अगर ऐसा हुआ तो 2029 में सिर्फ 150 सीटें जीतेगी BJP” — इस भाजपा सांसद को सता रहा है बड़ा सियासी डर!

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हाइलाइट्स

  • Modi Leadership न होने पर 2029 में बीजेपी को सिर्फ 150 सीटों की आशंका, निशिकांत दुबे का बयान
  • आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के ‘75 साल के बाद रिटायरमेंट’ बयान पर सीधी प्रतिक्रिया
  • दुबे बोले—“मोदी को पार्टी की नहीं, पार्टी को Modi Leadership की ज़रूरत”
  • योगी आदित्यनाथ की दिल्‍ली भूमिका पर साफ़-सुथरा ‘न है’—अभी कोई जगह नहीं
  • इंदिरा गांधी पर तंज: 1971 में ‘दो बांग्लादेश’ न बनाना बड़ी भूल, Modi Leadership मॉडल से तुलना

बयान के मायने: Modi Leadership बनाम संगठन

18 जुलाई 2025 को झारखंड के गोड्डा से बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने इंटरव्यू में दावा किया कि “Modi Leadership ने पार्टी को वह निर्धन वर्ग दिया है जो पहले कभी saffron खेमे के साथ नहीं था।’’ उनका तर्क है कि 2014, 2019 और 2024—तीनों लोकसभा जीतों की धुरी Modi Leadership रही; 2029 में यही धुरी हट गई तो पार्टी 150 सीटों पर ‘सिकुड़’ सकती है। दुबे के मुताबिक, मोदी को संगठन से ऊपर इसलिए आंकना ज़रूरी है क्योंकि “मोदी के बिना बीजेपी, बीजेपी के बिना मोदी नहीं।” इस वाक्य में छिपा संदेश है कि Modi Leadership एक ‘इंस्टिट्यूशन’ बन चुकी है।

आरएसएस की ‘75 वर्ष रेखा’ और Modi Leadership

आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत ने हाल में कहा था कि सार्वजनिक जीवन में 75 वर्ष के बाद नेतृत्व नई पीढ़ी को सौंप देना चाहिए। 2026 में स्वयं भागवत व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, दोनों 75 वर्ष के हो जाएंगे। दुबे ने इस पर कटाक्ष करते हुए कहा—“यह सिद्धांत Modi Leadership पर लागू नहीं होता; 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य के लिए उनका मार्गदर्शन अपरिहार्य है।” राजनीतिक अध्येताओं के लिए यह बयान प्रकट करता है कि बीजेपी व आरएसएस के बीच ‘आदर्श’ और ‘वास्तविकता’ का सेतु अब भी Modi Leadership है।

क्या ‘Modi Leadership मॉडल’ नियम से बड़ा है?

H4 श्रेणी के विश्लेषण में देखिए कि संगठनात्मक अनुशासन कितनी जल्दी ‘आदर्श’ से ‘अपवाद’ में बदल जाता है जब Modi Leadership जैसी सर्वस्वीकृत लोकप्रियता सामने होती है। यहीं से प्रश्न उठता है—क्या व्यक्तित्व‑केंद्रित राजनीति संस्थागत स्थायित्व के लिए खतरा है, या वर्तमान भारतीय संदर्भ में यह अपरिहार्य उपकरण?

योगी की दिल्लीथा पर विराम: Modi Leadership अभी सर्वोपरि

कई दिनों से चर्चा थी कि योगी आदित्यनाथ को केंद्रीय राजनीति में उतार कर ‘अगली पीढ़ी’ की तैयारी होगी। दुबे ने इसे नकारते हुए कहा, “दिल्ली में अभी योगी के लिए जगह नहीं; Modi Leadership ही प्राथमिकता है।” इससे दो बातें स्पष्ट होती हैं—एक, संघ‑प्रस्तावित उत्तराधिकार पहेली तुरंत हल नहीं होने वाली; दो, बीजेपी अपने ‘सुरक्षित विकल्प’ को तब तक थामे रहेगी जब तक Modi Leadership अजेय दिखती है।

विपक्ष की प्रतिक्रिया: Modi Leadership विरोध पर एकजुटता या भ्रम?

कांग्रेस व INDIA गठबंधन ने दुबे के कथन पर हमला बोलते हुए कहा कि “बीजेपी स्वयं मान रही है कि Modi Leadership हटते ही पार्टी धराशायी हो जाएगी।” विपक्ष इसे प्रमाण मानता है कि देश में “एक‑व्यक्ति केंद्रित शासकीय ढाँचा” उभर चुका है। हालांकि चुनाव‑विश्लेषक मानते हैं कि विपक्ष अब तक ऐसा ‘नैरेटिव’ गढ़ने में विफल रहा जो Modi Leadership के करिश्मे को चुनौती दे सके।

इंदिरा‑बांग्लादेश संदर्भ: Modi Leadership बनाम ऐतिहासिक फ़ैसले

दुबे ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर निशाना साधते हुए 1971 के युद्ध के बाद ‘दो बांग्लादेश’—हिंदू व मुस्लिम—न बनाने को ऐतिहासिक भूल बताया। राजनीतिक विश्लेषकों का मत है कि दुबे यहाँ Modi Leadership मॉडल को ‘स्पष्ट वैचारिक दृष्टि’ के उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत करना चाहते हैं। यह बयान न केवल इतिहास‑पुनरावलोकन है, बल्कि मौजूदा सांस्कृतिक राजनीति में Modi Leadership को ‘निर्णायक नेता’ के रूप में स्थापित करता है।

सामाजिक समीकरण और Modi Leadership

दुबे का दावा है कि 2014 के बाद गरीब‑पिछड़ा वर्ग बड़ी संख्या में बीजेपी से जुड़ा, और यह संभव हुआ Modi Leadership की ‘डायरेक्ट बेनेफिट’ नीतियों से—जन धन, उज्ज्वला, आयुष्मान, पीएम‑आवास आदि। गाँव‑कस्बों का यह ‘साइलेंट वोटर’ 2024 में दोबारा सक्रिय हुआ। 2029 तक इस समर्थन के टिकाऊ रहने की शर्त भी वही है—Modi Leadership

क्या 2029 में Modi Leadership वाकई अपरिहार्य?

विश्लेषक चेतावनी देते हैं कि चुनावी समीकरण स्थायी नहीं होते। महंगाई, रोजगार, कृषि संकट जैसे मुद्दे यदि विकराल रूप लेते हैं तो Modi Leadership करिश्मा भी असर‑हीन हो सकता है। किंतु अभी‑के‑अभी सर्वेक्षण रुझान बताते हैं कि Modi Leadership की स्वीकार्यता 50 % प्लस पर कायम है, जो किसी भी लोकतांत्रिक देश में असाधारण आंकड़ा है।

पार्टी‑संघ समीकरण की परीक्षा: Modi Leadership की कसौटी

बीजेपी का संविधान कहता है कि संसदीय दल नेता चुनता है, जबकि संघ नैतिक‑वैचारिक मार्गदर्शक है। 2026 में जब उम्र‑सीमा का प्रश्न सचमुच उपस्थित होगा, तब क्या संघ स्वयं ‘अपवाद’ रच कर Modi Leadership को जारी रखेगा? अब तक के संकेत यही हैं कि जन‑समर्थन के आगे आंतरिक नियम लचीले हो जाते हैं।

‘150 सीट’ चेतावनी और आगे की राह

निशिकांत दुबे ने ‘150 सीट’ का जो आंकड़ा उछाला, वह महज़ सियासी बयानबाज़ी नहीं, भीतर‑ही‑भीतर चल रही ‘पोस्ट‑Modi Leadership’ चर्चा का सार्वजनिक स्वरूप है। इस चेतावनी में पार्टी‑समर्थकों के लिए संदेश छिपा है कि सत्ता‑समीकरण को स्थिर रखने का ‘सुरक्षित फॉर्मूला’ अभी भी Modi Leadership है।

“मोदी के बिना पार्टी, पार्टी के बिना मोदी नहीं”—दुबे का यह कथन बताता है कि बीजेपी के भीतर ‘कलेक्टिव लीडरशिप’ की परिकल्पना फिलहाल हाशिए पर है, और Modi Leadership ही 2029 का सबसे बड़ा दांव बनी रहेगी।

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