हाइलाइट्स
- Nikah Halala को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएँ लंबित, संविधान पीठ जल्द करेगी सुनवाई
- तीन तलाक की समाप्ति के बाद भी निकाह हलाला की वजह से महिलाएँ यौन और मानसिक शोषण का सामना कर रही हैं
- रायबरेली, दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में Nikah Halala रैकेट का भंडाफोड़; मौलवियों पर ऑनलाइन सौदे के आरोप
- मुस्लिम महिला संगठनों का दावा— Nikah Halala संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन
- सऊदी अरब व यूएई सहित कई इस्लामिक देशों में Nikah Halala मान्य प्रथा नहीं; भारत में कानूनी निषेध की उठ रही माँग
Meta Description (Hindi): भारत में Nikah Halala पर लगातार उठ रही आपत्तियों और सुप्रीम कोर्ट में लटकती याचिकाओं के बीच यह ख़बर बताती है कि यह प्रथा धार्मिक मान्यता, कानूनी चुनौतियों और महिला अधिकारों के संघर्ष के चौराहे पर कैसे खड़ी है।
Nikah Halala क्या है? ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
इस्लाम में विवाह को पवित्र अनुबंध माना जाता है, और तलाक़—ख़ास तौर पर तलाक़-ए-तलासा—को आख़िरी उपाय के रूप में देखा जाता है। Nikah Halala इसी व्यवस्था का वह हिस्सा है, जिसके तहत कोई महिला अपने पूर्व पति से फिर से विवाह तभी कर सकती है जब वह पहले किसी अन्य पुरुष से विवाह करे, उससे शारीरिक संबंध बनाए और तलाक़ ले। इस व्यवस्था का मूल उद्देश्य तलाक़ को कठिन बनाकर परिवार व्यवस्था को मज़बूत रखना बताया जाता है, किंतु आधुनिक संदर्भ में यही व्यवस्था सबसे अधिक विवादित है।
भारत में Nikah Halala की वर्तमान कानूनी स्थिति
सुप्रीम कोर्ट की लंबित याचिकाएँ
2017 में तीन तलाक़ को असंवैधानिक ठहराए जाने के बाद Nikah Halala और बहुविवाह की संवैधानिक वैधता पर कई जनहित याचिकाएँ दायर हुईं। 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने पाँच जजों की संविधान पीठ गठित कर मामले की सुनवाई का निर्णय लिया। भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने दलील दी कि Nikah Halala महिलाओं के जीवन के अधिकार का उल्लंघन करता है।
प्रक्रिया पर सवाल
• याचिकाएँ दावा करती हैं कि Nikah Halala में महिला की सहमति अक्सर काग़ज़ी होती है।
• भारतीय दंड संहिता की धारा 375 व 498A के संदर्भ में इसे बलात्कार व क्रूरता की श्रेणी में लाने की माँग ज़ोर पकड़ रही है।
• सरकार ने अभी निर्णायक रुख़ नहीं अपनाया, जबकि राष्ट्रीय महिला आयोग ने प्रतिबंध की सिफ़ारिश की है।
Nikah Halala की आड़ में शोषण के मामले
ग्राउंड रिपोर्ट्स
रायबरेली (उत्तर प्रदेश) की शमा (काल्पनिक नाम) ने आरोप लगाया कि पति ने तीन तलाक़ के बाद दो बार Nikah Halala कराया। “मैंने रिश्तों की मर्यादा नहीं, डर और सामाजिक दबाव झेला,” वह बताती हैं। इसी तरह दिल्ली व मुंबई पुलिस ने ऑनलाइन हलाला रैकेट का भंडाफोड़ किया, जहाँ मौलवी 20 हज़ार से एक लाख रुपये तक लेकर एक रात की शादी के लिए तैयार थे।
आँकड़ों की कमी, पीड़िताओं का दर्द
सरकारी या निजी किसी भी एजेंसी के पास Nikah Halala से जुड़े विश्वसनीय आँकड़े नहीं हैं। किंतु हेल्पलाइन पर आने वाली शिकायतों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के अनुभव बताते हैं कि मामला व्यापक है। “बात सिर्फ़ आँकड़ों की नहीं, एक-एक घटना महिला की अस्मिता को हिला देती है,” BMMA की सह-संस्थापक नूरजहाँ सफ़िया नियाज़ कहती हैं।
धार्मिक दृष्टिकोण बनाम आधुनिक अधिकार चेतना
उलेमा का पक्ष
कई सुन्नी उलेमा तर्क देते हैं कि Nikah Halala कुरान-सुन्नत की व्याख्या से जुड़ा मसला है और इसे “कुरीति” कहना इस्लामिक कानून में दख़ल होगा। उनका मानना है कि यह प्रथा तलाक़ को आख़िरी विकल्प रखने की ‘नैतिक चेतावनी’ है, जिसका गलत इस्तेमाल रोकना ज़रूरी है, पर प्रथा रद्द करना नहीं।
महिलाओं का प्रतिवाद
“कुरान महिलाओं की इज़्ज़त पर समझौता नहीं करता; Nikah Halala उस इज़्ज़त को बेच डालता है,” बीएमएमए की एक याचिका में कहा गया है। सामाजिक संगठनों का तर्क है कि जहाँ सऊदी अरब, यूएई, मिस्र और तुर्की जैसे इस्लामिक मुल्कों में Nikah Halala सामाजिक स्तर पर प्रचलित नहीं, वहाँ भारत में इसे निजी क़ानून की आड़ में जीवित रखना विचित्र है।
अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
खाड़ी देशों का उदाहरण
सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में धार्मिक न्यायालय तलाक़ के बाद पुनर्विवाह के लिए किसी हलाला जैसे अनिवार्य क़दम की शर्त नहीं लगाते। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत में भी Nikah Halala के प्रावधान को दक़ियानूसी क़ानून की श्रेणी से बाहर निकालने का वक़्त आ गया है।
दक्षिण एशिया में विरोध
पाकिस्तान व बांग्लादेश में भी Nikah Halala विवादों के घेरे में है। 2023 में बांग्लादेश की एक महिला के आत्महत्या मामले ने सोशल मीडिया पर तूफ़ान मचा दिया, जिसके बाद ढाका हाइकोर्ट ने पुलिस को रैकेट की जाँच के आदेश दिए।
विशेषज्ञों की राय: आगे का रास्ता
सुधार के विकल्प
- Nikah Halala को भारतीय दंड संहिता के तहत संज्ञेय अपराध बनाया जाए।
- मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड महिला आयोग व क़ाज़ियों के लिए आचार संहिता तैयार करे।
- वैवाहिक विवादों के लिए वैकल्पिक विवाद निवारण केंद्रों में महिला प्रतिनिधित्व बढ़ाया जाए।
शिक्षा और संवेदनशीलता
कानूनी बंदिशें तब तक कारगर नहीं होंगी जब तक समाज की सोच नहीं बदले। मदरसों और धार्मिक संस्थानों में Nikah Halala पर खुली बहस, और इस्लामी स्त्रोतों की आधुनिक व्याख्या ज़रूरी है।
Nikah Halala आज़ादी के 78 वें वर्ष में खड़े भारत के सामने महिला सम्मान और धार्मिक स्वतंत्रता के बीच एक तीखा सवाल बन कर उभरा है। सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई निर्णायक हो सकती है, पर वास्तविक बदलाव कानून से आगे सामाजिक चेतना में आयेगा। सवाल यह है कि समाज कब समझेगा—और कब स्वीकार करेगा—कि किसी भी धार्मिक क़ायदे की पहली कसौटी इंसानी गरिमा है।