हाइलाइट्स
- जन्माष्टमी के त्योहार की तिथियों पर भारत में अलग-अलग गणनाओं के कारण विवाद
- देशभर में जन्माष्टमी 16 अगस्त को मनाई गई, जबकि केरल में यह 14 सितंबर को मनाई जाएगी
- कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने सवाल उठाया कि क्या भगवान दो अलग-अलग दिनों में जन्म ले सकते हैं
- केरल में रोहिणी नक्षत्र और ज्योतिषीय योग के आधार पर जन्माष्टमी तय की जाती है
- सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर बहस और प्रतिक्रिया तेज हुई
जन्माष्टमी की तिथियों में अंतर: थरूर ने उठाया सवाल
देशभर में जन्माष्टमी 16 अगस्त को बड़े धूमधाम से मनाई गई, लेकिन केरल में यह पर्व करीब एक महीने बाद, 14 सितंबर को मनाया जाएगा। इस अंतर को लेकर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर सवाल उठाया। उन्होंने लिखा, “कल पूरे भारत में भगवान श्रीकृष्ण की जन्माष्टमी मनाई गई, लेकिन केरल ने इसे नहीं मनाया। हमारे मलयालम कैलेंडर के अनुसार इस साल जन्माष्टमी 14 सितंबर को पड़ेगी। क्या भगवान छह हफ्ते के अंतर से दो बार जन्म ले सकते हैं?”
थरूर ने व्यंग्य करते हुए आगे लिखा कि धार्मिक पर्वों की तारीखें एक जैसी होनी चाहिए, ताकि सभी लोग एक साथ इसे मना सकें। उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा, “आखिर केरलवासी अलग तरह का क्रिसमस तो नहीं मनाते!”
कैलेंडर और तिथियों का विज्ञान
धार्मिक और ज्योतिषीय विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में जन्माष्टमी की तिथियों में अंतर कोई नई बात नहीं है। इसका कारण विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग होने वाले कैलेंडर हैं।
उत्तर भारत में तिथियों का निर्धारण
उत्तर भारत में ज्यादातर क्षेत्रों में पूर्णिमांता या अमांता चंद्र कैलेंडर का पालन किया जाता है। इस कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि 16 अगस्त को पड़ी, इसलिए उत्तर और पश्चिम भारत में जन्माष्टमी उसी दिन मनाई गई।
केरल में जन्माष्टमी की गणना
केरल में मलयालम कैलेंडर का उपयोग होता है, जो सूर्य और चंद्र दोनों की गतियों पर आधारित है। यहाँ जन्माष्टमी की तिथि केवल अष्टमी पर आधारित नहीं होती, बल्कि रोहिणी नक्षत्र और विशेष ज्योतिषीय योग के अनुसार तय की जाती है। इस वर्ष रोहिणी नक्षत्र का योग 14 सितंबर की मध्यरात्रि को बन रहा है, इसी कारण केरल में जन्माष्टमी उस दिन मनाई जाएगी।
धार्मिक विशेषज्ञों का कहना है कि दक्षिण भारत और उत्तर भारत में पर्वों की तारीखों में कभी-कभी अंतर होता रहा है। यह कोई मतभेद या असहमति नहीं है, बल्कि स्थानीय खगोलीय गणना और परंपराओं का परिणाम है।
सोशल मीडिया पर बहस और प्रतिक्रिया
शशि थरूर की टिप्पणी के बाद सोशल मीडिया पर बहस तेज हो गई।
- कुछ लोगों ने कहा कि यह विविधता भारतीय संस्कृति की सुंदरता को दर्शाती है। अलग-अलग क्षेत्रों में परंपराएं और गणनाएं भिन्न हो सकती हैं।
- वहीं कुछ लोग थरूर की बात से सहमत दिखे और कह रहे थे कि बड़े धार्मिक पर्वों की तारीखें समान होनी चाहिए ताकि पूरे देश में एक साथ त्योहार मनाया जा सके।
इस बहस ने यह स्पष्ट कर दिया कि जन्माष्टमी की तिथियों का अंतर किसी धार्मिक मतभेद के कारण नहीं, बल्कि कलेंडर और खगोलीय गणना के कारण है।
विशेषज्ञों की राय
धार्मिक ज्योतिष विशेषज्ञों का मानना है कि जन्माष्टमी जैसे पर्वों का आनंद और भक्ति भाव किसी तारीख से कम नहीं होता।
- उत्तर भारत: अष्टमी तिथि के आधार पर उत्सव
- दक्षिण भारत (केरल): अष्टमी + रोहिणी नक्षत्र + ज्योतिषीय योग
विशेषज्ञों के अनुसार यह परंपरा और गणना की विविधता भारतीय संस्कृति की विशेषता है।
जन्माष्टमी के पर्व में तिथियों का अंतर केवल सांस्कृतिक और ज्योतिषीय विविधताओं का परिणाम है। चाहे 16 अगस्त को मनाई जाए या 14 सितंबर को, भक्तजन भगवान कृष्ण की पूजा और भक्ति भाव में कोई कमी नहीं आने देते।
इस विवाद ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत में धार्मिक विविधताओं को समझना और सम्मान देना आवश्यक है। देशभर में अलग-अलग तिथियों पर पर्व मनाना भारतीय संस्कृति की समृद्धि और विविधता का प्रतीक है।