हाइलाइट्स
- डॉलर के मुकाबले में रुपए की धमाकेदार तेजी से अमेरिका में मची हलचल, भारतीय मुद्रा ने दिखाई दम
- अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर 25% टैरिफ लागू करने से निवेशकों की चिंता बढ़ी
- रुपये में दो दिन में 55 पैसे की जबरदस्त तेजी, आरबीआई के हस्तक्षेप ने बढ़ाया आत्मविश्वास
- कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट और डॉलर इंडेक्स में सुस्ती बनी रुपए की मजबूती की वजह
- शेयर बाजार में हल्की गिरावट, लेकिन करेंसी मार्केट में भारत की पकड़ मजबूत
डॉलर के मुकाबले में रुपए की तेजी बनी वैश्विक चर्चा
फोकस कीवर्ड: डॉलर के मुकाबले में रुपए की धमाकेदार तेजी
1 अगस्त को जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल के सबसे सख्त टैरिफ आदेश पर हस्ताक्षर किए, तब किसी को अंदाजा नहीं था कि भारत इतनी तीव्र प्रतिक्रिया देगा। डॉलर के मुकाबले में रुपए की धमाकेदार तेजी ने न केवल वाशिंगटन की नींद उड़ा दी है, बल्कि वैश्विक करेंसी बाजार में भी हलचल मचा दी है।
भारत की यह चाल बेहद रणनीतिक और आत्मविश्वास से भरी मानी जा रही है। जहां एक ओर अमेरिका ने 7 अगस्त से भारतीय निर्यात पर 25% टैरिफ लागू करने का फैसला लिया, वहीं दूसरी ओर भारत ने वित्तीय मोर्चे पर ऐसा दांव चला कि डॉलर के मुकाबले में रुपया अचानक मजबूत होता चला गया।
दो दिन में 55 पैसे की मजबूती: आश्चर्य में वॉल स्ट्रीट
गुरुवार और शुक्रवार की सुबह के सत्र में डॉलर के मुकाबले में रुपए की धमाकेदार तेजी साफ देखी जा सकती है। गुरुवार को रुपया 15 पैसे मजबूत होकर बंद हुआ, वहीं शुक्रवार को सुबह के कारोबार में यह 40 पैसे की और बढ़त के साथ 87.25 तक पहुंच गया। कुल मिलाकर दो दिनों में रुपये ने 55 पैसे की तेजी दर्ज की है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, यह तेजी अचानक नहीं आई बल्कि इसमें आरबीआई के सटीक हस्तक्षेप, वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट और डॉलर इंडेक्स में सुस्ती का अहम योगदान रहा।
टैरिफ बम के बाद भारत की चाल ने बदली तस्वीर
अमेरिका द्वारा टैरिफ लगाने की घोषणा ने वैश्विक निवेशकों को चौंका दिया। लेकिन डॉलर के मुकाबले में रुपए की धमाकेदार तेजी ने यह साफ कर दिया कि भारत अब कमजोर मुद्रा की छवि को पीछे छोड़ चुका है। यह तेजी न केवल भारतीय रिजर्व बैंक की कड़ी निगरानी का परिणाम है, बल्कि एक संदेश भी है कि भारत वैश्विक आर्थिक मोर्चे पर अब पीछे हटने वाला नहीं।
करेंसी मार्केट में क्या हुआ बदलाव?
अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार की हलचल
इंटरबैंक फॉरेन करेंसी एक्सचेंज मार्केट में रुपया 87.60 पर खुला और शुरुआती सत्र में डॉलर के मुकाबले 87.25 के उच्चतम स्तर तक पहुंच गया। गुरुवार को यह 87.65 पर बंद हुआ था।
डॉलर के मुकाबले में रुपए की धमाकेदार तेजी इस संकेत के साथ आई है कि बाजार को आरबीआई की उपस्थिति का भरोसा है। वित्तीय जानकारों का कहना है कि रुपये की यह मजबूती अस्थायी नहीं बल्कि एक नये दौर की शुरुआत हो सकती है।
कच्चे तेल की कीमतें बनी सहायक ताकत
ब्रेंट क्रूड की कीमतें 0.97% गिरकर 72.53 डॉलर प्रति बैरल पर आ गईं। इससे भारत के तेल आयात बिल में राहत मिली है, जिससे रुपये पर दबाव घटा है। साथ ही डॉलर के मुकाबले में रुपए की धमाकेदार तेजी को यह गिरावट और मजबूत आधार प्रदान करती है।
शेयर बाजार पर टैरिफ का असर
हालांकि शेयर बाजार में मामूली गिरावट देखी गई – सेंसेक्स 145 अंक और निफ्टी 64 अंक नीचे आया, लेकिन इसकी तुलना में करेंसी बाजार में भारत का प्रदर्शन कहीं अधिक प्रभावशाली रहा।
जानकारों की राय: आगे क्या?
फिनरेक्स ट्रेजरी एडवाइजर्स के कार्यकारी निदेशक अनिल कुमार भंसाली के अनुसार, “डॉलर इस सप्ताह अपने सर्वोच्च स्तर की ओर बढ़ रहा था, लेकिन भारत की करेंसी नीति और आरबीआई के कड़े रुख ने इसे झटका दे दिया है।”
उन्होंने कहा, “अगर आरबीआई इसी तरह सक्रिय रहा, तो डॉलर के मुकाबले में रुपए की धमाकेदार तेजी 87.00 के नीचे तक भी पहुंच सकती है। हालांकि, बाजार में स्थिरता बनाए रखने के लिए कड़ी निगरानी आवश्यक होगी।”
अमेरिका की चिंता: भारत की नई मुद्रा नीति
वॉशिंगटन में चिंता की लहर है कि भारतीय मुद्रा ने अमेरिकी टैरिफ नीति के खिलाफ इस तरह आक्रामक प्रतिक्रिया क्यों दी। ट्रेजरी डिपार्टमेंट के कुछ अधिकारियों ने यह भी माना है कि भारत की यह मुद्रा मजबूती कोई सामान्य घटनाक्रम नहीं है।
डॉलर के मुकाबले में रुपए की धमाकेदार तेजी अमेरिका को यह संकेत देती है कि भारत अब सिर्फ आयात-निर्यात पर निर्भर नहीं है, बल्कि उसकी नीतियां वैश्विक निवेशकों को प्रभावित करने की ताकत रखती हैं।
रुपए की तेजी क्या संकेत देती है?
डॉलर के मुकाबले में रुपए की धमाकेदार तेजी केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि भारत की बढ़ती आर्थिक शक्ति और आत्मनिर्भरता का संकेत है। जब अमेरिका जैसे देश भारत पर टैरिफ का दबाव डालने की कोशिश करते हैं, तो भारत भी अब मुद्रा और बाजार के मोर्चे पर अपना जवाब देने में सक्षम हो गया है।
आने वाले समय में, यह देखने योग्य होगा कि आरबीआई इस रफ्तार को कितनी दूर तक बनाए रख पाता है और क्या यह केवल एक प्रतिक्रियात्मक लहर थी या दीर्घकालिक मुद्रा रणनीति की शुरुआत।