हाइलाइट्स
- पहलगाम आतंकी हमले पर हिंदू मुस्लिम करने वालों को देश की जनता ने दिया करारा जवाब
- देश में सांप्रदायिकता फैलाने की कोशिशें हो रही हैं योजनाबद्ध तरीके से
- आतंकी हमलों को धर्म से जोड़ना समाज को बांटने की साजिश है
- मीडिया का एक वर्ग भड़काऊ एंकरिंग के जरिए नफरत का एजेंडा चला रहा है
- युवाओं और बुद्धिजीवियों ने एक सुर में कहा – “देश को बांटने वालों को जवाब देना होगा”
जमीनी हकीकत: आतंकवाद धर्म नहीं देखता, फिर क्यों फैलाई जाती है नफ़रत?
11 जुलाई 2025 को जम्मू-कश्मीर के खूबसूरत पर्यटक स्थल पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया। इस हमले में 5 निर्दोष नागरिकों की जान गई और कई घायल हुए। लेकिन इस दुखद घटना के बाद जो सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पहलू सामने आया, वह था पहलगाम आतंकी हमले पर हिंदू मुस्लिम करने वालों की ज़हर बुझी बयानबाज़ी।
हमले के तुरंत बाद ही सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर धर्म के आधार पर आग भड़काने की कोशिशें शुरू हो गईं। खासकर मीडिया के कुछ ‘स्टार एंकरों’ ने इस घटना को हिंदू-मुस्लिम एंगल देने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
जनता का जवाब – देश को बांटने वालों के लिए कोई जगह नहीं
पहलगाम आतंकी हमले पर हिंदू मुस्लिम करने वालों को इस बार जनता ने करारा जवाब दिया है। हमले के बाद कश्मीर के मुस्लिम इलाकों में हिंदू यात्रियों को सुरक्षित शरण दी गई, स्थानीय मुस्लिम नागरिकों ने घायलों की मदद की, खून दिया और अस्पताल पहुंचाने में सहायता की।
यही नहीं, सोशल मीडिया पर भी ट्रेंड हुआ –
#TerrorHasNoReligion
#StopCommunalNarrative
#पहलगाम_हमला_मानवता_के_खिलाफ
इन हैशटैग्स में देशभर के लोगों ने एक सुर में कहा – “अब बहुत हो गया, पहलगाम आतंकी हमले पर हिंदू मुस्लिम करने वालों को बेनकाब करो।”
मीडिया की भूमिका पर सवाल: पत्रकारिता या प्रोपेगेंडा?
🪩 पहलगाम आतंकी हमले पर हिंदू मुस्लिम करने वालों को सीधा जवाब।
देश के अंदर न हिंदू ख़तरे में है ना मुसलमान
यहां अगर खतरा है वो है राष्ट्रीय मेडिय की संस्थापक के एम्प्लॉयर एंकर्स की पेट ख़तरे में है।प्रोपेगेंडा फैलाना बंद करो- #MediaAgainstMuslim #GodiMedia 🎥… pic.twitter.com/hAqmzZeTH5
— INDStoryS (@INDStoryS) July 24, 2025
जब पेट का एजेंडा देश से बड़ा हो जाए
देश का चौथा स्तंभ कही जाने वाली मीडिया इन दिनों खुद कटघरे में खड़ी है। कई पत्रकारों, बुद्धिजीवियों और रिटायर्ड सेना अधिकारियों ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि –
“अब राष्ट्रीय मीडिया संस्थाओं के संस्थापक नहीं, उनके एंप्लॉयर्स यानी एंकर्स का पेट सबसे ज्यादा खतरे में है।”
आज की पत्रकारिता टीआरपी के नाम पर नफरत बेच रही है। पहलगाम आतंकी हमले पर हिंदू मुस्लिम करने वालों को उसी मीडिया ने उकसाया, जो खुद को ‘राष्ट्रवादी पत्रकारिता’ का सिरमौर कहती है।
सच्चाई: कश्मीरी मुसलमानों ने दिखाई इंसानियत की मिसाल
हमले के ठीक बाद पहलगाम के स्थानीय मुस्लिम नागरिकों ने जो किया, उसने साबित किया कि इंसानियत जिंदा है। कई यात्रियों ने बताया कि “हमें बचाने के लिए मुस्लिम भाई अपनी जान की परवाह किए बिना आगे आए।”
इससे साफ हो गया कि पहलगाम आतंकी हमले पर हिंदू मुस्लिम करने वालों की सोच सिर्फ देश को बांटने के लिए है, न कि सच्चाई को दिखाने के लिए।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं: कुछ ने बाँटना चाहा, कुछ ने जोड़ा
हमले के बाद जहाँ कुछ नेताओं ने भड़काऊ बयान दिए और पहलगाम आतंकी हमले पर हिंदू मुस्लिम करने वालों की टोली में शामिल हो गए, वहीं विपक्ष और कुछ युवा नेताओं ने एकजुटता की बात की।
राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव ने कहा –
“अगर हम आतंकवाद से लड़ना चाहते हैं, तो पहले हमें धर्म के चश्मे उतारने होंगे। जब तक हम हर हमले को सांप्रदायिक रंग देते रहेंगे, हम आतंक की जड़ तक नहीं पहुंच सकते।”
बुद्धिजीवियों और युवाओं की आवाज: Enough is Enough
देशभर के छात्रों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और लेखकों ने एक स्वर में कहा कि –
“अब समय आ गया है कि हम पहलगाम आतंकी हमले पर हिंदू मुस्लिम करने वालों को नकारें और एकजुट होकर असली दुश्मन – आतंकवाद – से लड़ें।”
दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ ने कैंडल मार्च निकाला जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों छात्रों ने हिस्सा लिया और एक ही पोस्टर हाथ में था –
“धर्म नहीं आतंक दोषी है”
क्या करें नागरिक? – नफरत नहीं, विवेक अपनाएं
- हर खबर पर आंख बंद कर भरोसा न करें
- आधिकारिक और निष्पक्ष स्रोतों से जानकारी लें
- सोशल मीडिया पर फैल रही अफवाहों को रोकें
- पहलगाम आतंकी हमले पर हिंदू मुस्लिम करने वालों को जवाब दें – तर्क और सच्चाई से
- सांप्रदायिक एंकरों और चैनलों को न देखें, न बढ़ावा दें
अब नफरत नहीं, एकता की जरूरत है
पहलगाम आतंकी हमले पर हिंदू मुस्लिम करने वालों को देश ने स्पष्ट जवाब दे दिया है। अब समय है कि हम धर्म की दीवारों को तोड़ें और आतंक के खिलाफ एक साथ खड़े हों। पत्रकारिता का काम सच्चाई दिखाना है, न कि किसी खास विचारधारा का प्रचार करना।
हमें तय करना है –
हम नफरत की भाषा बोलने वालों के पीछे चलेंगे या इंसानियत की मिसाल पेश करने वालों के साथ खड़े होंगे।