हाइलाइट्स
- Samarth Guru पिछले 4 साल 9 महीने से केवल नर्मदा‑जल पर निर्भर, अन्न का एक दाना भी ग्रहण नहीं किया
- 4 लाख किलोमीटर की पदयात्रा में Samarth Guru ने देश के 28 राज्यों और नेपाल‑भूटान की सीमाओं तक किया पैदल भ्रमण
- बिना पानी पीए लगातार घंटों प्रवचन देने की विलक्षण क्षमता; श्रद्धालु मानते हैं Samarth Guru को ‘चलती‑फिरती ऊर्जा’
- नर्मदा रक्षा‑संकल्प के तहत Samarth Guru ने 61,700 पौधे रोपकर वृक्षारोपण को बताया ‘सहस्रकोटि यज्ञ’
- वैज्ञानिक भी हैरत में—शरीर विज्ञान समझ नहीं पा रहा कि Samarth Guru की ऊर्जा का स्त्रोत आखिर क्या है
Samarth Guru का कठोर व्रत: केवल नर्मदा‑जल पर जीवन
पिछले चार साल नौ महीने से Samarth Guru ने अन्न, फल‑फूल और नमक तक का त्याग कर रखा है। उनका कहना है कि नर्मदा‑जल ही ‘‘मातृ‑सदृश पोषण’’ देता है, और वही तपस्या की असली कसौटी है। स्थानीय चिकित्सकों ने कई बार स्वास्थ्य‑जाँच की, पर शरीर सामान्य से भी अधिक ऊर्जा‑सम्पन्न मिला। विशेषज्ञ मानते हैं कि Samarth Guru का यह व्रत आधुनिक विज्ञान के लिए अबूझ पहेली है।
जीवंत प्रयोगशाला बना शरीर
गुजरात के बड़ौदा मेडिकल कॉलेज की टीम ने 72‑घंटे के निरीक्षण में पाया कि Samarth Guru की पल्स दर, रक्त चाप और हीमोग्लोबिन स्तर औसत से ऊपर हैं। डॉक्टर रमेश पटेल ने कहा, “यह शरीर मानो अध्यात्म और जैव‑रसायन का संगम है; Samarth Guru के चयापचय को समझना मानव‑स्वास्थ्य की नई राह खोल सकता है।”
नर्मदा‑जल की विशिष्टता
Samarth Guru बताते हैं कि नर्मदा जल में ‘धरती के पाँच तत्वों’ का संतुलन है। वे प्रतिदिन सुबह‑शाम सिर्फ़ 250 मि.ली. नर्मदा‑जल ग्रहण करते हैं और उसे ‘आत्मिक प्राणवायु’ कहते हैं। इस जल को वैज्ञानिक दृष्टि से परखें तो इसमें सिलिका, मैग्नीशियम और ट्रेस‑मिनरल्स की उच्च मात्रा पाई गई, जो दीर्घकालिक उपवास में सहायक मानी जाती है।
चार लाख किलोमीटर की पदयात्रा: चलती‑फिरती तपो‑यात्रा
Samarth Guru ने अपने जीवन का अधिकांश भाग पगडंडियों पर बिताया है। वर्ष 1984 में नर्मदा परिक्रमा से शुरू हुई यात्रा आज तक बिना विश्राम जारी है। अनुमानतः 4 लाख किलोमीटर—अर्थात धरती‑परिधि का दस गुना—चल चुके Samarth Guru, हर कदम पर पर्यावरण‑संरक्षण और आत्म‑उन्नति का संदेश देते हैं।
विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष
कड़कड़ाती सर्दी में हिमालयी रूट, 48 डिग्री गर्मी में राजस्थान‑मरुस्थल और घनघोर वर्षा में विंध्याचल—Samarth Guru की गति कभी रुकी नहीं। उनका मानना है, “चलना ही साधना है, थमना ही पतन।” सामाजिक‑कार्यकर्ता मीनाक्षी द्विवेदी कहती हैं, “जहाँ‑जहाँ Samarth Guru पहुँचे, वहाँ नर्मदा‑संस्कृति का बीज अंकुरित हुआ।”
आध्यात्मिक उन्नति की पदचाप
पदयात्रा के दौरान Samarth Guru प्रतिदिन कम‑से‑कम 18 किमी चलते हैं, मन में ‘नर्मदे हर’ का जप। यह जप, उनका कहना है, ‘मस्तिष्क की बूँद‑बूँद में ऊर्जा’ भर देता है। उनके अनुयायी इसे ‘चलती‑फिरती ध्यान‑शाला’ कहते हैं, जहाँ मार्ग ही मठ है और प्रकृति ही गुरु।
बिना पानी के प्रवचन: वाणी में अनवरत ऊर्जा
श्रद्धालुओं के बीच मशहूर है कि Samarth Guru पाँच‑पाँच घंटे तक प्रवचन देते हैं और बीच में जल‑विश्राम नहीं लेते। भाषण के दौरान वे पर्यावरण, वेदांत और सामाजिक‑सद्भाव पर सरल भाषा में प्रकाश डालते हैं।
वैदिक छंदों का समकालीन संदर्भ
प्रवचनों में Samarth Guru उपनिषद्‑सूत्र, कबीर‑साखी और आधुनिक पारिस्थितिकी चेतना को जोड़ते हैं। उदाहरणतः वे कहते हैं, “यदि नर्मदा सूखती है, तो हमारी आत्मा प्यास से बिलखती है।” इस कथन ने युवाओं को नदी‑पुनरुद्धार अभियानों से जोड़ा, जिससे पिछले वर्ष 12 किलोमीटर लम्बा तट साफ‑सुथरा हुआ।
‘Samarth Guru’ मंत्र की वैज्ञानिक पड़ताल
भू‑ध्वनि विशेषज्ञों ने Samarth Guru द्वारा उच्चारित ‘नर्मदे हर’ मंत्र की ध्वनि‑तरंगों का विश्लेषण किया। निष्कर्ष निकला कि 432 Hz पर स्थिर यह मंत्र मस्तिष्क‑तरंगों को अल्फा‑स्तर पर लाता है, जिससे श्रोता गहन शांति अनुभव करते हैं। इस अध्ययन ने ‘आध्यात्मिक ध्वनि‑चिकित्सा’ पर नई बहस छेड़ी है।
नर्मदा संरक्षण: तप से जुड़ा पर्यावरणीय मिशन
Samarth Guru अपनी साधना को ‘नदी‑मातृ सेवा’ कहते हैं। उनका लक्ष्य है नर्मदा के किनारे एक करोड़ वृक्ष लगाना। इसी क्रम में मध्य प्रदेश के सागर‑जिले, खुरई विधानसभा में 61,700 पौधों का महा‑वृक्षारोपण हाल ही में संपन्न हुआ।
वृक्षारोपण को ‘सहस्रकोटि यज्ञ’ की संज्ञा
वृक्षारोपण कार्यक्रम का नाम Samarth Guru ने ‘सहस्रकोटि यज्ञ’ रखा। उनका तर्क है—“जहाँ एक वृक्ष लगता है, वहाँ सहस्र यज्ञों का पुण्य फलित होता है।” पूर्व गृह‑मंत्री भूपेंद्र सिंह ने कार्यक्रम में भाग लेकर कहा, “Samarth Guru पर्यावरण संरक्षण को जीवंत धर्म बनाते हैं।”
सामुदायिक भागीदारी का नया मॉडल
कार्यक्रम में 12 हजार स्वयंसेवक, 350 स्कूली विद्यार्थी और 27 ग्राम‑पंचायतें शामिल हुईं। सभी वृक्ष‑गड्ढों पर ‘Samarth Guru नर्मदा वृक्ष’ लिखे बेंचमार्क‑पट्ट लगाए गए। स्थानीय वन‑विभाग ने इन पौधों की पाँच‑साल तक मॉनिटरिंग का आश्वासन दिया।
विज्ञान की कसौटी पर Samarth Guru का ‘रहस्य’
भोपाल की इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च इकाई ने Samarth Guru पर प्रारंभिक अध्ययन किया है। शोध‑प्रमुख डॉ. अंजना जोशी बताती हैं, “लगातार उपवास, अत्यधिक पैदल‑यात्रा और उच्च‑ऊर्जा प्रवचनों के बावजूद शरीर में कोई किटोन सरकत नहीं—यह मेडिकल जर्नल्स में केस‑स्टडी बनेगा।”
अंतर‑राष्ट्रीय रुचि
अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में कंपैरेटिव रिलीजन विभाग के प्रोफेसर माइल्स एंडरसन ने मेल द्वारा जानकारी मांगी है। उनका कहना है कि Samarth Guru जैसी जीवनशैली ‘सस्टेनेबल ह्यूमन बायोलॉजी’ का अनोखा उदाहरण है।
शोध और श्रद्धा का संगम
Samarth Guru ने स्वयं कहा, “मैं कोई चमत्कार नहीं, नर्मदा‑माता की शरण हूँ।” वैज्ञानिक‑दल, मीडिया और श्रद्धालु—सब उनका अध्ययन कर रहे हैं, पर वे कहते हैं, “साधना की राह पर प्रश्न नहीं, केवल अनुभव होता है।”
समर्पण, साधना और सेवा का त्रिवेणी संगम
चार साल नौ महीने का अन्न‑त्याग, चार लाख किलोमीटर की यात्रा, नर्मदा‑रक्षा का संकल्प और सहस्रों पौधों का रोपण—Samarth Guru ने आधुनिक युग में प्राचीन तप का जीवंत उदाहरण पेश किया है। उनका जीवन बताता है कि आत्म‑शक्ति, पर्यावरण‑सेवा और सामाजिक‑संदेश साथ‑साथ चल सकते हैं। आज जब पृथ्वी जलवायु‑संकट से जूझ रही है, Samarth Guru हमें स्मरण कराते हैं कि नदियाँ केवल जल‑धाराएँ नहीं, सांस्कृतिक‑रक्तधाराएँ हैं—और उनका संरक्षण ही मानवता की असली साधना है।