हिंदू छात्रों से नफरत की सारी हदें पार! टॉयलेट धुलवाया, मुस्लिम टीचर ने किया विरोध तो भड़की प्रिंसिपल — सरकारी स्कूल में भेदभाव के सनसनीखेज आरोप

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हाइलाइट्स

  • बिजनौर स्कूल में School Discrimination का मामला, टीचर ने हिंदू छात्रों को प्रताड़ित करने का आरोप लगाया
  • आरोपी प्रिंसिपल पर सिर्फ मुस्लिम छात्रों को तरजीह देने और हिंदू बच्चों से टॉयलेट साफ कराने का आरोप
  • टीचर नुसरत जहां ने पुलिस को सौंपा शिकायती पत्र, कहा- “हिंदू धर्म से है नफरत प्रिंसिपल को”
  • शिक्षा विभाग ने की जांच शुरू, BSA ने दोनों कर्मचारियों पर अनुशासनहीनता की कही बात
  • पुलिस बोली- School Discrimination के मामले में रिपोर्ट आने के बाद होगी सख्त कार्रवाई

 चांदपुर का स्कूल विवाद: धर्म के नाम पर भेदभाव?

उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के चांदपुर क्षेत्र के पतियापाडा स्थित एक कम्पोजिट प्राथमिक विद्यालय में School Discrimination का मामला सामने आया है। स्कूल में कार्यरत शिक्षिका नुसरत जहां ने प्रिंसिपल आयशा खातून पर हिंदू छात्रों को प्रताड़ित करने और उनके साथ भेदभाव करने के गंभीर आरोप लगाए हैं।

नुसरत जहां ने चांदपुर कोतवाली में एक शिकायती पत्र सौंपते हुए कहा कि यह स्कूल भले ही ‘सरकारी’ हो, लेकिन व्यवहार में यह एकतरफा धार्मिक सोच का अड्डा बन चुका है।

 नुसरत जहां का बड़ा आरोप: “प्रिंसिपल को हिंदुओं से नफरत है”

नुसरत जहां के अनुसार, वह 2007 से इस स्कूल में शिक्षा मित्र के रूप में कार्यरत हैं। उन्होंने कहा कि स्कूल की वर्तमान प्रधानाचार्या आयशा खातून न केवल हिंदू बच्चों से नफरत करती हैं, बल्कि उन्हें स्कूल में दाखिला तक नहीं लेने देतीं। उन्होंने आरोप लगाया कि आयशा खातून स्कूल में School Discrimination को खुलकर अंजाम देती हैं।

नुसरत ने अपने बयान में कहा:

“हिंदू बच्चों को कक्षा से बाहर निकालकर उनसे स्कूल की सफाई, टॉयलेट धोने और मैदान की झाड़ू-पोंछा कराना रोज़ का काम है। ये एक शैक्षणिक संस्थान नहीं, एक मानसिक प्रताड़ना केंद्र बन चुका है।”

 जब टीचर ने रोका तो प्रिंसिपल ने किया हमला

नुसरत जहां ने बताया कि उन्होंने कई बार प्रिंसिपल को छात्रों से सफाई कराने से रोका, लेकिन इसके बदले में आयशा खातून ने उनसे भी दुश्मनी पाल ली।
उनके मुताबिक,

“मुझे भी धक्का देकर मारा गया। एक बार तो हाथापाई तक की नौबत आ गई। आयशा खातून न केवल छात्रों के साथ भेदभाव करती हैं, बल्कि अपने स्टाफ को भी धार्मिक आधार पर आंकती हैं।”

यह मामला सिर्फ School Discrimination का नहीं, बल्कि कार्यस्थल पर धार्मिक असहिष्णुता और प्रशासनिक अराजकता का प्रतीक बन चुका है।

 पुलिस ने शुरू की जांच, FIR पर फैसला लंबित

चांदपुर कोतवाली के पुलिस इंस्पेक्टर संजय कुमार तोमर ने इस मामले में बताया कि उन्हें शिक्षिका नुसरत जहां की ओर से शिकायती पत्र प्राप्त हुआ है।

“मामले की जांच उच्चाधिकारियों द्वारा करवाई जा रही है। जांच पूरी होने के बाद ही कोई कानूनी कार्रवाई की जाएगी।”

इसका मतलब साफ है कि School Discrimination के इस गंभीर मामले में अभी तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई है, लेकिन प्रशासन की नजरें अब इस स्कूल पर टिकी हुई हैं।

 शिक्षा विभाग ने भी माना- स्कूल में है लापरवाही

बिजनौर के बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) योगेंद्र सिंह ने खुद स्कूल जाकर जांच की। उनका बयान इस प्रकार है:

“स्कूल परिसर बड़ा है, परंतु वहां कोई सफाईकर्मी तैनात नहीं है। नगर पालिका परिषद को पत्र लिखकर सफाई कर्मी भेजने की मांग की गई है।”

उन्होंने यह भी कहा कि प्रिंसिपल और टीचर के बीच आपसी विवाद और अनुशासनहीनता सामने आई है। इसलिए अब दोनों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

यह बयान उन सभी अभिभावकों के लिए चिंता का कारण है, जो अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं और वहां School Discrimination जैसी स्थिति से जूझ रहे हैं।

 क्या यह केवल आपसी रंजिश है या सच्चा धार्मिक भेदभाव?

इस पूरे घटनाक्रम में बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या यह केवल दो मुस्लिम महिलाओं के बीच का आपसी विवाद है, या फिर वाकई स्कूल के भीतर हिंदू छात्रों के साथ School Discrimination जैसी संगीन स्थिति बनी हुई है?

यदि टीचर के आरोप सही हैं, तो यह मामला माइनॉरिटी कट्टरता का उदाहरण बन सकता है। लेकिन अगर आरोप झूठे साबित होते हैं, तो यह एक गहरी प्रशासनिक साजिश के रूप में भी देखा जाएगा।

 भारत के संविधान में धर्म के आधार पर भेदभाव पर पूर्ण प्रतिबंध

संविधान का अनुच्छेद 15 स्पष्ट करता है कि राज्य किसी भी नागरिक के साथ धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान आदि के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा।

School Discrimination जैसे मामले न केवल कानून का उल्लंघन हैं, बल्कि एक स्वस्थ समाज की बुनियाद को भी हिला देते हैं।

यदि सरकारी स्कूलों में इस प्रकार की मानसिकता पनपती रही, तो वह दिन दूर नहीं जब अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने में भी डरने लगेंगे।

 धर्म के नाम पर शिक्षा का अपमान

बिजनौर के इस मामले ने न केवल उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को कठघरे में खड़ा किया है, बल्कि पूरे देश में सरकारी स्कूलों की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

School Discrimination केवल एक शब्द नहीं, बल्कि एक मानसिकता है, जो अगर समय रहते नहीं सुधारी गई, तो यह सामाजिक तानेबाने को ही चूर-चूर कर देगी।

अब देखना यह होगा कि जांच के बाद प्रशासन इस पर क्या कदम उठाता है – क्या दोषियों को सज़ा मिलेगी या यह मामला भी कागज़ों में दफन हो जाएगा?

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