना देशभर में कुत्ते के काटने के 37 लाख से ज्यादा मामले हो रहे हैं दर्ज
- बच्चों के लिए खतरा ज्यादा, सिर और चेहरे पर चोट पहुंचने से संक्रमण तेजी से मस्तिष्क तक
- समय पर रेबीज वैक्सीन और प्राथमिक उपचार से 99% मामलों में बचाया जा सकता है जीवन
कुत्ते अब दोस्त नहीं, ‘सड़क पर मौत का खतरा’ क्यों बन रहे हैं?
आवारा कुत्ते कभी इंसान के सबसे वफादार साथी माने जाते थे, लेकिन अब वही कुत्ते देश के हर शहर, गली और कॉलोनी में खौफ का पर्याय बन चुके हैं। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, कोई सुरक्षित नहीं। आवारा कुत्ते झुंड बनाकर हमला कर रहे हैं, और कई मामलों में जान भी जा रही है। आंकड़े चौंकाने वाले हैं – केवल 2024 में कुत्ते के काटने के 37 लाख से ज्यादा केस दर्ज हुए हैं।
सुप्रीम कोर्ट भी चिंतित, खुद लिया संज्ञान
हालात इतने बिगड़ गए हैं कि सुप्रीम कोर्ट को खुद Suo Moto Cognizance लेना पड़ा। कोर्ट ने कहा कि आवारा कुत्ते के हमले अब आम होते जा रहे हैं और स्थानीय प्रशासन की लापरवाही से यह स्थिति और भयावह बन गई है।
“किसी इंसान की जान सिर्फ इसलिए नहीं जानी चाहिए क्योंकि सड़क पर कोई पालना नहीं चाहता” – सुप्रीम कोर्ट
बच्चे सबसे बड़े शिकार, खतरा सीधे मस्तिष्क तक
आवारा कुत्ते अक्सर छोटे बच्चों पर हमला करते हैं क्योंकि उनकी ऊंचाई कम होती है और चेहरे या सिर पर चोट लगने की आशंका अधिक होती है। ऐसे मामलों में अगर रेबीज संक्रमण हो गया, तो चार से पांच घंटे के भीतर इंफेक्शन दिमाग तक पहुंच सकता है, जो जानलेवा साबित होता है।
कुत्ता काटे तो तुरंत क्या करें?
जब भी आवारा कुत्ते काटे, घबराने के बजाय तुरंत ये कदम उठाएं:
- 15 से 20 मिनट तक घाव को बहते पानी में धोएं।
- डेटॉल, सेवलॉन, या पोटाश जैसे एंटीसेप्टिक से घाव को साफ करें।
- पहले 24 घंटे के भीतर एंटी-रेबीज वैक्सीन (ARV) लगवाएं।
- यदि घाव गहरा है, तो इम्यूनोग्लोबुलिन इंजेक्शन भी लगवाएं।
- डॉक्टर से पूरी वैक्सीनेशन की सीरीज पूरी कराएं।
कुत्तों के काटने के आंकड़े चौंकाते हैं
वर्ष | डॉग बाइट केस (भारत में) | मौतें (अनुमानित) |
---|---|---|
2021 | 23 लाख | 17,000+ |
2022 | 32 लाख | 20,000+ |
2023 | 37.5 लाख | 22,000+ |
इनमें से अधिकांश मामले आवारा कुत्ते से संबंधित होते हैं, न कि पालतू जानवरों से।
शहरों में क्यों बढ़ रहा है ‘आवारा कुत्तों’ का आतंक?
खाने की कमी और खुला कचरा
शहरों में फेंका गया कचरा आवारा कुत्तों के लिए भोजन का प्रमुख स्रोत बन गया है। लेकिन जब भोजन कम होता है, तो ये जानवर आक्रामक हो जाते हैं।
रिहायशी इलाकों में प्रजनन बढ़ना
कई कॉलोनीज़ में आवारा कुत्तों के लिए नसबंदी नहीं कराई जाती, जिससे इनकी संख्या अनियंत्रित रूप से बढ़ रही है।
प्रशासन की नाकामी
स्थानीय नगर निगमों द्वारा ना तो रेगुलर नसबंदी अभियान चलाए जा रहे हैं, ना ही प्रभावी डॉग शेल्टर बनाए जा रहे हैं। परिणामस्वरूप आवारा कुत्ते सड़क पर ही पनप रहे हैं।
रेबीज: जानलेवा वायरस, जिसे गंभीरता से लें
रेबीज एक न्यूरोलॉजिकल वायरल इंफेक्शन है, जो एक बार ब्रेन तक पहुंच गया तो मृत्यु निश्चित हो सकती है। हर साल भारत में हज़ारों मौतें इसी वजह से होती हैं।
रेबीज के लक्षण:
- बुखार, घबराहट, थकान
- पानी या हवा से डर लगना
- मांसपेशियों में अकड़न
- दौरे और बेहोशी
इसका कोई निश्चित इलाज नहीं है, सिर्फ प्रोफाइलेक्टिक वैक्सीनेशन ही बचा सकता है।
आवारा कुत्तों को कैसे नियंत्रित करें?
सामूहिक नसबंदी कार्यक्रम
सरकार को हर नगर निगम में मास ड्राइव के तहत नसबंदी अभियान चलाना चाहिए, ताकि इनकी जनसंख्या पर नियंत्रण पाया जा सके।
सुरक्षित डॉग शेल्टर बनाना
आवारा कुत्तों के लिए सुरक्षित और हाइजीनिक शेल्टर बनाकर वहां रखवाना जरूरी है, जिससे वे इंसानी बस्ती से दूर रहें।
जन जागरूकता अभियान
लोगों को कुत्तों से बचाव, रेबीज वैक्सीनेशन और प्राथमिक उपचार की जानकारी दी जाए, खासतौर पर स्कूलों और ग्रामीण इलाकों में।
कानून क्या कहता है?
भारतीय दंड संहिता की धारा 289 के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति अगर अपने पालतू या संरक्षित जानवर की लापरवाही से किसी को चोट पहुंचने देता है, तो उसे दंड मिल सकता है। लेकिन आवारा कुत्तों के मामले में जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन की मानी जाती है।
अब और लापरवाही नहीं चलेगी
आवारा कुत्ते अब सिर्फ सड़क पर टहलने वाले जानवर नहीं रहे। वे एक जनस्वास्थ्य संकट का रूप ले चुके हैं। वक्त है जब प्रशासन को सतर्क होना पड़ेगा, लोगों को जागरूक होना पड़ेगा और वैज्ञानिक तरीकों से इस संकट से निपटना होगा।
अगर आज भी हम नहीं चेते, तो कल की गलियों में खेलने वाले बच्चे हमें माफ नहीं करेंगे।