हाइलाइट्स
- Normal Delivery को लेकर हिंदू और मुस्लिम महिलाओं में दिखा चौंकाने वाला अंतर
- हिंदू महिलाओं में डिलीवरी के दौरान ऑपरेशन का बढ़ता ग्राफ बना चिंता का विषय
- मुस्लिम समुदाय में अब भी ज्यादा Normal Delivery, खर्च भी बेहद कम
- क्या निजी अस्पतालों की लालच भरी रणनीति है इसके पीछे?
- डाइट, जीवनशैली और सामाजिक सोच में छिपे हो सकते हैं इस अंतर के गहरे कारण
ऑपरेशन बनाम Normal Delivery: आंकड़े जो सोचने पर मजबूर कर दें
भारत में प्रसव को लेकर एक नया सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधित सवाल जन्म ले रहा है। हालिया रिपोर्टों और सामाजिक चर्चाओं के अनुसार, हिंदू महिलाओं की लगभग 90% डिलीवरी ऑपरेशन (C-Section) से होती है, जबकि मुस्लिम महिलाओं में 95% मामलों में Normal Delivery देखी जा रही है। ये आंकड़े किसी सरकारी रिपोर्ट में नहीं छपे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत और अस्पतालों की कार्यशैली का जायज़ा लेने पर यह फर्क साफ दिखाई देता है।
सामाजिक ढांचे में अंतर या स्वास्थ्य व्यवस्था की चाल?
हिंदू महिलाओं की चिकित्सा-आधारित गर्भावस्था
हिंदू समाज में प्रेगनेंसी की शुरुआत से ही डॉक्टरों के पास लगातार चेकअप, सोनोग्राफी, दवाएं, मल्टीविटामिन्स और इंजेक्शनों की भरमार शुरू हो जाती है। यह प्रक्रिया डिलीवरी तक चलती रहती है। इसका आर्थिक असर भी होता है—हर महीने हज़ारों रुपये की लागत और अंतिम ऑपरेशन में 50,000 से लेकर ₹1 लाख तक खर्च। बावजूद इसके, नतीजा अधिकतर मामलों में ऑपरेशन ही होता है।
मुस्लिम समाज में परंपरागत भरोसे के साथ गर्भावस्था
इसके विपरीत मुस्लिम महिलाओं में अब भी पुराने तरीकों और घरेलू उपायों पर ज्यादा भरोसा किया जाता है। ज्यादातर महिलाएं सरकारी अस्पतालों या छोटे नर्सिंग होम्स में जाती हैं, जहाँ Normal Delivery का प्रतिशत अधिक होता है। सुबह भर्ती होकर शाम को बच्चे के साथ घर लौट जाना आम बात है।
मेडिकल रैकेट या सिस्टम की खामी?
निजी अस्पतालों की भूमिका
कई विशेषज्ञों का मानना है कि निजी अस्पतालों द्वारा Normal Delivery को जानबूझकर टाला जाता है, क्योंकि C-Section में अस्पतालों की कमाई कई गुना अधिक होती है। जहां Normal Delivery में ₹10,000–₹20,000 खर्च होता है, वहीं ऑपरेशन में ये राशि सीधे 5 से 6 गुना बढ़ जाती है।
Normal Delivery की प्रक्रिया समय लेने वाली होती है और स्टाफ को कई घंटों तक एक्टिव रहना पड़ता है, जबकि ऑपरेशन केवल एक घंटे में हो जाता है। ऐसे में अस्पतालों के लिए C-Section ‘सुरक्षित’ और ‘मुनाफेदार’ रास्ता बन गया है।
क्या खान-पान और जीवनशैली है इस फर्क की जड़?
“90% हिन्दू महिलाओं की डिलीवरी #ऑपरेशन से होती है,जबकि 95% मुस्लिम महिलाओं की डिलीवरी #नॉर्मल होती है”
इसके पीछे कारण क्या है?
कभी विचार तो करो ये मामला सामान्य नही है।हिंदू महिलाओ मे पहले महीने से डिलीवरी तक इलाज चालू रहता है जबकि दूसरी तरफ वह लोग डिलीवरी के दिन सुबह जाते हैं… pic.twitter.com/akgR3MApgx
— Sakshi Sonam … 👭 (@Sakshi_Sonam_) July 14, 2025
हिंदू महिलाओं की शहरी जीवनशैली
हिंदू समाज में अब महिलाएं ज्यादातर बैठने वाला काम करती हैं, मोबाइल और स्क्रीन टाइम अधिक होता है, योग और व्यायाम लगभग न के बराबर, और भोजन अधिकतर बाहर का। यह सभी कारक Normal Delivery में बाधक बनते हैं। साथ ही, मानसिक तनाव और अनावश्यक दवाइयां भी गर्भधारण को कमजोर करती हैं।
मुस्लिम महिलाओं की सक्रियता और घरेलू खान-पान
मुस्लिम समाज में महिलाओं का जीवन अधिक शारीरिक परिश्रम वाला होता है। वह घरेलू कामकाज में सक्रिय रहती हैं, बाजार से सामान लाना, सफाई, खाना पकाना—इन सबमें लगातार गतिशील रहती हैं। भोजन में पारंपरिक और पौष्टिक चीजें जैसे सत्तू, खजूर, हलीम, दूध और सूखे मेवे शामिल होते हैं, जिससे शरीर मजबूत बना रहता है।
आंकड़े क्या कहते हैं?
- WHO की गाइडलाइन के अनुसार किसी भी देश में 10% से अधिक C-Section दर नहीं होनी चाहिए।
- भारत में यह औसत 21.5% है, जबकि कई निजी अस्पतालों में यह आंकड़ा 60-80% तक पहुँच चुका है।
- National Family Health Survey (NFHS-5) के मुताबिक शहरी क्षेत्रों में C-Section की दर ग्रामीण क्षेत्रों से दुगुनी है।
शारीरिक कमजोरी और मानसिक पीड़ा: ऑपरेशन का दुष्प्रभाव
C-Section डिलीवरी के बाद महिलाओं में कमजोरी, पीठ दर्द, मोटापा, मानसिक तनाव और दुबारा गर्भधारण में मुश्किल जैसे गंभीर दुष्प्रभाव देखे जाते हैं। साथ ही, बच्चों में भी इम्यूनिटी कम होने की आशंका बढ़ जाती है।
इसके उलट, Normal Delivery से महिला जल्दी स्वस्थ होती है, स्तनपान ठीक से कर पाती है और शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बेहतर होती है।
समाधान क्या है?
महिलाओं को सही जानकारी और विकल्प चाहिए
- स्वास्थ्य शिक्षा: गर्भवती महिलाओं को नियमित रूप से योग, हल्का व्यायाम और सही खानपान की जानकारी दी जाए।
- सरकारी निगरानी: निजी अस्पतालों पर C-Section के बढ़ते प्रतिशत की जांच हो।
- डॉक्टर की जवाबदेही: डॉक्टर्स से Normal Delivery का कारण बताने की ज़िम्मेदारी तय की जाए।
- प्रेरणात्मक उदाहरण: जिन महिलाओं ने सफलतापूर्वक Normal Delivery की है, उन्हें प्रचारित किया जाए।
फर्क समझिए, सवाल उठाइए
Normal Delivery केवल एक चिकित्सा प्रक्रिया नहीं बल्कि एक प्राकृतिक अधिकार है। समाज, चिकित्सा व्यवस्था और परिवारों को मिलकर यह तय करना होगा कि महिलाओं को उनके अधिकार से वंचित न किया जाए। यह केवल हिंदू-मुस्लिम का सवाल नहीं, बल्कि एक स्वस्थ समाज निर्माण की बुनियाद है।
अगर 95% मुस्लिम महिलाओं की डिलीवरी Normal Delivery हो सकती है, तो हिंदू समाज में 90% ऑपरेशन क्यों? क्या यह किसी गहरे षड्यंत्र की ओर इशारा करता है? सवाल उठाइए, जवाब मांगिए।