हाइलाइट्स
-
सुप्रीम कोर्ट ने Pakistani Nationals in India के निर्वासन पर अस्थायी रोक लगाई
-
याचिकाकर्ता ने दावा किया – हमारे पास वैध भारतीय पासपोर्ट और आधार कार्ड हैं
-
2000 से श्रीनगर में रह रहा है परिवार, वर्तमान में बेंगलुरू में है निवास
-
वाघा बॉर्डर पर भेजे जाने से पहले कोर्ट में लगाई अर्जी
-
सॉलिसिटर जनरल बोले – संबंधित अथॉरिटी के पास जाएं याचिकाकर्ता
नई दिल्ली: पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत सरकार की ओर से उठाए गए कदमों के तहत Pakistani Nationals in India को लेकर सख्त रुख अपनाया गया है। लेकिन इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम निर्णय लेते हुए छह पाकिस्तानी नागरिकों के निर्वासन पर फिलहाल रोक लगा दी है। यह मामला उस समय तूल पकड़ गया जब एक कश्मीरी युवक अहमद तारिक बट्ट ने अपनी याचिका में दावा किया कि वह और उसका परिवार भारतीय नागरिक हैं।
याचिकाकर्ता का दावा – भारतीय हैं, पासपोर्ट-आधार सब है
याचिकाकर्ता अहमद तारिक बट्ट ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा कि उसके परिवार के सभी छह सदस्यों के पास वैध भारतीय पासपोर्ट और आधार कार्ड हैं। उसने बताया कि उसके माता-पिता, बहन, भाई और दो बेटे बेंगलुरू में काम कर रहे हैं। वह खुद भी एक प्रतिष्ठित आईटी कंपनी में कार्यरत है और IIM कोझिकोड से स्नातक की डिग्री प्राप्त कर चुका है।
“हमें जबरन देश से निकाला जा रहा है”
अहमद तारिक के वकील नंद किशोर ने अदालत में कहा, “हमें बिना किसी उचित जांच के वाघा बॉर्डर की ओर ले जाया जा रहा था। हमारे पास सारे भारतीय दस्तावेज मौजूद हैं। फिर भी हमें निर्वासित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई।” यह मामला न्यायपालिका के लिए न केवल संवेदनशील, बल्कि गंभीर मानवाधिकार प्रश्न भी बन गया है।
2000 से भारत में रह रहा है पूरा परिवार
याचिका में अहमद ने बताया कि उसका परिवार वर्ष 2000 में पाक अधिकृत कश्मीर के मीरपुर से भारत आया था। उसकी मां नुसरत बट्ट श्रीनगर में जन्मी हैं, जबकि पिता तारिक मशकूर बट्ट POK के निवासी हैं। अहमद खुद 1997 तक मीरपुर में रहा, लेकिन उसके बाद परिवार श्रीनगर आ गया और वहीं बस गया।
“हम कश्मीर के नागरिक हैं”
याचिकाकर्ता का कहना है कि वर्षों से वे भारत में रह रहे हैं। उन्होंने यहीं की शिक्षा ली है, यहां की नौकरियों में कार्यरत हैं और भारत के सामाजिक ताने-बाने में पूरी तरह रच-बस गए हैं। फिर भी उन्हें Pakistani Nationals in India के रूप में वर्गीकृत कर निर्वासित किया जा रहा है।
सरकार का पक्ष और सुप्रीम कोर्ट की सलाह
सरकारी पक्ष का कहना है कि यह मामला संवेदनशील है और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित है, इसलिए इन नागरिकों को पाकिस्तान वापस भेजा जा रहा है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा कि क्या केवल जन्म स्थान के आधार पर किसी व्यक्ति को विदेशी घोषित किया जा सकता है, जब उसके पास भारतीय दस्तावेज मौजूद हैं?
पहले संबंधित अथॉरिटी के पास जाएं”
सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट को सूचित किया कि याचिकाकर्ताओं को अपनी नागरिकता से जुड़ा मामला उचित प्रशासनिक अधिकारियों के पास ले जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात से सहमति जताई, लेकिन साथ ही निर्वासन की प्रक्रिया पर फिलहाल रोक लगा दी।
आतंकी हमले के बाद सुरक्षा एजेंसियों की सख्ती
हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने देश की सुरक्षा एजेंसियों को अलर्ट कर दिया है। इसके बाद कई संदिग्ध नागरिकों की पहचान और उनकी नागरिकता की जांच शुरू की गई। इसी क्रम में Pakistani Nationals in India के खिलाफ कार्रवाई भी तेज हुई है।
“बिना प्रमाण के नहीं हो सकता निर्वासन”
विशेषज्ञों का मानना है कि किसी भी व्यक्ति को केवल अनुमान या संदेह के आधार पर निर्वासित नहीं किया जा सकता। यदि उनके पास वैध भारतीय दस्तावेज हैं, तो उन्हें भारतीय नागरिक माना जाना चाहिए, जब तक कि कोर्ट या सरकार किसी ठोस सबूत के आधार पर कुछ और साबित न करे।
नागरिकता की जटिलता और मानवीय पहलू
इस पूरे प्रकरण ने भारत में नागरिकता और पहचान से जुड़े जटिल प्रश्नों को फिर से सामने ला खड़ा किया है। खासतौर पर जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्र में, जहां लोग सरहद पार करके भारत आते हैं और वर्षों से यहां की व्यवस्था में समाहित हो जाते हैं।
“यह केवल कानूनी नहीं, मानवीय मुद्दा भी है”
सामाजिक कार्यकर्ता और मानवाधिकार संगठन इस बात पर जोर दे रहे हैं कि Pakistani Nationals in India की हर जांच प्रक्रिया में मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। कई बार ऐसे लोग वास्तव में भारत के ही नागरिक होते हैं लेकिन दस्तावेजों की कमी या ऐतिहासिक कारणों से उनके साथ अन्याय हो जाता है।
सुप्रीम कोर्ट की रोक बनी उम्मीद की किरण
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से दी गई अस्थायी राहत उन सभी नागरिकों के लिए उम्मीद की किरण है, जिनकी पहचान पर प्रश्नचिह्न लगा दिया गया है। यह मामला इस बात का उदाहरण है कि एक लोकतांत्रिक देश में न्याय प्रणाली कैसे अंतिम सहारा बन सकती है।
जब तक याचिकाकर्ता उचित प्रशासनिक प्रक्रिया पूरी नहीं कर लेते, तब तक उन्हें निर्वासित नहीं किया जा सकता। इससे स्पष्ट संकेत जाता है कि Pakistani Nationals in India को लेकर कोई भी कदम उठाने से पहले कानूनी और मानवीय दोनों पहलुओं पर विचार करना अनिवार्य है।