धरती की हर हलचल पर नजर: इसरो-नासा का 12,500 करोड़ का महा-मिशन

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हाइलाइट्स

  • निसार सैटेलाइट ने अंतरिक्ष में उड़ान भरते ही रचा इतिहास
  • नासा और इसरो की अब तक की सबसे महंगी साझेदारी
  • 747 किलोमीटर की ऊंचाई से धरती की निगरानी करेगा यह उपग्रह
  • एल-बैंड और एस-बैंड रडार की संयुक्त शक्ति से मिलेगी सूक्ष्मतम जानकारी
  • बर्फ, जंगल, भूकंप और फसलों तक की स्थिति पर रखेगा पैनी नजर

 भारत और अमेरिका की सबसे महंगी अंतरिक्ष साझेदारी

निसार सैटेलाइट अब तक का सबसे ताकतवर अर्थ ऑब्जर्वेशन मिशन माना जा रहा है। इसे 30 जुलाई की सुबह इसरो ने GSLV Mk-II के माध्यम से श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सफलतापूर्वक लॉन्च किया। यह मिशन भारत की अंतरिक्ष शक्ति को न केवल वैश्विक स्तर पर नई ऊंचाइयों तक ले गया है, बल्कि वैज्ञानिक शोध और पर्यावरणीय आंकड़ों के लिए भी एक नई क्रांति का संकेत है।

इस मिशन की कुल लागत लगभग 1.5 बिलियन डॉलर (12,500 करोड़ रुपए) है, जिसमें भारत का योगदान 788 करोड़ रुपए है। यह न केवल इसरो और नासा की तकनीकी समझ का संगम है, बल्कि आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन, भूकंप, बर्फ की स्थिति और वनस्पति संबंधी डाटा का सटीक विश्लेषण देने वाला प्रमुख माध्यम भी बनेगा।

 निसार सैटेलाइट क्या है?

निसार सैटेलाइट का पूरा नाम है – NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar। यह एक ऐसा उपग्रह है जो धरती की सतह पर हो रहे परिवर्तनों की नियमित निगरानी करेगा। इसका प्राथमिक उद्देश्य है – प्राकृतिक आपदाओं, ग्लेशियरों के पिघलने, जंगलों में हो रहे परिवर्तनों, और शहरी विकास की सटीक जानकारी प्रदान करना।

इस सैटेलाइट में दो प्रकार के रडार लगे हैं:

  • L-Band SAR – जिसे NASA ने बनाया है
  • S-Band SAR – जिसे ISRO ने विकसित किया है

इन दोनों की वेवलेंथ और स्पेक्ट्रम की शक्ति अलग-अलग है, जिससे यह मिशन बेहद विशेष बनता है।

 कैसे करता है काम निसार सैटेलाइट?

एल-बैंड SAR

  • स्पेक्ट्रम: 1-2 GHz
  • वेवलेंथ: 15–30 सेमी
  • कार्य: मिट्टी, वनस्पति और बर्फ में गहराई तक प्रवेश
  • लाभ: जंगलों और भू-स्खलन जैसे धीमे बदलावों को ट्रैक करना

एस-बैंड SAR

  • स्पेक्ट्रम: 2–4 GHz
  • वेवलेंथ: 7.5–15 सेमी
  • कार्य: सतह की उच्च-रिज़ॉल्यूशन इमेजिंग
  • लाभ: शहरी क्षेत्रों, बाढ़ और तूफान की स्पष्ट निगरानी

निसार सैटेलाइट के दोनों SAR रडार मिलकर यह सुनिश्चित करते हैं कि पृथ्वी पर हो रहे हर बदलाव को गहराई और सूक्ष्मता से रिकॉर्ड किया जा सके।

 किन-किन क्षेत्रों में उपयोगी है निसार सैटेलाइट?

निसार सैटेलाइट के ज़रिए वैज्ञानिकों को निम्नलिखित क्षेत्रों में सटीक और महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी:

 वन और पर्यावरण

  • जंगलों की कटाई और पुनः वनरोपण की निगरानी
  • जंगलों में हो रहे संरचनात्मक परिवर्तन
  • वन संरक्षण योजनाओं का मूल्यांकन

 कृषि और फसलें

  • कौन सी जगह कौन सी फसल हो रही है
  • खेती में होने वाले बदलावों की पहचान
  • सूखे या जलभराव की सटीक जानकारी

 बर्फ और ग्लेशियर

  • अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड में बर्फ की मोटाई
  • ग्लेशियरों की स्थिति और उनका खिसकना
  • समुद्र की बर्फ में हो रहे बदलाव

 भूकंप और ज्वालामुखी

  • टेक्टोनिक प्लेटों की गतिविधि पर नजर
  • ज्वालामुखी विस्फोट से पहले की हलचलों का विश्लेषण
  • भूस्खलन और उसके संभावित क्षेत्र की पहचान

 तकनीकी विशेषताएं

विवरण जानकारी
वजन 2393 किलोग्राम
कक्षा 747 किमी सूर्य समकालिक कक्षा
मिशन अवधि 5 वर्ष
SAR प्रणाली डुअल बैंड (L और S)
संचालन इसरो और नासा की संयुक्त कमांडिंग

इस सैटेलाइट से प्राप्त इमेज डेटा इसरो और नासा दोनों के ग्राउंड स्टेशन पर प्राप्त होगा और प्रोसेसिंग के बाद संबंधित उपयोगकर्ताओं को वितरित किया जाएगा।

इसरो की भूमिका

इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) निसार मिशन में S-बैंड रडार, उपग्रह का निर्माण, लॉन्च और ग्राउंड सिस्टम की जिम्मेदारी संभाल रहा है। वहीं नासा एल-बैंड रडार, साइंस डाटा सिस्टम और मिशन संचालन की जिम्मेदारी निभा रहा है।

इस तरह निसार सैटेलाइट न केवल भारत-अमेरिका सहयोग का प्रतीक है, बल्कि एक नई युग की शुरुआत भी है जिसमें जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाओं और पर्यावरणीय संकटों से निपटने की तैयारी है।

 वैज्ञानिकों की राय

प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक डॉ. के. राधाकृष्णन का कहना है,

“निसार मिशन आने वाले दशक में धरती की हर हरकत को नापेगा। इससे जलवायु परिवर्तन की दिशा में लिए गए निर्णयों की मजबूती बढ़ेगी।”

वहीं नासा के प्रमुख बिल नेल्सन ने कहा,

“यह साझेदारी विज्ञान, सहयोग और वैश्विक भविष्य के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का प्रतीक है।”

निसार सैटेलाइट एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, जो न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से बल्कि वैश्विक पर्यावरणीय और मानवीय विकास के नजरिए से भी क्रांतिकारी कदम है। एल-बैंड और एस-बैंड की संयुक्त शक्ति के साथ यह मिशन आने वाले वर्षों में पृथ्वी की संरचना, जलवायु परिवर्तन, जंगल, फसल और प्राकृतिक आपदाओं की ऐसी तस्वीर पेश करेगा जो आज तक मुमकिन नहीं थी।

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