🧷 हाइलाइट्स
- फार्मा उद्योग पर ट्रंप की चेतावनी से मचा हड़कंप, भारत पर गहराया असर
- अमेरिका में फार्मा कंपनियों का 250 अरब डॉलर तक का निवेश प्रस्ताव
- ट्रंप ने दवा आयात पर 200% टैक्स की दी चेतावनी, भारत-चीन पर निशाना
- अमेरिका में दवा उत्पादन की लागत बेहद ज्यादा, आत्मनिर्भरता पर उठे सवाल
- विशेषज्ञ बोले- “जेनरिक दवाओं के बिना अमेरिका की योजना अधूरी”
फार्मा उद्योग में भूचाल ला देने वाली एक और धमकी के साथ, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वैश्विक दवा बाजार की स्थिरता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। ट्रंप ने ऐलान किया है कि अमेरिका अब विदेशों से दवाएं आयात करने पर भारी टैक्स लगाएगा, जिससे फार्मा उद्योग में हलचल तेज हो गई है। उन्होंने इस कदम के तहत भारत और चीन को विशेष तौर पर निशाना बनाया है।
ट्रंप की रणनीति या सियासी चाल?
डोनाल्ड ट्रंप यह दावा कर रहे हैं कि अमेरिका को अब फार्मा उद्योग में आत्मनिर्भर बनना चाहिए। उनका मानना है कि कोविड-19 के दौरान अमेरिका ने विदेशों से दवा मंगाकर अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाला था। ट्रंप की योजना है कि दवाओं के आयात पर 200% तक का टैरिफ लगाया जाए ताकि अमेरिका खुद दवा उत्पादन की दिशा में कदम बढ़ा सके।
हालांकि ट्रंप ने यह भी कहा है कि कंपनियों को तैयारियों के लिए एक साल का समय दिया जाएगा, लेकिन सवाल ये है कि क्या इतनी जल्दी फार्मा उद्योग में क्रांति संभव है?
अमेरिका में निवेश का बूम, लेकिन जोखिम भी बड़ा
बड़ी कंपनियों की एंट्री
ट्रंप की धमकी के बाद फार्मा उद्योग की प्रमुख कंपनियां अमेरिका में भारी निवेश की घोषणाएं कर रही हैं:
- एस्ट्राजेनेका – 50 अरब डॉलर का निवेश
- जॉनसन एंड जॉनसन – 55 अरब डॉलर की योजना
- एली लिली – 27 अरब डॉलर का प्रस्ताव
इन तीनों के अलावा कई और कंपनियां भी अमेरिका में उत्पादन बढ़ाने की योजना बना रही हैं। कुल मिलाकर, फार्मा उद्योग अमेरिका में लगभग 250 अरब डॉलर का निवेश करने को तैयार दिखाई दे रहा है।
लेकिन क्या इससे दवाएं सस्ती होंगी?
CNN और अन्य अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों के अनुसार, इन भारी निवेशों के बावजूद दवाओं के दाम में कोई खास गिरावट नहीं आएगी। अमेरिका में उत्पादन लागत काफी अधिक है – चाहे वह मज़दूरी हो, मशीन हो या बिजली। विशेषज्ञों का मानना है कि यह निवेश आम अमेरिकी उपभोक्ता के लिए राहत नहीं, बल्कि महंगाई लेकर आएगा।
कच्चे माल पर टिकी है अमेरिका की मजबूरी
भारत और चीन का अटूट योगदान
आज भी अमेरिका में जितनी दवाएं बनती हैं, उनमें इस्तेमाल होने वाला 70% से ज्यादा कच्चा माल भारत और चीन से आता है। फार्मा उद्योग की यह आपूर्ति श्रृंखला वर्षों में तैयार हुई है, और इसे तोड़ना आसान नहीं है।
यदि अमेरिका बाहर से कच्चा माल मंगाना बंद करता है, तो उत्पादन ठप पड़ जाएगा। और यदि कच्चा माल लाना जारी रखता है, तो उस पर भी ट्रंप का प्रस्तावित टैक्स लागू होगा। यानी या तो उत्पादन रुकेगा या महंगाई बढ़ेगी — दोनों ही स्थितियां घातक हैं।
जेनरिक दवाओं से किनारा करती कंपनियां
कम मुनाफा, ज्यादा जोखिम
फार्मा उद्योग की बड़ी कंपनियां अमेरिका में जेनरिक दवाओं के निर्माण को लेकर उत्साहित नहीं हैं। जेनरिक दवाएं वे होती हैं जो पेटेंट की अवधि समाप्त होने के बाद बनती हैं और सस्ती होती हैं। भारत इस क्षेत्र में अग्रणी है।
आज अमेरिका में 90% तक दवाएं जेनरिक हैं, जिनमें से अधिकतर भारत से आती हैं। लेकिन अमेरिका में इनका निर्माण करना कंपनियों को घाटे का सौदा लगता है। यही कारण है कि फार्मा उद्योग की कंपनियां अधिकतर ब्रांडेड या महंगी दवाओं पर फोकस कर रही हैं।
क्या अमेरिका बन पाएगा आत्मनिर्भर?
खर्च और समय दोनों बड़ी चुनौतियां
विशेषज्ञों का कहना है कि फार्मा उद्योग में आत्मनिर्भरता एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है। नई फैक्ट्रियों को चालू करने में 3 से 5 साल लग सकते हैं। इसके अलावा, कच्चे माल पर निर्भरता और ऊंची लागत इसे और कठिन बना देती है।
यदि अमेरिका को सच में फार्मा उद्योग में आत्मनिर्भर बनना है, तो सरकार को कंपनियों को सब्सिडी देनी होगी, टैक्स में छूट देनी होगी और श्रमिकों को प्रशिक्षित करना होगा। बिना इन प्रयासों के ट्रंप की योजना केवल एक राजनीतिक बयानबाज़ी बनकर रह जाएगी।
भारत के लिए क्या है खतरा?
ट्रंप की योजना से भारत को होगा बड़ा झटका?
भारत वैश्विक फार्मा उद्योग का एक बड़ा केंद्र है, खासकर जेनरिक दवाओं के क्षेत्र में। यदि अमेरिका अपने नियम बदलता है, तो भारत को भारी निर्यात घाटा हो सकता है।
लेकिन इसमें एक सकारात्मक पहलू भी है — यदि अमेरिका की योजना असफल होती है, तो भारत की विश्वसनीयता और मांग और बढ़ सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि फार्मा उद्योग के वैश्विक संतुलन को अचानक बदलना अमेरिका के लिए खुद घातक हो सकता है।
फार्मा उद्योग के लिए संकट या अवसर?
डोनाल्ड ट्रंप की इस नई नीति ने वैश्विक फार्मा उद्योग को एक दोराहे पर खड़ा कर दिया है। भारत और चीन जैसे देश जहां इसे चुनौती के रूप में देख रहे हैं, वहीं अमेरिका खुद भी उलझनों में फंसा नजर आ रहा है।
फार्मा उद्योग में आत्मनिर्भरता केवल फैक्ट्री खोलने से नहीं आती — इसके लिए संपूर्ण आपूर्ति श्रृंखला, प्रशिक्षित जनशक्ति, और लागत नियंत्रण जरूरी होता है। ट्रंप की यह रणनीति फिलहाल सियासी मंच पर लोकप्रिय भले हो, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और कह रही है।