हाइलाइट्स
- धर्म परिवर्तन विवाद ने लखनऊ में मचाई सनसनी, पति ने पत्नी और बेटे के जबरन धर्मांतरण का आरोप लगाया।
- पीड़ित पति अंकित पांडेय ने बताया कि पत्नी घर से कीमती जेवरात, नकदी और मोबाइल लेकर गायब हो गई।
- बेटे का मोहर्रम से पहले कराया गया खतना, पति ने कहा यह धर्म परिवर्तन गिरोह की साजिश।
- पुलिस पर लापरवाही का आरोप, शिकायत के बावजूद कार्रवाई न होने से पीड़ित परिवार आहत।
- सीएम योगी आदित्यनाथ से सख्त कार्रवाई की मांग, पीड़ित ने जताया अपनी जान को खतरा।
लखनऊ से उठी धर्म परिवर्तन की गूंज
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ इस समय एक नए धर्म परिवर्तन विवाद को लेकर सुर्खियों में है। ठाकुरगंज थाना क्षेत्र में रहने वाले अंकित पांडेय ने सनसनीखेज आरोप लगाया है कि उनकी पत्नी प्रियंका और बेटे अर्नव को मंजूर हसन उर्फ सैफी नामक व्यक्ति ने बहला-फुसलाकर पहले मुस्लिम धर्म अपनाने पर मजबूर किया और फिर उन्हें अपने साथ ले गया। यह मामला न केवल परिवारिक स्तर पर गहरा आघात पहुंचाने वाला है बल्कि समाज में धर्म परिवर्तन को लेकर जारी बहस को और तेज कर गया है।
धर्म परिवर्तन का आरोप और पति की आपबीती
अंकित पांडेय ने बताया कि 28 अगस्त 2025 को जब उन्होंने अपने बेटे को नहलाया तो उन्हें पता चला कि उसका खतना कराया गया है। पूछताछ करने पर उनकी पत्नी प्रियंका ने साफ कहा कि वह अब हिंदू धर्म में नहीं हैं और उन्होंने मुस्लिम धर्म अपना लिया है। इतना ही नहीं, बेटे का खतना मोहर्रम से पहले नक्खास इलाके में कराया गया था।
पति का आरोप है कि इस पूरे घटनाक्रम के पीछे मंजूर हसन उर्फ सैफी नामक व्यक्ति है, जो कथित तौर पर एक संगठित धर्म परिवर्तन गिरोह का सदस्य है। अंकित के मुताबिक, इस गिरोह ने पहले उनकी पत्नी और बेटे का धर्मांतरण कराया और फिर उन्हें अपने साथ बाराबंकी ले गया।
पुलिस की लापरवाही पर सवाल
पीड़ित अंकित पांडेय ने आरोप लगाया कि मामले की शिकायत ठाकुरगंज थाने में करने के बावजूद पुलिस ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। यहां तक कि सर्विलांस पर पत्नी की लोकेशन सिविल कोर्ट परिसर में मिलने के बावजूद कार्रवाई नहीं की गई।
पीड़ित का कहना है कि पुलिस ने उनसे उल्टा एक बयान लिखवा लिया कि वह कोई कार्रवाई नहीं चाहते। इससे यह सवाल खड़े होते हैं कि आखिर इतनी गंभीर धर्म परिवर्तन की शिकायत पर पुलिस ने तत्परता क्यों नहीं दिखाई।
धर्म परिवर्तन और समाज में बढ़ती चिंता
धर्म परिवर्तन का मुद्दा बीते कुछ सालों से उत्तर प्रदेश और देशभर में बड़ी बहस का विषय बना हुआ है। इस मामले ने एक बार फिर समाज को हिला दिया है। धार्मिक पहचान, आस्था और परंपरा से जुड़ा यह विवाद न केवल एक परिवार को तोड़ रहा है बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी प्रभावित कर रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के मामलों में सबसे ज्यादा नुकसान छोटे बच्चों को होता है। अंकित पांडेय के बेटे अर्नव का उदाहरण सामने है, जहां कम उम्र में ही उसे धर्मांतरण की प्रक्रिया में शामिल किया गया। यह घटना इस बात की तस्दीक करती है कि किस तरह से मासूमों को धर्म परिवर्तन की योजनाओं में घसीटा जा रहा है।
धर्म परिवर्तन कानून और उसकी चुनौतियां
उत्तर प्रदेश सरकार ने 2020 में धर्मांतरण विरोधी कानून लागू किया था, जिसके तहत किसी भी तरह के जबरन या प्रलोभन देकर किए गए धर्म परिवर्तन को अपराध माना गया है। लेकिन लखनऊ का यह मामला इस कानून की प्रभावशीलता पर सवाल खड़ा करता है।
अगर वास्तव में अंकित पांडेय के आरोप सही हैं तो यह साफ करता है कि संगठित गिरोह अब भी सक्रिय हैं और कानून के बावजूद उन्हें रोकना मुश्किल हो रहा है। विशेषज्ञ कहते हैं कि ऐसे मामलों में पुलिस और प्रशासन को अधिक सख्त और पारदर्शी कार्रवाई करनी चाहिए।
पीड़ित की गुहार और राजनीतिक आयाम
अंकित पांडेय ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सीधी गुहार लगाई है कि उन्हें और उनके परिवार को न्याय दिलाया जाए। उनका आरोप है कि धर्म परिवर्तन गिरोह ने उनकी पत्नी और बेटे को फंसा लिया है और उनकी जान को भी खतरा है।
राजनीतिक स्तर पर भी यह मामला बड़ा मुद्दा बन सकता है। विपक्ष जहां पुलिस और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा सकता है, वहीं सत्ता पक्ष इसे धर्म परिवर्तन विरोधी कानून की मजबूती के रूप में पेश कर सकता है।
धर्म परिवर्तन विवाद का सामाजिक प्रभाव
धर्म परिवर्तन विवाद सिर्फ अंकित पांडेय का व्यक्तिगत मामला नहीं है, बल्कि यह समाज में गहरी असुरक्षा और अविश्वास की स्थिति पैदा करता है। परिवार टूटते हैं, रिश्तों में दरारें आती हैं और धार्मिक आधार पर विभाजन की खाई चौड़ी होती है।
लखनऊ का यह प्रकरण इस बात का प्रमाण है कि आज भी समाज में ऐसे तत्व सक्रिय हैं जो धार्मिक भावनाओं का इस्तेमाल करके लोगों के जीवन को प्रभावित कर रहे हैं। खासकर महिलाओं और बच्चों को निशाना बनाया जा रहा है, जिससे यह मुद्दा और गंभीर हो जाता है।
लखनऊ का यह मामला सिर्फ एक परिवार की निजी त्रासदी नहीं है बल्कि यह पूरे समाज के लिए चेतावनी है। अगर संगठित धर्म परिवर्तन गिरोहों पर सख्ती से नकेल नहीं कसी गई तो भविष्य में ऐसे मामले और बढ़ सकते हैं। पुलिस और प्रशासन को चाहिए कि वे निष्पक्ष जांच कर पीड़ित को न्याय दिलाएं और साथ ही कानून के प्रावधानों को और प्रभावी बनाएं।
धर्म, आस्था और पहचान का सवाल सिर्फ व्यक्तिगत नहीं होता, यह समाज और राष्ट्र की एकता से भी जुड़ा है। इसलिए धर्म परिवर्तन विवाद को गंभीरता से लेना समय की मांग है।