30 परिवारों को मस्जिद, कब्रिस्तान और शादी से निकाला गया… आखिर क्यों? मुस्लिम समाज में फैले इस रहस्यमय बहिष्कार की पूरी कहानी

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हाइलाइट्स

  •  Muslim Discrimination के तहत छत्तीसगढ़ में 30 मुस्लिम परिवारों के समाज से बहिष्कार का मामला
  • कब्रिस्तान, मस्जिद और विवाह में शामिल होने पर भी रोक
  • पीड़ित परिवारों ने वक्फ बोर्ड अध्यक्ष को सौंपी लिखित शिकायत
  • बहिष्कार की आड़ में धार्मिक मतभेद और सामाजिक ब्लैकमेलिंग का आरोप
  • वक्फ बोर्ड ने जताई सख्त कार्रवाई की संभावना, संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन का मामला बताया

छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने पूरे राज्य को चौंका दिया है। लगभग 30 से अधिक मुस्लिम परिवारों को उनके ही समाज से बहिष्कृत कर दिया गया है। इस बहिष्कार की जड़ में धार्मिक मान्यताओं में अंतर, समाज के भीतर सत्ता संघर्ष और व्यक्ति विशेष की मनमानी बताई जा रही है। Muslim Discrimination से जुड़ा यह मामला भारतीय संविधान की मूल आत्मा — धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक स्वतंत्रता — पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।

घटना की जड़: कौन हैं अल्तमश सिद्दीकी?

जब समाज का नेता ही बन जाए भेदभाव का कारण

पीड़ित परिवारों ने शिकायत में बताया कि नगर गोबरा नयापारा, राजिम और फिंगेश्वर पेड़ा गांव में खुद को “22 जमात का सदर” बताने वाला अल्तमश सिद्दीकी तीन वर्षों से कुछ मुस्लिम परिवारों पर दबाव बना रहा था कि वे उसे सामुदायिक नेतृत्व के रूप में स्वीकार करें। इन परिवारों ने जब ऐसा करने से इनकार किया, तो Muslim Discrimination का यह सिलसिला शुरू हुआ।

अल्तमश सिद्दीकी ने बिना किसी वैध कारण के, बिना शरिया या भारतीय कानून की प्रक्रिया अपनाए, इन परिवारों को समाज से बहिष्कृत कर दिया।

बहिष्कार का स्वरूप: केवल सामाजिक नहीं, धार्मिक भी

कब्रिस्तान तक से रोक, मोहर्रम पर ताजियादारी में अड़चन

शिकायतकर्ताओं ने बताया कि उन्हें कब्रिस्तान में दफनाने तक की इजाजत नहीं दी जा रही है। शादी-विवाह, सामूहिक दावत, मस्जिद में प्रवेश तक रोक दी गई है। यहां तक कि रोटी-बेटी के रिश्ते भी खत्म कर दिए गए हैं। Muslim Discrimination के इस मामले में धार्मिक रीतियों के पालन पर भी सवाल उठाया गया है।

पीड़ित अशरफी और वारसी परिवार बताते हैं कि वे हजरत अली को प्राथमिकता देते हैं और मोहर्रम के दौरान ताजियादारी में भाग लेते हैं। इसी कारण उन्हें “शिया” कहकर बदनाम किया गया, जबकि वे स्वयं को सुन्नी ही मानते हैं।

मानसिक और सामाजिक उत्पीड़न की पराकाष्ठा

तानों, व्यंग्य और समाजिक बहिष्कार की मार

Muslim Discrimination केवल धार्मिक स्तर पर नहीं रुका। इन परिवारों को मानसिक और सामाजिक स्तर पर भी उत्पीड़न झेलना पड़ा। मोहल्ले में व्यंग्य, ताने, बच्चों को तंग किया जाना और विवाह में बहिष्कार ने उनके जीवन को नर्क बना दिया है। बच्चों की पढ़ाई, महिलाओं की सामाजिक भागीदारी और पुरुषों की धार्मिक जिम्मेदारियों पर भी इसका बुरा असर पड़ा है।

वक्फ बोर्ड की प्रतिक्रिया: कार्रवाई तय

वक्फ बोर्ड अध्यक्ष का बयान – “धर्म परिवर्तन की प्रेरणा अस्वीकार्य”

छत्तीसगढ़ वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. सलीम राज ने साफ किया कि मुतवल्ली (मस्जिद के केयरटेकर) को किसी को समाज से बहिष्कृत करने का अधिकार नहीं है। उन्होंने यह भी बताया कि संबंधित मुतवल्ली द्वारा लोगों को “धर्म परिवर्तन” की प्रेरणा दी जा रही थी। ऐसे में Muslim Discrimination की यह प्रक्रिया न केवल अवैध है, बल्कि इस्लामी उसूलों के भी खिलाफ है।

चेतावनी: स्पष्टीकरण नहीं देने पर बर्खास्तगी तय

डॉ. राज ने यह भी स्पष्ट किया कि अल्तमश सिद्दीकी जैसे लोग यदि संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं देते हैं तो उन्हें उनके पद से हटाया जाएगा। उन्होंने कहा, “इस्लाम शांति का मजहब है, ऐसे में समाज के नाम पर किसी को बहिष्कृत करना या डराना-धमकाना बिल्कुल अस्वीकार्य है।”

मुस्लिम समाज में अंदरूनी सत्ता संघर्ष या धार्मिक कट्टरता?

क्या यह केवल नेतृत्व का झगड़ा है या कुछ और?

यह मामला केवल नेतृत्व की लड़ाई नहीं, बल्कि समाज में बढ़ती कट्टरता और Muslim Discrimination की मानसिकता का भी परिचायक है। जो समुदाय वर्षों से एक साथ रहते आए हैं, वे अचानक धार्मिक भिन्नता के नाम पर अलग कर दिए जा रहे हैं। भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में यह एक चिंताजनक संकेत है।

धार्मिक स्वतंत्रता बनाम समुदाय की मनमानी

संविधान और शरिया दोनों के खिलाफ है यह बहिष्कार

भारतीय संविधान हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है। किसी भी व्यक्ति को उसके धार्मिक विश्वास के कारण समाज से बहिष्कृत करना न केवल असंवैधानिक है, बल्कि मानवाधिकारों का भी उल्लंघन है। Muslim Discrimination की यह घटना शरिया के भी खिलाफ जाती है, जो एकजुटता, भाईचारा और इंसाफ की बात करता है।

 समय रहते चेतना जरूरी

इस पूरे प्रकरण से यह स्पष्ट होता है कि मुस्लिम समाज में आंतरिक फूट और कुछ स्वघोषित नेताओं की मनमानी ने बड़ी संख्या में निर्दोष परिवारों को अत्याचार का शिकार बना दिया है। यदि समय रहते Muslim Discrimination जैसे मामलों को रोका नहीं गया, तो यह समाज में गंभीर विभाजन और धार्मिक उन्माद को जन्म दे सकता है।

छत्तीसगढ़ सरकार, वक्फ बोर्ड और संबंधित प्रशासन को तत्काल हस्तक्षेप कर पीड़ितों को न्याय दिलाना चाहिए और ऐसे तत्वों को रोकना चाहिए, जो धर्म की आड़ में समाज को बांटने का काम कर रहे हैं।

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