हाइलाइट्स:
- RPF hate crime — जयपुर-मुंबई एक्सप्रेस में हुए इस RPF hate crime ने देश को झकझोर कर रख दिया है।
- घटना में चार लोगों की हत्या की गई, जिनमें तीन मुस्लिम यात्री शामिल थे।
- हत्यारे जवान चेतन सिंह ने नाम पूछकर धर्म के आधार पर हमला किया।
- परिवार वालों का दावा—सैफ़ुद्दीन से नाम पूछने के बाद मारी गई थी गोली।
- चेतन सिंह को तत्काल बर्खास्त किया गया, अब मानसिक जांच का आदेश।
भय और नफ़रत की गोलियां: RPF hate crime ने खोली सामाजिक विभाजन की परतें
31 जुलाई 2023 को जयपुर-मुंबई सुपरफास्ट एक्सप्रेस में हुई इस दिल दहला देने वाली घटना को आज भी लोग भूल नहीं पाए हैं। RPF के कांस्टेबल चेतन सिंह द्वारा चार यात्रियों की बेरहमी से हत्या करना कोई साधारण आपराधिक घटना नहीं थी, बल्कि यह एक संगठित RPF hate crime के रूप में उभरा। इस घटना ने न सिर्फ रेलवे सुरक्षा बल की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए, बल्कि समाज में बढ़ती नफरत की गहराई को भी उजागर किया।
हत्या की रात: जब रेलगाड़ी बन गई नफरत की राह
हादसे की शुरुआत तब हुई जब चेतन सिंह ने अपने ही वरिष्ठ अधिकारी ASI टीका राम मीणा को गोली मार दी। इसके तुरंत बाद, उन्होंने तीन अन्य यात्रियों को गोली मारी—असगर अब्बास अली, अब्दुल कादर मोहम्मद हुसैन भानपुरवाला, और सैयद सैफुद्दीन।
प्रत्यक्षदर्शियों और परिवार वालों के अनुसार, चेतन सिंह ने सैयद सैफुद्दीन से पहले उसका नाम पूछा, फिर धर्म जानने के बाद गोली मारी। यह सीधा संकेत देता है कि यह एक पूर्वनियोजित RPF hate crime था, जिसमें धार्मिक पहचान को निशाना बनाया गया।
धार्मिक पहचान के आधार पर हत्याएं: एक खतरनाक संकेत
मृतकों की कहानी और परिवार का बयान
सैफुद्दीन की पत्नी का कहना है, “वह रोज़ाना की तरह ड्यूटी से लौट रहा था। उसे नहीं पता था कि उसका नाम उसकी जान ले लेगा।”
असगर अली के बेटे ने बताया कि उनके पिता बहुत धार्मिक थे, लेकिन कभी किसी से नफरत नहीं की। “हमें अब ट्रेनों में सफर करते हुए डर लगता है,” उन्होंने कहा।
यह घटना एक ऐसा RPF hate crime बन गई है जो भारतीय लोकतंत्र और सामाजिक ताने-बाने को चोट पहुंचा रही है।
आरोपी चेतन सिंह: मानसिक बीमारी या नफ़रत की उपज?
सितंबर 2024 में शुरू हुए ट्रायल में चेतन सिंह ने मानसिक अस्थिरता की दलील दी। लेकिन पीड़ितों के परिजनों और मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि यह “नफ़रत से भरी विचारधारा” की उपज है, ना कि मानसिक बीमारी का नतीजा।
जनवरी 2025 में अदालत ने चेतन की मानसिक जांच के आदेश दिए। लेकिन अप्रैल 2025 तक मामले में कोई नया अपडेट नहीं आया है।
सामाजिक असर: रेलवे जैसे सार्वजनिक स्थानों की विश्वसनीयता पर संकट
धार्मिक असहिष्णुता और सरकारी प्रतिक्रिया
इस RPF hate crime ने सरकारी तंत्र को भी कटघरे में खड़ा किया है। क्या RPF जैसी संस्था में सांप्रदायिक मानसिकता की जांच नहीं होनी चाहिए? क्या ट्रेन जैसे सार्वजनिक परिवहन में यात्रियों की सुरक्षा केवल किस्मत पर निर्भर रह गई है?
सरकार ने इस घटना की निंदा तो की, लेकिन पीड़ित परिवारों को अब तक न्याय की प्रतीक्षा है।
क्या हम नफ़रत के खिलाफ खड़े हो सकते हैं?
मानवाधिकार संगठनों और समाज की ज़िम्मेदारी
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस तरह के RPF hate crime भारत के संविधान के मूल्यों के खिलाफ हैं। भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जहाँ हर नागरिक को समान अधिकार है—फिर चाहे उसका नाम कुछ भी हो।
समाज को मिलकर इस नफ़रत की राजनीति का विरोध करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी की धार्मिक पहचान उसके जीवन-मरण का कारण न बने।
जयपुर-मुंबई एक्सप्रेस में हुई हत्या कोई साधारण घटना नहीं थी। यह एक RPF hate crime था, जो धार्मिक आधार पर हुआ। इसने भारतीय समाज की गहरी खाई को उजागर किया है। न्याय तब ही पूरा होगा जब अपराधी को सजा मिले और इस तरह की घटनाएं दोबारा न हों।