Middle East Conflict

ईरान का बड़ा ऐलान: इजरायल पर बरसेंगी 2000 मिसाइलें, युद्ध की आग में झुलसेगा भारत?

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 हाइलाइट्स

  • Middle East Conflict के कारण दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की ओर खिंचती नजर आ रही है
  • इजरायल ने ‘ऑपरेशन राइजिंग लॉयन’ के तहत ईरान के परमाणु ठिकानों पर किए भीषण हमले
  • जवाब में ईरान ने ‘ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस 3’ चलाकर मिसाइलों से इजरायल पर हमला किया
  • 9 परमाणु वैज्ञानिकों और 2 वरिष्ठ जनरलों की मौत से ईरान में मचा मातम
  • भारत समेत पूरी दुनिया पर मंडराया संकट, तेल आपूर्ति, व्यापार और सुरक्षा को खतरा

मध्य पूर्व एक बार फिर जल रहा है। Middle East Conflict ने एक खतरनाक मोड़ ले लिया है, जहां इजरायल और ईरान के बीच तनाव ने सैन्य टकराव का रूप ले लिया है। इजरायल द्वारा ‘ऑपरेशन राइजिंग लॉयन’ के तहत ईरान के परमाणु और सैन्य अड्डों पर हमले के बाद, ईरान ने ‘ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस 3’ के जरिए जबरदस्त पलटवार किया है। दोनों देशों के इस टकराव ने न केवल इस क्षेत्र को बल्कि पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया है।

 इजरायल का पहला हमला: ‘ऑपरेशन राइजिंग लॉयन’ की शुरुआत

इजरायल ने अचानक एक बड़े सैन्य अभियान की शुरुआत करते हुए ईरान के परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया। इस अभियान का कोड नाम Operation Rising Lion रखा गया, जिसके तहत इजरायली वायु सेना ने तेज रफ्तार मिसाइलों और ड्रोन के जरिए ईरान की कई सैन्य और वैज्ञानिक सुविधाओं पर हमला किया। इस हमले में इजरायल का दावा है कि ईरान के 9 परमाणु वैज्ञानिक मारे गए हैं।

 मारे गए वैज्ञानिक और जनरल: ईरान के लिए बड़ा झटका

सरकारी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इजरायल के हमलों में जनरल स्टाफ के खुफिया उप प्रमुख घोलमरेजा मेहराबी और ऑपरेशन के उप प्रमुख जनरल मेहदी रब्बानी की मौत हो गई है। ईरान ने इस हमले को युद्ध की सीधी घोषणा करार देते हुए कहा है कि जवाब में दो हजार मिसाइलें दागी जाएंगी।

 ईरान का पलटवार: ‘ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस 3’

इजरायल के हमलों के कुछ ही घंटों बाद, ईरान ने अपने जवाबी हमले को ‘Operation True Promise 3’ नाम दिया। यह अभियान न केवल मिसाइल हमलों तक सीमित रहा, बल्कि साइबर हमलों, ड्रोन हमलों और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध तकनीकों का भी उपयोग किया गया। Middle East Conflict अब केवल सीमा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि डिजिटल और रणनीतिक मोर्चों पर भी फैल गया है।

 इजरायल-ईरान टकराव: क्यों है दुश्मनी इतनी गहरी?

 धार्मिक और राजनीतिक टकराव

इस Middle East Conflict की जड़ें दशकों पुरानी हैं। इजरायल और ईरान के बीच धार्मिक मतभेद, सामरिक प्रतिद्वंद्विता और क्षेत्रीय प्रभाव को लेकर तनाव है। जहां इजरायल एक यहूदी राष्ट्र है, वहीं ईरान एक शिया इस्लामी गणराज्य है।

 परमाणु खतरा और सामरिक रणनीति

इजरायल को आशंका है कि ईरान जल्द ही परमाणु हथियार विकसित कर सकता है। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, ईरान अगले कुछ ही दिनों में 15 परमाणु बम तैयार करने में सक्षम हो सकता है। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने स्पष्ट किया है कि “हमारी कार्रवाई सिर्फ आत्मरक्षा है।”

भारत पर असर: ऊर्जा, रणनीति और कूटनीति

 तेल आपूर्ति में संकट

भारत अपनी 85% ऊर्जा आवश्यकता आयात से पूरी करता है, जिसमें ईरान एक प्रमुख कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता है। Middle East Conflict के चलते अगर आपूर्ति बाधित हुई, तो भारत में पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें आसमान छू सकती हैं।

 हथियार और सुरक्षा उपकरण

भारत और इजरायल के बीच रक्षा सौदों का लंबा इतिहास है। इजरायल भारत को अत्याधुनिक ड्रोन, मिसाइल डिफेंस सिस्टम और साइबर सुरक्षा उपकरण प्रदान करता है। इस संघर्ष से इन समझौतों पर असर पड़ सकता है।

🛫 खाड़ी में रहने वाले भारतीयों की सुरक्षा

मिडिल ईस्ट में करीब 90 लाख भारतीय रहते हैं। Middle East Conflict यदि और गंभीर हुआ, तो वहां भारतीयों की जान को खतरा हो सकता है, साथ ही उनके रोजगार पर भी।

 IMEC परियोजना पर संकट

भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC), जो भारत के कांडला बंदरगाह से शुरू होकर यूएई, सऊदी अरब और इजरायल होते हुए यूरोप तक व्यापारिक कनेक्टिविटी बनाता है, इस युद्ध के कारण ठप हो सकता है।

 वैश्विक प्रतिक्रिया और कूटनीतिक प्रयास

अमेरिका, रूस, चीन और यूरोपीय संघ समेत लगभग हर बड़ा देश इस संघर्ष को रोकने की कोशिश में है। लेकिन Middle East Conflict इतना जटिल हो चुका है कि इसे सुलझाना आसान नहीं लग रहा।

🇺🇳 संयुक्त राष्ट्र की प्रतिक्रिया

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने आपात बैठक बुलाई है और दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की है। हालांकि इजरायल ने कहा है कि “परमाणु खतरे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।”

 क्या होगा इस ‘Middle East Conflict’ का भविष्य?

इस पूरे संघर्ष का सबसे बड़ा डर यह है कि यह Middle East Conflict धीरे-धीरे एक वैश्विक युद्ध में बदल सकता है। भारत जैसे देशों के लिए यह कूटनीति की परीक्षा है—जहां उसे अपने रणनीतिक साझेदारों के साथ संतुलन बनाना होगा और अपने नागरिकों की सुरक्षा व ऊर्जा आपूर्ति को भी सुरक्षित रखना होगा।

यदि यह युद्ध थमा नहीं, तो इसका असर सिर्फ ईरान या इजरायल तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह वैश्विक अर्थव्यवस्था, ऊर्जा संकट और राजनीतिक स्थिरता को भारी नुकसान पहुंचा सकता है।

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