हाइलाइट्स
- भगवा आतंकवाद की थ्योरी को कोर्ट ने पूरी तरह खारिज किया
- 7 आरोपितों को 31 जुलाई 2025 को स्पेशल NIA कोर्ट से मिली बाइज्जत रिहाई
- साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित, मेजर रमेश उपाध्याय और समीर कुलकर्णी ने झेले भयावह अत्याचार
- ATS पर धार्मिक अपमान, जबरन मांस खिलाने और करंट देने जैसे गंभीर आरोप
- कोर्ट ने कहा: आतंकवाद का कोई धर्म नहीं, दोष साबित करने के लिए सबूत जरूरी
‘भगवा आतंकवाद’ का झूठ और 17 साल लंबी लड़ाई
मालेगाँव ब्लास्ट केस ने भारतीय राजनीति और समाज को गहरे स्तर पर हिला दिया था। 2008 में हुए इस ब्लास्ट के बाद तत्कालीन सरकार और एजेंसियों ने इसे भगवा आतंकवाद से जोड़ दिया। यह नैरेटिव लंबे समय तक जनता के बीच गढ़ा गया। लेकिन 17 साल की कानूनी लड़ाई के बाद 31 जुलाई 2025 को स्पेशल NIA कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में सभी सात आरोपितों को बाइज्जत बरी कर दिया और साफ कहा कि अभियोजन पक्ष कोई ठोस सबूत नहीं दे सका।
साध्वी प्रज्ञा की दर्दनाक दास्तां
हिरासत में अमानवीय यातनाएँ
मालेगाँव ब्लास्ट मामले की सबसे चर्चित आरोपित रहीं साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर। उन्होंने कई मौकों पर अपने साथ हुई अमानवीय यातनाओं को सार्वजनिक किया। उनके अनुसार, हिरासत में उन्हें पुरुष कैदियों के साथ रखा जाता था, जबरन पोर्न वीडियो दिखाए जाते थे और गंदी-भद्दी बातें की जाती थीं।
शारीरिक और मानसिक पीड़ा
साध्वी प्रज्ञा को चमड़े की बेल्ट से पीटा गया, जिससे उनकी रीढ़ की हड्डी में गंभीर समस्या आ गई। यातनाओं के कारण कैंसर और न्यूरो संबंधी बीमारियाँ भी हुईं। उनकी हालत इतनी बिगड़ गई थी कि एक समय उन्हें वेंटिलेटर पर रखना पड़ा। यह सब सिर्फ इसलिए किया गया ताकि वह भगवा आतंकवाद की थ्योरी को स्वीकार करें और कुछ हिंदू नेताओं के नाम लें।
मेजर रमेश उपाध्याय और समीर कुलकर्णी की आपबीती
ATS की यातनाएँ और धार्मिक अपमान
रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय ने बताया कि ATS ने उन्हें गैरकानूनी तरीके से हिरासत में रखकर प्राइवेट पार्ट्स पर करंट दिए, पैरों पर लकड़ी रखकर पुलिसवाले खड़े हो जाते थे और उन्हें मानसिक रूप से तोड़ने के लिए उनकी पत्नी और बेटी को नंगा करने तथा रेप की धमकी दी गई।
इसी तरह, समीर कुलकर्णी ने खुलासा किया कि पुलिस ने उन्हें रोज़ाना 20 घंटे तक पीटा, उनके तीन दाँत तोड़ दिए और शाकाहारी होने के बावजूद जबरन मांस खिलाया गया। धार्मिक अपमान इतना बढ़ा कि उनके सामने गीता और हनुमान चालीसा को फाड़ा गया और उनका जनेऊ पैरों तले कुचला गया। इन सबका मकसद सिर्फ एक था— उनसे मनचाही गवाही उगलवाना और भगवा आतंकवाद के नैरेटिव को मजबूत करना।
कांग्रेस और ‘भगवा आतंकवाद’ की राजनीति
राजनीतिक षड्यंत्र की परतें
इस पूरे मामले में कांग्रेस पर गंभीर आरोप लगे। ब्यूरोक्रेट आरवीएस मणि ने अपनी किताब ‘हिंदू टेरर’ में खुलासा किया था कि किस तरह तत्कालीन सरकार ने एजेंसियों पर दबाव डालकर हिंदू नेताओं को फँसाने की कोशिश की।
कर्नल पुरोहित ने कोर्ट को बताया था कि कांग्रेस सरकार का इरादा योगी आदित्यनाथ और RSS प्रमुख मोहन भागवत जैसे नेताओं को इस केस में घसीटने का था। यह कदम जनता का ध्यान कॉमनवेल्थ गेम्स और अन्य घोटालों से हटाने के लिए उठाया गया था।
कोर्ट का फैसला: न्याय की जीत
500 पन्नों का ऐतिहासिक निर्णय
स्पेशल NIA कोर्ट के जज एके लाहोटी ने अपने 500 से ज्यादा पन्नों के फैसले में लिखा कि अभियोजन पक्ष ठोस सबूत पेश करने में विफल रहा। उन्होंने कहा— “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, दोषसिद्धि नैतिक आधार पर नहीं बल्कि ठोस सबूतों पर होनी चाहिए।”
निर्दोषों को मिला सम्मान
कोर्ट ने सातों आरोपितों को बाइज्जत बरी करते हुए कहा कि उन्हें वर्षों तक झूठे मुकदमे में फँसाकर उनकी ज़िंदगी बर्बाद की गई। साथ ही, कोर्ट ने सभी आरोपितों को मुआवज़ा देने का भी आदेश दिया।
क्यों ध्वस्त हुई ‘भगवा आतंकवाद’ की थ्योरी?
- अभियोजन पक्ष कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर सका।
- आरोपितों से जबरन मनचाही गवाही लेने की कोशिश उजागर हुई।
- धार्मिक अपमान और यातनाओं की विश्वसनीय गवाही सामने आई।
- राजनीतिक साजिश का पर्दाफाश हुआ।
- कोर्ट ने कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता।
मालेगाँव ब्लास्ट केस का फैसला भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। इसने यह साबित किया कि राजनीतिक लाभ के लिए किसी धर्म या समुदाय को बदनाम करने की कोशिश लंबे समय तक टिक नहीं सकती। भगवा आतंकवाद की थ्योरी का ध्वस्त होना केवल सात निर्दोषों की जीत नहीं, बल्कि सत्य और न्याय की भी जीत है।