सुबह 8:48 पर थम गई ‘गुरुजी’ की सांस, फिर जो हुआ उसने पूरे झारखंड को हिला दिया

Latest News

 हाइलाइट्स

  • झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का निधन सोमवार सुबह दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में हुआ
  • शिबू सोरेन लंबे समय से बीमार चल रहे थे, किडनी और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से थे ग्रसित
  • पीएम मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत कई नेताओं ने जताया गहरा शोक
  • झारखंड आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले शिबू सोरेन तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे
  • बेटे और झारखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा, “आज मैं शून्य हो गया हूं”

झारखंड की आत्मा कहे जाने वाले ‘गुरुजी’ ने ली अंतिम सांस

झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का निधन सोमवार सुबह दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में हो गया। 81 वर्षीय शिबू सोरेन लंबे समय से बीमार थे और अस्पताल के नेफ्रोलॉजी विभाग में उनका इलाज चल रहा था। किडनी से जुड़ी समस्या के अलावा शरीर में कई अन्य जटिलताएं थीं।

सोमवार सुबह 8:48 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। झारखंड के मुख्यमंत्री और उनके पुत्र हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया पर यह दुखद सूचना साझा करते हुए कहा, “आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं। आज मैं शून्य हो गया हूं।”

 शिबू सोरेन का निधन: एक युग का अंत

शिबू सोरेन का निधन केवल एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं है, बल्कि यह एक संपूर्ण आदिवासी आंदोलन के प्रतीक की विदाई है। उन्होंने झारखंड के लिए लड़ाई लड़ी, उसे अलग राज्य का दर्जा दिलाने में अहम भूमिका निभाई और फिर तीन बार मुख्यमंत्री बने।

 झारखंड के ‘दिशोम गुरुजी’

‘गुरुजी’ के नाम से प्रसिद्ध शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को झारखंड के दुमका जिले में हुआ था। उनके पिता की हत्या जमींदारों ने कर दी थी, जिसके बाद उन्होंने अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाई और सामाजिक आंदोलनों में कूद पड़े।

 राजनीतिक जीवन और उपलब्धियां

 तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री

शिबू सोरेन का निधन ऐसे समय में हुआ है जब वह अब भी झारखंड की राजनीति में एक अहम चेहरा बने हुए थे। वह वर्ष 2005, 2008 और 2009 में झारखंड के मुख्यमंत्री बने, लेकिन दुर्भाग्यवश तीनों बार उनका कार्यकाल अधूरा रहा।

 8 बार लोकसभा सांसद और 3 बार केंद्रीय मंत्री

शिबू सोरेन 1980 से लेकर 2014 तक 8 बार लोकसभा के सदस्य रहे। उन्होंने केंद्र सरकार में तीन बार कोयला मंत्री का पद भी संभाला। नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह की सरकार में उनकी भूमिका खास रही।

 झारखंड आंदोलन में अग्रणी भूमिका

शिबू सोरेन का निधन उस आंदोलन की आवाज़ की चुप्पी है, जिसने झारखंड राज्य को बिहार से अलग करने के लिए दशकों तक संघर्ष किया। 1972 में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की और आदिवासी हितों के लिए लगातार संघर्ष किया।

उन्होंने जंगलों की कटाई, खनिज संपदा की लूट और आदिवासियों के विस्थापन के खिलाफ आवाज़ उठाई। झारखंड राज्य के गठन के पीछे उनकी भूमिका निर्णायक रही।

 नेताओं की श्रद्धांजलि

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा – जमीनी नेता थे गुरुजी

शिबू सोरेन का निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुख व्यक्त करते हुए कहा, “शिबू सोरेन एक जमीनी नेता थे। उन्होंने आदिवासी समुदायों, गरीबों और वंचितों के सशक्तिकरण के लिए जीवन समर्पित किया। उनसे बात कर संवेदना प्रकट की है। ॐ शांति।”

 रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की प्रतिक्रिया

राजनाथ सिंह ने ट्वीट कर लिखा, “शिबू सोरेन झारखंड के उन कद्दावर नेताओं में शामिल थे जिन्होंने जनजातीय समाज के अधिकारों के लिए जीवनभर संघर्ष किया। उनसे मेरा व्यक्तिगत परिचय भी रहा। उनके निधन से गहरा दुख हुआ है।”

 पारिवारिक और निजी जीवन

शिबू सोरेन का निधन उनके बेटे और मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लिए भी एक व्यक्तिगत क्षति है। हेमंत सोरेन ने अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए राज्य की कमान संभाली थी।

वह अपने परिवार के बेहद करीब थे और एक सादगीपूर्ण जीवन जीते थे। उन्होंने अपनी पत्नी रूपी सोरेन को भी 1999 के लोकसभा चुनाव में टिकट दिलाया था, हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली।

 झारखंड में शोक की लहर, अंतिम यात्रा की तैयारी

शिबू सोरेन का निधन की खबर फैलते ही झारखंड में शोक की लहर दौड़ गई। राज्यभर के JMM कार्यकर्ता, समर्थक और आम जनता अस्पताल और उनके आवास के बाहर जुटने लगे हैं।

राजकीय सम्मान के साथ उनके पार्थिव शरीर को रांची लाया जाएगा, जहां झारखंड विधानसभा परिसर में आम जनता को अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा।

 शिबू सोरेन का निधन नहीं, एक विचारधारा की विराम रेखा

शिबू सोरेन का निधन केवल एक राजनेता की मृत्यु नहीं है, बल्कि आदिवासी समाज, सामाजिक न्याय और क्षेत्रीय स्वाभिमान की आवाज़ की विदाई है। उनके विचार और संघर्ष आज भी झारखंड के कोने-कोने में जीवित हैं।

उनकी अनुपस्थिति निश्चित रूप से राजनीतिक परिदृश्य में एक खालीपन छोड़ गई है, जिसे भर पाना मुश्किल होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *